शहर को कूड़ा मुक्त करने की जिद ऐसी कि 55 की उम्र में बनीं मिसाल
गंदगी और अतिक्रमण के खिलाफ रेवती कांडपाल ने सोच बदलने की लड़ाई लड़ी। हल्द्वानी के जिस मोहल्ले में वो रहती हैं लोग उसे कूड़ा गली के नाम से जानते थे, उन्होंने लोगों की सोच बदली।
सतेंद्र डंडरियाल, हल्द्वानी : 'शहर को कूड़ा मुक्त बनाने के लिए मैंने भूत की तरह काम किया, अब आप चाहे मुझे झांसी की रानी कहो या फूलन देवी। मैंने खुले में कचरा फेंकने वालों के खिलाफ हाथों में दरांती तक उठा ली। लोग मुझे रेवती कांडपाल के नाम से कम और कूड़ा साफ करने वाली के नाम से ज्यादा जानने लगे थे। दिन देखा न रात बस हम निकल पड़े कूड़ा साफ करने। ऐसा भी वक्त आया जब रात को मोबाइल टॉर्च की रोशनी में हमने लोगों को रोक कर पूछा कूड़ा कहां डालते हो, तो लोग चौंक जाते थे।'
गंदगी और अतिक्रमण के खिलाफ रेवती कांडपाल ने सोच बदलने की लड़ाई लड़ी। हरिपुर नायक स्थित विकास नगर के सेक्टर टू की जिस गली में रेवती कांडपाल का आवासीय भवन था, उस गली को लोग कूड़ा गली के नाम से जानते थे। आलम यह था कि गंदी गली से लोग बारात नहीं ले जाते थे। गली के सामने कचरे का पहाड़ था। बस यूं एक दिन रेवती कूड़े के ढेर पर जाकर खड़ी हो गई और प्रतिज्ञा कर ली कि अब किसी को यहां कूड़ा नहीं डालने दूंगी। शुरूआत इतनी आसान भी नहीं थी, लोगों ने सवाल उठाए कि तुम कौन होती हो रोकने वाली, रेवती का जवाब होता क्या तुम्हारे पास लाइसेंस है खुले में कूड़ा डालने का। महिलाएं साथ आई तो एक टोली बनी ली, जो रात को डांडा लेकर कूड़ा डालने वालों पर नजर रखने लगी। दो चार लोगों को पकड़ा गया और कूड़े सहित वापस घर लौटाया गया। गली के सामने जिस खाली पड़े प्लाट पर कूड़े का पहाड़ खड़ा था उसे हटाने की मुहिम शुरू हुई। बीस हजार रुपये का चंदा जमा कर सत्तर ट्रक कूड़ा हटाया गया।
रेवती बताती हैं कि खाली प्लाट में आसपास के लगभग दो हजार परिवार घर का कचरा डालते थे। फिर सामाजिक संस्था की मदद से कूड़ा गाड़ी लगवाई गई।
गंदगी से हुई थी तीन लोगों की मौत
हरिपुर नायक स्थित विकास नगर से सटी मलिन बस्ती में गंदगी के कारण लोग बीमारी की चपेट में आ रहे थे। बस्ती में एक ही परिवार के तीन लोगों की मौत पीलिया से हुई थी। जिसके बाद लोग जागे और इलाके में सबसे पहले महिलाओं ने गंदगी के खिलाफ मोर्चा खोला।
घर में ही जैविक कचरे का निस्तारण
किचन से निकलने वाले जैविक कचरे का निस्तारण घर में ही किया जा सकता है। इसके लिए घर के बाहर खाली जगह पर एक गड्ढा खोद कर उसमें जैविक कचरा डालें। गड्ढे को हमेशा ढक कर रखें, खुला न छोड़ें। कुछ समय बाद कूड़ा जैविक खाद बन जाएगा। रेवती कांडपाल बताती हैं कि वह महीने में सिर्फ एक बार कूड़ा गाड़ी में घर का कूड़ा डालती हैं। पॉलीथीन का इस्तेमाल नहीं करती।
घर-घर जाकर किया सर्वे
दमुवाढूंगा से लेकर देवलचौड़ तक रेवती कांडपाल के साथ महिलाओं की टोली ने सात गांव के ग्यारह हजार घरों में जाकर सर्वे किया। जिसमें लोगों से पूछा गया कि वह अपने घर का कूड़ा कहां निस्तारित करते हैं। सर्वे में सामने आया क अधिकांश लोग कूड़ा निस्तारण की उचित व्यवस्था न होने के कारण खुले में कूड़ा डालने को मजबूर हैं। फिर लोगों को घर में ही जैविक कचरे का निस्तारण करने के तरीके बताए गए।
स्वच्छता को लेकर बदलनी होगी सोच
रेवती कांडपाल ने कहा कि मैंने कूड़े खिलाफ जंग में हार नहीं मानी। सोशल मीडिया पर स्वच्छता का दिखावा न हो, परिवर्तन दिल से होना चाहिए। मेरी लड़ाई सोच बदलने को लेकर है, जब तक स्वच्छता को लेकर सोच नहीं बदलेगी हम कामयाब नहीं होंगे।