प्राइवेट नौकरी रास न आई, घर आकर कमरे में शुरू की मशरूम खेती, घर बैठे कमा रहे हजारों
पहाड़ में मशरूम की खेती करना टेढ़ी खीर है लेकिन इच्छा शक्ति हो तो पत्थर पर भी घास उगाया जा सकता है।
बागेश्वर, घनश्याम जोशी : पहाड़ में मशरूम की खेती करना टेढ़ी खीर है, लेकिन इच्छा शक्ति हो तो पत्थर पर भी घास उगाया जा सकता है। कुछ ऐसा ही किया है उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के कठायतबाड़ा के कास्तकार प्रताप सिंह गढ़िया ने। उन्होंने मौसम को मात देकर बटन मशरूम की खेती बंद कमरे में शुरू की। उद्यान विभाग ने उन्हें इसमें पूरी मदद की। पहली बार ही उत्पादन अच्छा हुआ तो हौसला बढ़ा। प्रताप बताते हैं कि अब हर महीने करीब 15 से 20 हजार रुपए तक आमदनी हो जा रही है। उत्पादन और वृहद पैमाने पर करने की इच्छा है। प्रताप बताते हैं कि सिर्फ 20 से 25 दिनों के भीतर मशरूम की अच्छी फसल तैयार की जा सकती है।
बाजार में मशरूम 250 से लेकर 300 रुपये प्रतिकिलो तक बिक रहा है। कास्तकार अन्य किसानों को भी इसके लिए प्रेरित कर रहे हैं। मालूम हो मशरूम बेहद पोष्टिक और स्वादिष्ट होता है। जिसकी बाजार में मांग भी है। मशरूम उत्पादन के लिए कम से कम 22 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है और 20 से 25 दिनों के भीतर अच्छी फसल लिए जा सकती है।
मन में कुछ करने की तमन्ना हो तो राह आसान हो जाती है। दिल्ली में एक प्राइवेट नौकरी कर रहे प्रताप महीने में मिलने वाली सैलरी से परेशान थे और 12 घंटों तक काम करने के बाद भोजन, रहना आदि में उनकी मेहनत निकल जाती थी। उन्होंने स्वरोजगार का मन बनाया और घर लौट आए। 12/12 के कैमरे में मशरूम की खेती शुरू की। उनकी मेहनत रंग लाई और वे महीने में करीब 15 किलो तक बटन मशरूम तैयार करने लगे हैं। करीब 15 से 20 हजार रुपये प्रतिमाह कमाने भी लगे हैं। जिससे उनकी आय बढ़ी और घर पर ही रोजगार भी मिल गया। कास्तकार प्रताप ने कहा कि पहाड़ में सबकुछ है, लेकिन यहां के लोग सिर्फ नौकरी करने को महत्व देते हैं। हवा, पानी, प्राकृतिक आबोहवा से गांव आज भी लबरेज हैं।
कोरोना महामारी के बाद घर वापसी हो रही है और गांव फिर से आबाद हो रहे हैं। युवाओं को स्वरोजगार की योजनाओं का लाभ उठाना चाहिए। सरकार ने स्वरोजगार की तमाम योजनाएं बनाई हैं। कृषि, उद्यान, मत्स्य, उद्योग और खादीग्रामोद्योग विभाग 30 प्रतिशत से अधिक ब्याज पर ऋण मुहैया करा रहे हैं। उन्होंने कहा कि मशरूम की खेती पहले पहाड़ों में नहीं होती थी। जंगल में उगने वाले मशरूम को बेहतर नहीं माना जाता था। जिसका सेवन कुछ ही लोग करते थे। कृषि वैज्ञानिकों की पहल से पहाड़ में भी मशरूम की खेती होने लगी है। वह अन्य युवाओं को भी अपने साथ जोड़ रहे हैं।
हाइलोजन लगाकर किया तापमान नियंत्रित
मशरूम की खेती के लिए करीब 24 से 36 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है। वर्तमान में करीब दस डिग्री सेल्सियस तापमान नगर का है। प्रताप ने हाइलोजन लगाकर तापमान में वृद्धि की है और मशरूम की खेती उनके घर के भीतर लहलहा रही है।
ज्योलीकोट में प्रताप ने लिया प्रशिक्षण
42 साल के प्रताप ने जौलीकोट में मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण लिया। वहां से मशरूम का बीज, कंपोस्ट आदि उद्यान विभाग ने 50 प्रतिशत सब्सिडी पर मुहैया कराया। करीब 21 दिनों में दस से लेकर 15 किलो तक मशरूम का वे उत्पादन कर लेते हैं।
प्रगतिशील किसानों की विभाग कर रहा मदद
जिला उद्यान अधिकारी आरके सिंह ने कहा कि विभाग प्रगतिशील किसानों को मदद कर रहा है। मशरूम की खेती करने पर 50 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जाती है। प्रशिक्षण आदि भी दिए जाते हैं। प्रताप अन्य युवाओं को भी प्रेरित कर रहे हैं। गरुड़, कपकोट और नगर में कई युवाओं को उन्होंने मशरूम उत्पादन से जोड़ा है। वहीं, कृषि विज्ञान केंद्र काफलीगैर के डा. हरीश जोशी ने कहा कि कठायतबाड़ा के कास्तकार ने जाड़ों में भी मशरूम का उत्पादन कर यह जता दिया है कि पहाड़ी जिलों में भी मशरूम की खेती हो सकती है। करीब 21 दिनों में अच्छी फसल ली जा सकती है। बाजार में मांग है और दाम भी अच्छे मिलते हैं। किसानों की आय में इजाफा हो रहा है।