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इंटरनेट मीडिया के माध्यम से घर-घर पहुंच रही बैठकी होली, आज से दूसरे कार्यशाला का प्रारंभ

होली गायन का सामूहिकता में ही आनंद है। यह इसलिए क्योंकि होली गायन में गायक व श्रोता के बीच किसी तरह का भेद नहीं रहता। कोरोना काल में उपजी परिस्थितियों में जन स्वास्थ्य को देखते हुए होली गायन का आनलाइन प्रसारण हो रहा है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sun, 17 Jan 2021 06:45 AM (IST)Updated: Sun, 17 Jan 2021 06:45 AM (IST)
इंटरनेट मीडिया के माध्यम से घर-घर पहुंच रही बैठकी होली, आज से दूसरे कार्यशाला का प्रारंभ
इंटरनेट मीडिया के माध्यम से घर-घर पहुंच रही बैठकी होली, आज से शुरू होगा दूसरा कार्यशाला का चरण

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : होली गायन का सामूहिकता में ही आनंद है। यह इसलिए क्योंकि होली गायन में गायक व श्रोता के बीच किसी तरह का भेद नहीं रहता। कोरोना काल में उपजी परिस्थितियों में जन स्वास्थ्य को देखते हुए होली गायन का आनलाइन प्रसारण हो रहा है। हल्द्वानी में 1990 से होली कार्यशाला आयोजित कर रही हिमालय संगीत शोध समिति होली गीतों की रिकार्डिंग करा रही है। जिन्हें यूट्यूब के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया जा रहा है। समिति रविवार से दूसरे चरण की होली कार्यशाला आयोजित करेगी। जिसे फेसबुक पेज के माध्यम से आनलाइन प्रसारित किया जाएगा। संगीतज्ञ डा. पंकज उप्रेती के निर्देशन में टीम होली गायन करेगी।

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अधिकांश होली गीतों के रचनाकारों का पता नहीं

कुमाऊं के होली गीत भावनाओं से भरे हैं। इनका काव्य स्वरूप इसका परिचय देता है। संगीत पक्ष भी शास्त्रीय व गहरा है। संगीतज्ञ डा. पंकज उप्रेती कहते हैं कि पहाड़ का प्रत्येक किसान आशु कवि है। गीत के ताजा बोल गाना और फिर उसे विस्मृत कर देना सामान्य बात लगती है। इस कारण होली गीतों के रचनाकारों का पता नहीं चलता। हालांकि कतिपय विद्वानों के नाम जरूरत सामने आते हैं।

गुमानी पंत की मुरली नागिन सों रचना लोकप्रिय

पंडित लोकरत्न पंत गुमानी ने होली गीत रचे हैं। राग श्यामकल्याण आधारित इनकी एक रचना को काफी गाया जाता है। इसके बोल मन को प्रफुल्लित कर देते हैं-

मुरली नागिन सों, वंशी नागिन सों

कह विधि फाग रचायो, मोहन मन लीनो। मुरली..।

व्रज बांवरो मोसे बांवरी कहत है,

अब हम जानी, बांवरो भयो नंदलाल। मोहन..।

सूरन के प्रभु गिरिधर नागर,

कहत गुमानी दरस तिहारो पाया। मोहन..।

चारु पांडे के होली गीत काफी प्रसिद्ध

रचनाकार चारु चंद्र पांडे ने बैठकी होली के लिए कई रचनाएं लिखी। पांडे पहाड़ की बैठकी होली के मिजाज से परिचित हैं, इसलिए उन्होंने उसी तरंग की रचनाओं को गुंथा जो काफी लोकप्रिय हैं। राग धमार की उनकी एक रचना काफी लोकप्रिय है-

झलकत ललित त्रिभंग मधुर श्री रंग, जब धरी रे मुरलिया।

फाग मची, डफ झांझ झमक गये, बाजत बीन मृदंग।

चारु कदम तर शोभित नटवर, वारौ कोटी अनंग।।

चारु चंद्र की दूसरी रचना भी कर्णप्रिय

चारु चंद्र पांडे की एक अन्य रचना है। जिसे भी होली के रसिक काफी पसंद करते हैं।

मनसुख लाओ मृदंग नाचत आई चन्द्रावलि पग बांध घुंघरवा।

ताल पखावज बाजन लागे, अरु डफली मुरचंग।

चारु प्रिया संग श्यामसुन्दर पर, बरसाओ नवरंग।

कई रचनाओं के रचनाकारों का पता नहीं

कोटद्वार निवासी महेशानंद गौड़ की होली रचनाएं बहुत लोकप्रिय हैं। संगीतज्ञ डा. पंकज उप्रेती कहते हैं कि होली गीत गाने वाले अधिकांश होल्यारों को पता भी नहीं है कि वह किसकी लिखी रचना गा रहे हैं। राग काफी पर गाई जाने वाली एक लोकप्रिय रचना-

सबको मुबारक होली, फागुन ऋतु शुभ अलबेली।

घर-घर अंगना रंग अबीर है, खुशियों की रंगरेली,

तन रंग लो तुम प्रभु के रंग में, रंग लो मन की चोली।


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