प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाएं सुधारने के लिए हुआ था बांडधार डॉक्टरों का प्रावधान NAINITAL NEWS
राज्य के बड़े शहरों से लेकर दूरस्थ क्षेत्रों में सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों की कमी सरकार का बड़ा सिरदर्द बनी है।
नैनीताल, किशोर जोशी : राज्य के बड़े शहरों से लेकर दूरस्थ क्षेत्रों में सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों की कमी सरकार का बड़ा सिरदर्द बनी है। चिकित्सकों की कमी की वजह से पब्लिक को महंगी स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ लेने के लिए मैदानी क्षेत्रों में निजी अस्पतालों पर निर्भर रहना पड़ रहा है। सरकार व पब्लिक की इसी मजबूरी का फायदा उठाकर निजी चिकित्सालय खूब फूल-फल रह हैं।
दरअसल राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में चिकित्सकों की कमी दूर करने के लिए सरकार ने नौ नवंबर 2009 को एक अहम निर्णय लिया था। इसके तहत एमबीबीएस की ऑल इंडिया कोटे की 15 फीसद सीटोंं में दाखिला लेने वाले अभ्यर्थियों को विकल्प दिया गया था। जिसमें कहा था कि पहाड़ में पांच साल सेवा के इच्छुक अभ्यर्थी को सालाना दो लाख 20 हजार के स्थान पर मात्र 15 हजार शुल्क देय होगा। फिर 23 मई 2013 को सरकार ने सब्सिडाइज्ड शुल्क को 15 हजार से बढ़ाकर 40 हजार व बिना सब्सिडी के शुल्क को दो लाख 20 हजार से बढ़ाकर चार लाख कर दिया था। इन चिकित्सकों का कहना था कि उनका चयन ऑल इंडिया कोटे के तहत हुआ है, लिहाजा सरकार उन पर कोई शर्त नहीं थोप सकती। उन्होंने एकलपीठ में याचिका दायर कर सुप्रीम कोर्ट के 2001 के महाराष्ट्र के आनंद एस से संबंधित केस में दिए गए फैसले को आधार बनाया था। एकलपीठ ने सरकार की बांड व्यवस्था को ही निरस्त कर दिया था।
बुधवार को बांड धारक चिकित्सकों को पहाड़ भेजने के मामले में विशेष अपील पर सुनवाई में सरकार की ओर से बहस करते हुए सीएससी परेश त्रिपाठी ने साफ किया कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला यहां के केस में प्रभावी नहीं है। यहां सरकार ने जबरन शर्त नहीं थोपी थी बल्कि इन अभ्यर्थियों ने इच्छानुसार सब्सिडी रेट पर एमबीबीएस का विकल्प चुना था। कोर्ट के ताजा आदेश के बाद राज्य के दुर्गम क्षेत्र के अस्पतालों में चिकित्सकों की तैनाती का रास्ता खुल गया है। कोर्ट ने सरकार की दलील को सही ठहराते हुए चिकित्सकों को साफ संदेश दे दिया है कि यदि उन्होंने सब्सिडी का फायदा लिया है तो अनुबंध का अनुपालन करना होगा। अन्यथा ब्याज सहित लौटाएं।
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