ये खंडहर हो चुके रूमा गांव की तस्वीर है, कभी 60 से अधिक रहा करते थे परिवार
ये तस्वीर है अल्मोड़ा जिले के रानीखेत तहसील व ताड़ीखेत ब्लॉक के सुदूर रूमा गांव की। यहां 60 के दशक में आई पलायन रूपी आपदा ने इसे फिर आबाद न होने दिया। किसी दौर में यहां 50 परिवार (ब्राह्मण सती) व 12 शिल्पकारों का कुनबा रहता था।
अल्मोड़ा, दीप सिंह बोरा : यही कोई बीस कमरों की बाखली (कॉलोनी)। लगभग 20 मीटर लंबा ही आंगन। जो कुमाऊं की पटाल संस्कृति के जिंदा होने का सबूत दे रही। लंबे चौड़े आंगन के बीच खोली (बुजुर्गों के बैठने का विशिष्ट स्थान)। ज्यादातर दोमंजिले मकान। करीने से तैयार किए गए सीढ़ीदार खेत। भूमि देवता गोलू व कुलदेवी के मंदिर, वगैरह...। सब कुछ किसी दौर में खुशहाल व समृद्ध कृषि प्रधान गांव की गवाही भी दे रहे। मगर खंडहर हो चुकी परंपरागत बाखली व बंजर खेत मौन रहकर भी पलायन की पीड़ा बयां कर रही।
ये तस्वीर है अल्मोड़ा जिले के रानीखेत तहसील व ताड़ीखेत ब्लॉक के सुदूर रूमा गांव की। यहां 60 के दशक में आई पलायन रूपी आपदा ने इसे फिर आबाद न होने दिया। किसी दौर में यहां 50 परिवार (ब्राह्मण सती) व 12 शिल्पकारों का कुनबा रहता था। बुनियादी सुविधाएं तब पूरे पहाड़ की ही समस्या रहीं। मगर यहां के लोग रोजगार व बच्चों की पढ़ाई के लिए बाहर निकले और वहीं के होकर रह गए। 1997-98 में शेष दो परिवार भी गांव छोड़ गए। अबकी वैश्विक महासंकट में जहां जिले में 50 हजार प्रवासी वापस अपने गांव लौटे, मगर रूमा गांव का रुख किसी ने नहीं किया।
अल्मोड़ा जिले में 256 गांव वीरान
पलायन रोकने को गठित आयोग ने पर्वतीय जिलों के 7950 ग्राम पंचायतों के 16500 गांव व तोकों का सर्वे कर बीते मई में जो रिपोर्ट दी, उसके मुताबिक एक दशक में 3946 ग्राम पंचायतों से 118981 ग्रामीणों ने अपने अपने गांव छोड़ दिए। 2.80 लाख घरों पर ताले पड़ चुके हैं। पौड़ी जिले में राज्य गठन के बाद सर्वाधिक 370 व अल्मोड़ा में 256 गांव पलायन से वीरान हो चले हैं। पूर्व सीएम हरीश रावत ने 1100 गांवों को भुतहा घोषित कर रिमाइग्रेशन की योजना को कैबिनेट में मंजूरी दिलाई पर अमल न हो सका।
कहां, कितने घर खाली
पौड़ी : 38764
अल्मोड़ा : 38568
टिहरी : 37450
पिथौरागढ़ : 25904
नैनीताल : 23939
चमोली : 20765
उत्तरकाशी : 12844
चंपावत : 12727
रुद्रप्रयाग : 11609
बागेश्वर : 11556
राज्य सरकार हरीश रावत की नीतियों को लागू करे
उपनेता प्रतिपक्ष करन माहरा का कहना है कि माइग्रेशन रोकने को भले राज्य सरकार ने पलायन आयोग गठित कर लिया, रिपोर्ट भी दे दी गई है। मगर मगर खाली हो चुके गांव दोबारा कैसे आबाद होंगे, ब्लू प्रिंट तैयार नहीं है। राज्य सरकार को चाहिए वह पूर्व सीएम हरीश रावत की नीतियों को लागू करे। हम पलायन कर चुके लोगों को अपनी जमीन पर सोलर प्लांट लगा बिजली उत्पादन का सुझाव देंगे। उजाड़ पड़े खेतों में पॉलीहाउस में सब्जी उत्पादन कराने की कोशिश करेंगे। एक ठोस कार्ययोजना बनाकर ऐसी व्यवस्था की जाएगी कि आसपड़ोस के जरूरतमंद ग्रामीण किराए पर खेती कर आबाद कर सकें।
साल में एक बार आते हैं पूजा करने
डौरब गांव के गोधन सिंह बिष्ट बताते हैं कि रूमा गांव टूनाकोट सेरा का तोक है। मैंने 1997-98 तक दो ही परिवार देखे। वह भी पलायन कर गए। यहां के लोग उच्च पदों पर हैं। बड़े व्यवसाय भी कर रहे। 60 के दशक में पलायन कर धीरे-धीरे कमोला धमोला हल्द्वानी, कालाढूंगी, भीमताल, नैनीताल व रानीखेत बाजार में जाकर बस गए। नवरात्र पर साल में एक बार भूमि देवता, कत्यूर व कुलदेवी के मंदिर में दीया धूप जलाने जरूर आते हैं।