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गंदगी के खिलाफ सोच बदलने के साथ हर स्तर पर रेवती ने लड़ी लड़ाई, जानिए कूड़े के खिलाफ जंग की अनोखी कहानी

रेवती कांडपाल ने कुछ महिलाओं को साथ पहले कूड़ा उठाया। कई बार यह प्रक्रिया दोहराई। रात के अंधेरे में टाॅर्च लेकर निगरानी करने लगीं। डर दिखाने के लिए हाथों में दराती थाम ली।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Tue, 11 Aug 2020 07:48 AM (IST)Updated: Wed, 12 Aug 2020 12:59 PM (IST)
गंदगी के खिलाफ सोच बदलने के साथ हर स्तर पर रेवती ने लड़ी लड़ाई, जानिए कूड़े के खिलाफ जंग की अनोखी कहानी
गंदगी के खिलाफ सोच बदलने के साथ हर स्तर पर रेवती ने लड़ी लड़ाई, जानिए कूड़े के खिलाफ जंग की अनोखी कहानी

हल्द्वानी, गणेश पांडे : हल्द्वानी के हरिपुरनायक का विकास नगर इलाका। गली के किनारे की खाली जगह को लोगों ने कूड़े का डंपिंग जोन बना दिया। देखादेखी सभी कूड़ा डालने लगे तो कचरे का पहाड़ खड़ा हो गया। कालोनी की रहने वाली रेवती कांडपाल ने मुहिम छेड़ी। कुछ महिलाओं को साथ लिया। गांधीगिरी की तरह पहले कूड़ा उठाया। कई बार यह प्रक्रिया दोहराई। रात के अंधेरे में टाॅर्च लेकर निगरानी करने लगीं। डर दिखाने के लिए हाथों में दराती थाम ली। जगह-जगह बोर्ड लगा दिए और कचरा फेंकने पकड़े जाने पर एक हजार रुपये जुर्माना वसूलना शुरू किया। रेवती के दृढ़ निश्चय, जज्बे और जुनून ने आखिरकार उन्हें कामयाबी दिला दी।

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गंदगी के खिलाफ रेवती कांडपाल ने सोच बदलने की लड़ाई लड़ी। हरिपुर नायक स्थित विकास नगर के सेक्टर टू की जिस गली में उनका आवास था, लोग उसे कूड़ा गली के नाम से जानते थे। आलम यह था कि गंदी गली से लोग बारात नहीं ले जाते थे। गली के सामने कचरे का पहाड़ था। एक दिन रेवती कूड़े के ढेर पर जाकर खड़ी हो गईं और प्रतिज्ञा कर ली अब किसी को यहां कूड़ा नहीं डालने देंगी। शुरुआत इतनी आसान नहीं थी। लोगों ने सवाल उठाने लगे तुम कौन होती हो रोकने वाली। रेवती का जवाब होता क्या तुम्हारे पास लाइसेंस है खुले में कूड़ा डालने का।

महिलाएं साथ आई तो एक टोली बनी ली। डंडा, दराती हाथ में लेकर रात में कूड़ा डालने वालों पर नजर रखने लगी। दो चार लोगों को पकड़ा गया और कूड़े सहित वापस घर लौटाया गया। गली के सामने जिस खाली पड़े प्लाट पर कूड़े का पहाड़ खड़ा था उसे हटाने की मुहिम शुरू हुई। बीस हजार रुपये का चंदा जमा कर सत्तर ट्रक कूड़ा हटाया गया। जो लोग खूले में कूड़ा फेंक रहे थे, उनकी जेब से पैसा निकलवाना भी किसी चुनौती से कम नहीं था। सात साल पहले शुरू हुई स्वच्छता की मुहिम आज भी जारी है। सुबह पांच बजे ही महिलाएं कालोनियों में राउंड लगाने निकल पड़ती हैं।

गंदगी से हुई थी तीन लोगों की मौत

हरिपुर नायक स्थित विकास नगर से सटी मलिन बस्ती में गंदगी के कारण लोग बीमारी की चपेट में आ रहे थे। बस्ती में एक ही परिवार के तीन लोगों की पीलिया से मौत हुई थी। जिसके बाद लोग जागे और इलाके में सबसे पहले महिलाओं ने गंदगी के खिलाफ मोर्चा खोला। जिसका नतीजा हुआ कि लोगों की सोच में बदलाव आने लगा।

 

इस तरह हुई कूड़ा वाहन की शुरुआत

रेवती बताती हैं कि खाली प्लाट में आसपास के लगभग दो हजार परिवार घर का कचरा डालते थे। पर्यावरण विकास अभियान संघर्ष समिति के लगातार प्रयासों के बाद लोग 60 रुपये महीना देकर वाहन को कूड़ा देने को राजी हुए। समिति ने दमुवाढूंगा से लेकर देवलचैड़ तक सात गांव के 11 हजार घरों में जाकर सर्वे किया। लोगों से पूछा गया कि वह अपने घर का कूड़ा कहां निस्तारित करते हैं। सर्वे में सामने आया कि अधिकांश लोग कूड़ा निस्तारण की उचित व्यवस्था न होने के कारण खुले में कूड़ा डालने को मजबूर हैं। लोगों को घर पर ही जैविक कचरे के निस्तारण के तरीके बताए।

सख्त कानून की जरूरत : रेवती

रेवती कहतीं हैं अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन की तर्ज पर गंदगी भारत छोड़ो का नारा अच्छा है, लेकिन कूड़े से मुक्ति के लिए पहले दिमाग की में जमी धूल साफ करनी होगी। कूड़ा प्रबध्ंान के ठोस उपाय के साथ गंदगी फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कानून बने, ताकि भारी भरकम जुर्माने और जेल की सजा से लोग डरें। स्वतंत्र दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी का इस कानून का ऐलान करना चाहिए।


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