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शिवचरण पांडे ने उत्तराखंड ही देश के कोने-कोने में पहुंचायी कुमाऊं की रामलीला

राग रागिनियों पर आधारित रामलीला व बैठकी होली को सरंक्षण देने में लक्ष्मी भंडार के वरिष्ठ रंगकर्मी शिवचरण पांडे का बहुत योगदान रहा है। संगीत के प्रति रुचि और अपनी संस्कृति से लगाव के कारण वह पिछले 55 वर्षो से इस विधा को नया आयाम दे रहे हैं।

By Prashant MishraEdited By: Published: Mon, 24 Jan 2022 04:34 PM (IST)Updated: Mon, 24 Jan 2022 04:34 PM (IST)
शिवचरण पांडे ने उत्तराखंड ही देश के कोने-कोने में पहुंचायी कुमाऊं की रामलीला
अल्मोड़ा जिले की एक बेहतरीन शख्सियत जिसने पहाड़ी संस्कृति की पताका देश ही नहीं देश के बाहर भी फहरायी।

संवादद सूत्र, अल्मोड़ा : उत्तराखंड में लोक कला को आज भी संजोकर रखा जाता है। जागरूक लोगों को पता है कि वैश्वीकरण की आंधी में लोक परंपराएं कब पुरानी बात हो जाएगी, इसका पता भी नहीं चलेगा। आज हम जानेंगे कुमाऊं की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले अल्मोड़ा जिले की एक बेहतरीन शख्सियत की जिसने पहाड़ी संस्कृति की पताका देश ही नहीं देश के बाहर भी फहरायी।

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सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में कोई भी त्योहार या महोत्सव पूरी परंपरा व सदभाव के साथ मनाया जाता है। संस्कृति के संरक्षण और उसको बढ़ावा देने में यहां के लोगों की सदैव अग्रणी रही है। रामलीला मंचन से लेकर प्रसिद्ध बैठकी होली की परंपरा से समाज को जोड़े रखने की एक ऐसी ही मिसाल हैं रंगकर्मी शिवचरण पांडे।  कुमाऊं की रामलीला व बैठकी होली की शुरुआत अल्मोड़ा से ही मानी जाती है। नगर का त्रिपुरा सुंदरी नव युवक कला केंद्र व लक्ष्मी भंडार हुक्का क्लब ने इन परंपराओं को संरक्षण देने व इसके प्रसार में अहम भूमिका निभाता आ रहा है। राग रागिनियों पर आधारित रामलीला व बैठकी होली को सरंक्षण देने में लक्ष्मी भंडार के वरिष्ठ रंगकर्मी शिवचरण पांडे का बहुत योगदान रहा है। संगीत के प्रति रुचि और अपनी संस्कृति से लगाव के कारण वह पिछले 55 वर्षो से इस विधा को नया आयाम दे रहे हैं। 

चिकित्सा विभाग से वरिष्ठ सहायक के पद से सेवानिवृत होने के बाद वह नगर की सांस्कृतिक, साहित्यिक एवं धार्मिक संस्था लक्ष्मी भंडार (हुक्का क्लब) से पूरी तरह जुड़ गए। वर्तमान में रामलीला के पात्रों को तालीम एवं मंचन की प्रक्रिया समझाने में उनका नाम सबसे पहले लिया जाता है। संस्था की ओर से साहित्यिक क्षेत्र में प्रकाशित होने वाली वार्षिक पत्रिका पुरवासी का 1980 से संपादन भी उन्हीं के हाथों में है। इसमें पर्वतीय संस्कृति, साहित्य, इतिहास, संगीत, पर्यावरण आदि विषयों पर विशेष सामग्री से युवा पीढ़ी को संदेश देने का काम हो रहा है। 

पांडे को मिले सम्मान 

- 1996 व 2000 में उत्तराखंड शोध संस्थान के कार्यक्रम में उन्हें सांस्कृतिक, साहित्यिक क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए उप्र के तत्कालीन राज्यपाल मोती लाल बोरा ने सम्मानित किया। 

- 2005 में संस्कृति, साहित्य एवं कला परिषद की ओर से राज्यपाल सुदर्शन अग्रवाल ने सम्मानित किया।

- 2017 को कुमाऊंनी भाषा साहित्य एवं संस्कृति प्रचार संस्थान की ओर से कुमाऊंनी भाषा सेवा सम्मान मिला।


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