औषधीय गुणों से भरपूर दुर्लभ प्रजातियों के संरक्षण-संवर्धन के लिए अब ये योजना
उत्तराखंड में मिलने वाली दुर्लभ व मेडिसीन गुणों से युक्त वनस्पतियों का पूरा डाटा वन अनुसंधान केंद्र ने अब दस्तावेजों में शामिल कर लिया है।
हल्द्वानी, जेएनएन : उत्तराखंड में मिलने वाली दुर्लभ व मेडिसीन गुणों से युक्त वनस्पतियों का पूरा डाटा वन अनुसंधान केंद्र ने अब दस्तावेजों में शामिल कर लिया है। कुल 1145 प्रजातियों का डाटा तैयार किया गया है। इसमें 46 प्रजाति ऐसी है जो कि सिर्फ उत्तराखंड में मिलती है। इसलिए इन्हें बचाना बेहद जरूरी है। वहीं, खास बात यह है कि अब चिन्हित गई प्रजातियों की हर साल अप्रैल में रिपोर्ट तैयार होगी। जिससे पता चलेगा कि यह घटी या फिर बढ़ी। बाघ-गुलदार व हाथी की तरह एक तरह से वनस्पतियों को लेकर भी जवाबदेही तय हो जाएगी। संरक्षण व संवर्धन के लिए यह रिपोर्ट बेहद कारगर साबित होगी।
उत्तराखंड एक ऐसा राज्य है जिसके पास मैदान से लेकर हिमालयी इलाका भी है। यही वजह है कि अलग-अलग वातावरण में तैयार होने वाली वनस्पतियां यहां मिल जाती है। वन संरक्षक अनुसंधान संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि पिछले तीन साल से वनस्पतियों को खोजने और संरक्षण का काम चल रहा था। जिसके बाद एक इन सभी प्रजातियों को दस्तावेज में शामिल कर लिया गया।
इन्हें रेंज की अलग-अलग नर्सरी में तैयार किया गया है। इसका बड़ा फायदा यह होगा कि अगर किसी वजह से यह दुर्लभ प्रजातियां अपने मूल स्थान से विलुप्त भी हो गई तो दोबारा प्लांट हो जाएगी। यानी इनका इतिहास खत्म नहीं होगा। वन अनुसंधान द्वारा उत्तराखंड में मिलने वाली इन प्रजातियों को लेकर 200 पन्नों में रिपोर्ट तैयार की गई है। वर्तमान में कौनसी प्रजाति किस जगह और कितने पौधे हैं यह डाटा तक रिपोर्ट में शामिल है।
नौ महीने लगे रिपोर्ट बनाने में
नौ बिंदुओं पर आधारित रिपोर्ट तैयार करने में नौ महीने का समय लगा। वन अनुसंधान की टीम के साथ जेआरएफ का भी अहम रोल था। वैज्ञानिक कुल, वैज्ञानिक नाम, स्थानीय नाम, संरक्षण की स्थिति, उपयोग, किस जगह पर कितनी प्रजाति आदि बिंदु रिपोर्ट में शामिल है।
हर साल 5-7 प्रतिशत कम हो रही
वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी के मुताबिक जलवायु परिवर्तन, तापमान, दोहन व मानवीय हस्तक्षेप वनस्पतियों की विलुप्ति के कारण हैं। दुनिया में हर साल करीब पांच से सात प्रतिशत प्रजातियां घट जाती है। हर साल रिपोर्ट सार्वजनिक होने की वजह से संरक्षण को लेकर विभागीय व नैतिक दोनों जवाबदेही रहेगी।
साठ तरह की घास और 26 काई
वन अनुसंधान केंद्र ने काई की 26 प्रजाति, 28 लाइकन यानी झूला घास, 380 वृक्ष प्रजाति, सौ झाड़ी प्रजाति, दस बांज, छह बुरांश, 100 से ज्यादा फाइकस, बीस चीड़, 100 शाकीय, 60 आर्किट, 37 बांस, 60 घास, 78 फर्न प्रजाति, 22 जलीय और दो दर्जन बुग्याल लैंड की फूल प्रजाति भी तलाशी है। अहम बात यह है कि प्रजातियों के संरक्षण को लेकर बर्फ, पानी, हाइट आदि बिंदुओं पर फोकस कर इसी तरह की जगहों पर लगाया गया है।
लिपुलेख सड़क निर्माण से तिलमिलाया नेपाल सीमा पर बढ़ाता जा रहा सुरक्षा
स्टार्टअप शुरू करने को काेई बेहतर आईडिया है तो आईआईएम काशीपुर में करें आवेदन