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पहाड़ से लेकर तराई तक घाटे में गांधी की खादी, उत्पादन के साथ ही बिक्री भी हुई प्रभावित

एक दौर में पहाड़ से लेकर तराई तक लोगों को रोजगार देने का अकेला माध्यम गांधी आश्रम आज घाटे में चल रहा है। यहां उत्‍पादन और बिक्री दोनों में कर्मी आई है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Mon, 23 Sep 2019 10:25 AM (IST)Updated: Tue, 24 Sep 2019 10:47 AM (IST)
पहाड़ से लेकर तराई तक घाटे में गांधी की खादी, उत्पादन के साथ ही बिक्री भी हुई प्रभावित
पहाड़ से लेकर तराई तक घाटे में गांधी की खादी, उत्पादन के साथ ही बिक्री भी हुई प्रभावित

अल्मोड़ा, बृजेश तिवारी : एक दौर में पहाड़ से लेकर तराई तक लोगों को रोजगार देने का अकेला माध्यम गांधी आश्रम आज घाटे में चल रहा है। खादी को बढ़ावा देने के कुमाऊं के छह जिलों में स्थापित क्षेत्रीय उत्पादन केंद्रों में बिक्री और उत्पादन दोनों घट रहा है। जिस कारण अब पहाड़ से तराई तक गांधी की खादी का अस्तित्व खतरे में दिखने लगा है। 

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आजादी की लड़ाई के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कुमाऊं में अनेक स्थानों का भ्रमण किया। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की सभा को संबोधित करने के लिए वह सोमेश्वर के चनौदा भी पहुंचे। विदेशी कपड़े त्यागने के बापू के आह्वान के बाद स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शांति लाल त्रिवेदी ने 1937 में चनौदा में खादी आश्रम की स्थापना की। इस गांधी आश्रम ने आजादी की लड़ाई में विदेशी कपड़ों की होली जलाने और स्वदेशी खादी के प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका निभाई थी। खादी के व्यापक प्रचार-प्रसार के बाद कुमाऊं के अल्मोड़ा, बागेश्वर, पिथौरागढ़, चम्पावत, नैनीताल और ऊधमङ्क्षसह नगर में भी अनेक स्थानों पर गांधी आश्रमों की स्थापना की गई। दो दशक पूर्व तक गांधी आश्रम के जरिए दो सौ से अधिक कर्मचारी और पांच सौ से अधिक कत्तीन और बुनकरों को इन गांधी आश्रमों से रोजगार भी मुहैया होता था। यहां निॢमत शॉल, टोपी, कोट, जैकेट, मफलर, चादर, रजाई गद्दों के अलावा ग्रामोद्योग के तहत बक्शे और अलमारियों का भी निर्माण किया जाता था। जिन्हें कुमाऊं के सभी जिलों के अलावा बाहरी प्रदेशों में भी भेजा जाता था। 1998 के बाद से गांधी आश्रम लगातार घाटे में चल रहा है। इधर, सरकार से मिलने वाली दो सालों की दस प्रतिशत सब्सिड़ी भी गांधी आश्रम को नहीं मिल पाई है। जिस कारण उत्पादन और बिक्री लगातार कम हो रही है। कच्चा माल न आ पाने के कारण अब बुनकरों का रोजगार भी छिनता जा रहा है। देखरेख के अभाव में चनौदा स्थित संस्था का भवन भी जीर्ण शीर्ण हालत में पहुंच गया है। वर्तमान में गांधी आश्रम करोड़ों रुपये के घाटे में है और यहां कर्मचारियों की संख्या भी घटकर करीब अस्सी रह गई है। 

तिब्बत की ऊन का भी होता था प्रयोग 

गांधी की खादी के इन आश्रमों में तिब्बत समेत देश के अलग अलग राज्यों से ऊन मंगाकर उत्पाद तैयार किए जाते हैं। हरियाणा, राजस्थान और पंजाब से कच्चा माल मंगाया जाता था। जिसके बाद तैयार उत्पादों को देशी विदेशी सैलानी भी खरीदते थे। घाटे में आने के बाद अब बाहरी राज्यों से कच्चा माल आना भी बंद हो गया है। 

गांधी आश्रम का गिरता उत्पादन और बिक्री 

वर्ष -उत्पादन (करोड़ में)-बिक्री (करोड़ में)

2015                         176.31                                     565.88

2016                         171.99                                     514.26

2017                         136.89                                     469.84

(वर्ष 2018 से वर्तमान तक भी गांधी आश्रम की आय और उत्पादन इन आंकड़ों से कम रही है।)

दो सालों की नहीं मिली सब्सिडी 

सोबन सिंह बिष्ट, मंत्री, गांधी आश्रम चनौदा ने बताया कि राज्य और केंद्र सरकार से मिलने वाली दो सालों की सब्सिडी ना मिलने के कारण हालत और खराब हो गई है। कच्चा माल भी नहीं खरीदा जा पा रहा है। जिससे प्रभाव उत्पादन और बिक्री पर पड़ा है और कई लोग बेरोजगार भी हो गए हैं। खुले बाजार में रेडीमेट कपड़ों की प्रतियोगिता ने भी खादी के व्यवसाय पर असर डाला है। 

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