शिप्रा नदी को पुनर्जीवित करने की अनूठी पहल, जलाशय, चलखाल और वृहद पौधारोपण कर रहा वन विभाग
शिप्रा नदी एक बार फिर अपने पुराने वेग में बह पाएगी। नदी को पुनर्जीवित करने के लिए वन विभाग द्वारा करीब 1. 34 करोड़ की लागत से किये जा रहे कार्य रंग लाने लगे है।
नैनीताल, नरेश कुमार : अस्तित्व खोने की कगार पर खड़ी शिप्रा नदी एक बार फिर अपने पुराने वेग में बह पाएगी। नदी को पुनर्जीवित करने के लिए वन विभाग द्वारा करीब 1. 34 करोड़ की लागत से किये जा रहे कार्य रंग लाने लगे है। वन विभाग द्वारा नदी पुनर्जीवन के लिए बनाए गए जलाशय, चाल खाल से पुराने जलस्रोत रिचार्ज हो उठे हैं। जिससे नदी को पर्याप्त पानी मिल पा रहा है।
उत्तरवाहिनी शिप्रा नदी भवाली के समीप अपने उद्गम क्षेत्र श्यामखेत से निकलकर करीब 20 किमी का सफर तय करते हुए खैरना के पास कोसी से मिल जाती है। उत्तर की ओर बहने वाली इस नदी की हिंदू धर्मावलंबियों के लिए भी खासी महत्ता है, लेकिन बीते कुछ समय मे इसके उद्गम क्षेत्र में हुए अनियोजित विकासकार्यो और भवन निर्माण के कारण सदानीरा रहने वाली यह नदी अब अस्तित्व खोने लगी है। गर्मियों में तो यह सूखने की कगार पर पहुँच जाती है।
जल संरक्षण व नदी पुनर्जीवन अभियान के तहत एक बार फिर इस नदी को पुनर्जीवित करने की कवायद शुरू कर दी गयी है। योजना के तहत इसके आसपास और इसके कैचमेंट क्षेत्रो में विशेष कार्य कर इससे जुड़े नालों और नदी को पुनर्जीवित किया जाना है। डीएफओ बीजुलाल टीआर ने बताया कि नदी पुनर्जीवन के लिए पहले चरण में कैम्पा मद से करीब 1.34 करोड़ की लागत से कार्य किये जाने है। योजना का करीब 70 फीसदी कार्य पूरा करा लिया गया है।
छह कैचमेंट क्षेत्रों में होंगे यह कार्य
नदी को पुनर्जीवित करने के लिए इसके आसपास के छह क्षेत्रों भवाली सेनेटोरियम, भवाली, नागारी, श्यामखेत, सेलकंजा और निगलाट को कैचमेंट क्षेत्र घोषित किया गया है। इन क्षेत्रों में से प्रत्येक में 1करीब 100 परकुलेशन टैंक, 115 स्टोन चैकडेम, 40 वानस्पतिक अवरोधक चैकडेम, 250 घनमीटर से लेकर 20 घनमीटर तक की जलधारण क्षमता वाले जलकुंड बनाये जाने है। इसके अलावा क्षेत्र में चाल-खाल और वृहद स्तर पर पौधारोपण भी किया जा रहा है।
वनाग्नि प्रबंधन में भी सहायक होगी योजना
नदी पुनर्जीवन के लिए किए जा रहे कार्य वनाग्नि प्रबंधन में भी सहायक सिद्ध होगी। डीएफओ बीजुलाल टीआर ने बताया कि चिन्हित क्षेत्र में चीड़ वृक्षों की संख्या अधिक है। जिससे हर वर्ष क्षेत्र में वनाग्नि का डर बना रहता है। योजना के तहत इंफ्रिलटेशन होल्स और चलखाल का निर्माण होने से वनाग्नि की घटनाएं कम होंगी। इसके अलावा क्षेत्र में बांज, बुरांस, देवदार समेत कई स्थानीय प्रजातियों के पौधों का रोपण किया गया है। जिससे आने आने समय मे यहा मिश्रित जंगल विकसित हो जाएगा। जिससे आग लगने की संभावना कम रहेगी।
पीएमओ कार्यालय कर रहा मॉनिटरिंग
डीएफओ बीजुलाल टीआर ने बताया कि योजना के तहत किये जा रहे कार्यो की देखरेख पीएमओ कार्यालय से की जा रही है। वह पीएमओ कार्यालय के एक व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़े हुए है, जिसमें पीएमओ कार्यालय अधिकारी प्रोजेक्ट के तहत कराए जा रहे कार्यों की समय समय पर जानकारी ले रहे है।