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कभी तराई के जंगल में भी दिखा था दलदली जंगलों में पाया जाने वाला गैंडा NAINITAL NEWS

दलदली जंगलों में पाए जाने वाला गैंडा आज तक कभी उत्तराखंड के जंगलों में अपना आशियाना नहीं बना सका।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Mon, 15 Jul 2019 06:13 PM (IST)Updated: Tue, 16 Jul 2019 10:05 AM (IST)
कभी तराई के जंगल में भी दिखा था दलदली जंगलों में पाया जाने वाला गैंडा NAINITAL NEWS
कभी तराई के जंगल में भी दिखा था दलदली जंगलों में पाया जाने वाला गैंडा NAINITAL NEWS

हल्द्वानी, जेएनएन : दलदली जंगलों में पाए जाने वाला गैंडा आज तक कभी उत्तराखंड के जंगलों में अपना आशियाना नहीं बना सका। हालांकि वन विभाग के अफसरों की माने तो 15 साल पहले तराई के जंगलों में सिंगल गैंडे के दिखने पर सभी महकमे से लेकर आम लोग तक चौंके थे। नानकमत्ता व सितारगंज के जंगल में इसे देखा गया। अब यह इलाका बाराकोली रेंज में आता है। हालांकि रेस्क्यू अभियान चलाने से पहले यह खुद गायब हो गया था। 
उत्तराखंड के जंगल गैंडों के लिए मुफीद नहीं हैं। यहां अधिकांश जंगल पर्वतीय क्षेत्र में है। हरिद्वार व ऊधमसिंह नगर का जंगल मैदानी है, लेकिन यहां दलदली तालाबों की संख्या न के बराबर होने की वजह से गैंडे का आवास असंभव है। वन विभाग की माने तो साल 2004 में बरसात के सीजन में अकेला गैंडा सितारगंज व नानकमत्ता से सटे जंगल तक पहुंच गया। पता चला कि यूपी के दूधवा नेशनल पार्क से नेपाल के रास्ते उसकी तराई के जंगल में एंट्री हुई थी। तब गैंडे का सुरक्षित रेस्क्यू करने के लिए ट्रैंकुलाइज करने की योजना बनाई गई। सभी संसाधन जुटाने के बाद चिकित्सकों व वनकर्मियों की टीम ने अभियान भी शुरू किया। लेकिन कई दिन तलाशने के बावजूद उसका कुछ पता नहीं चला। वन विभाग के पुराने अफसरों के मुताबिक जंगल के रास्ते ही गैंडा वापस लौट गया था। 

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घंटों कीचड़ में सने रहने की आदत
गैंडे को रहने के लिए कीचड़ से सना इलाका पसंद है। इसमें वह घंटों पड़ा रहता है। आमतौर पर घास खाने वाला यह वन्यजीव खोदकर खाना भी पसंद करता है। दलदल या तालाब के सूखने पर यह उस इलाके को छोड़कर दूसरी जगह मूव करता है। 

230 साल पहले कोटद्वार में दिखा गैंडा
उत्तराखंड के जंगल में 230 साल पहले भी गैंडा देखा गया था। ब्रिटिश चित्रकार थॉमस डैनियल और भतीजे विलियम डेनियल ने अपनी किताब में इस बात का खुलासा किया था। कोटद्वार के जंगल में साल 1779 में इसे देखने का दावा किया गया था। किताब में गैंडे व उस जगह का स्कैच भी बनाया गया है। हालांकि वन विभाग ने इसकी अधिकारिक तौर पर पुष्टि नहीं की। 

रेस्‍क्‍यू करने के बाद भी नहीं कुछ पता चला था 
डॉ. पराग मधुकर धकाते, वन संरक्षक पश्चिमी वृत्त ने बताया कि यह मामला साल 2004 का है। सितारगंज और नानकमत्ता के जंगल में इसे देखा गया। रेस्क्यू अभियान भी शुरू किया गया था, लेकिन फिर कुछ पता नहीं चला।


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