गीतकार प्रसून बोले, पहलाज ने फिल्म में महिला हिंसा को किया है प्रमोट
सहज शब्दों को पिरोकर उसे अर्थपूर्ण बनाने के साथ लोगाें की जुबां पर लाने वाले मशहूर गीतकार प्रसून जोशी काे कुमाऊं विवि ने दीक्षा समारोह में डीलिट की मानद उपाधि प्रदान की।
नैनीताल, जेएनएन। सहज शब्दों को पिरोकर उसे अर्थपूर्ण बनाने के साथ लोगाें की जुबां पर लाने वाले मशहूर गीतकार प्रसून जोशी काे कुमाऊं विवि ने दीक्षा समारोह में डीलिट की मानद उपाधि प्रदान की। इसके पहले प्रसून ने पत्रकारों से बातचीत में बहुत कुछ साझा किया।
निहलानी ने महिला हिंसा का प्रमोट किया
प्रसून ने कहा कि सिनेमेटोग्राफी एक्ट में देश की अखंडता, भावना व मूल्यों का अनुसरण करने वाली फिल्मों के संबंध में प्रावधान है, बोर्ड एक्ट का पालन करता है। फिल्मकार पहलाज निहलानी की फ़िल्म ''रंगीला'' के सीन काटने के मामले पर उन्होंने कहा कि फ़िल्म को एडल्ट सर्टिफिकेट देने की पेशकश की गई थी, लेकिन उनकी इसपर सहमति नहीं बनी। फिल्म उन्होंने नहीं देखी है लेकिन बोर्ड सदस्यों ने देखी है, फिल्म में महिलाओं के साथ हिंसा को प्रमोट किया गया है। महिला को सिर्फ उपभोग की वस्तु बताया है।
विवाद से फिल्मों की हो रही मार्केटिंग
एक सवाल के जवाब में प्रसून ने कहा कि फिल्मों को विवाद में डालकर मार्केटिंग करने का ट्रेंड चल पड़ा है, ऐसे में दर्शक को समझना होगा। उन्होंने केदारनाथ से सम्बंधित फिल्म को लेकर कहा कि अभी फिल्म नहीं देखी है। व्यापक विचार विमर्श के बाद ही निर्णय लिए जाते हैं। उन्होंने कहा कि पहाड़ की वजह से घमंड मुझे छू भी नहीं पाया है। प्रसून ने युवा पीढ़ी से जोश रखने, मूल्यों को पहचानने, धैर्य रखने और सफलता का मतलब बदलने का आह्वान किया।
पहाड़ ने दिया गीतों का संस्कार
फिल्म सेंसर बोर्ड के चेयरमैन व कुमाऊं के अल्मोड़ा निवासी प्रसून जोशी का कहना है कि पहाड़ का होने के नाते उनके गीतों में प्रकृति का सौंदर्य बोध होता है। यही वजह है कि तारे जमीं पर फिल्म के गीत में ''तू धूप है झम से निखर'' जैसे अल्फाज सहज आ जाते हैं और लोगों के जेहन में ठहर जाते हैं।
पीएम के साथ साक्षात्कार क्षण रहा अनमोल
प्रधानमंत्री मोदी के साथ लंदन में साक्षात्कार को जीवन का अनमोल क्षण बताते हुए कहा कि मेरे जीवन में जो अच्छे पल आते हैं, उसके लिए ईश्वर माध्यम बनते हैं। प्रसून ने कहा कि मैं बिजली नहीं , बिजली का तार हूं जिसमें बिजली प्रवाहित होती है।
अल्मोड़ा निवासी हैं प्रसून, जानें कैसे शुरू किया कॅरियर
प्रसून जोशी का जन्म उत्तराखंड के अल्मोड़ा में 16 सितंबर 1971 में हुआ। उनके पिता पीसीएस अधिकारी थे और मां गृहिणी। उनकी संगी में खासी रुचि थी। महज 17 साल की उम्र में प्रसून ने लिखना शुरू कर दिया था। एमबीए करने के बाद वे एक कंपनी से जुड़ गए और वहां उन्होंने दस साल काम किया। घर में गीत संगीत का बेहतर वातावरण मिलने के कारण उन्हें पसंदीदा क्षेत्र में कॅरियर बनाने का अवसर मिला। 17 साल की उम्र में उनकी पहली किताब 'मैं और वो' पब्लिश होकर आ गई थी।
प्रसून की पंचलाइनें
- ठंडा मतलब कोका कोला
- क्लोरमिंट क्यों खाते हैं? दोबारा मत पूछना
- ठंडे का तड़का... यारा का टशन
- अतिथि देवो भव:
- उम्मीदों वाली धूप, सनसाइन वाली आशा, रोने के बहाने कम हैं, हंसने के ज़्यादा।
''लज्जा'' से ली फिल्मों में एंट्री
प्रसून जितना एड लिखने में सहज हैं वे उसी सरलता से फिल्मों के लिए गीत भी लिखते हैं। राजकुमार संतोषी की फिल्म 'लज्जा' ने उन्हें फिल्मों में एंट्री दिलवाई। उन्होंने 'मौला', 'कैसे मुझे तू मिल गई', 'तू बिन बताए', 'खलबली है खलबली', 'सांसों को सांसों', तारे जमीन पर, क्या इतना बुरा हूं मैं मां जैसे मशहूर गाने लिखे हैं।
दुनियाभर में सराही गईं कविताएं
प्रसून की कविताओं में आमजन की संवेदना होती है। चाहे वह लड़कियों-महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव पर लिखी गई हों या फिर मुंबई आतंकी हमले के बाद लिखी गई उनकी कविता। पेशावर के स्कूल में होने वाले आतंकी हमले के बाद लिखी गई उनकी पंक्तियां पूरी दुनिया में काफी सराही गईं थी।
अब तक मिल चुके हैं ये सम्मान
2002 : विज्ञापन जगत का ABBY अवॉर्ड
2003: कान्स लॉयन अवॉर्ड
2005: 'सांसों को सांसों' गाने के लिए स्क्रीन अवॉर्ड
2007: चांद सिफारिश गाने के लिए फ़िल्मफेयर अवॉर्ड
2008: 'मां' गाने के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार और फिल्मफेयर
2013: फ़िल्म 'चिटगॉव' के गीत 'बोलो ना' के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार
2014: फ़िल्म 'भाग मिल्खा भाग' के गाने 'ज़िंदा है तो प्याला पूरा भर ले' के लिए फिल्मफेयर
2015: फ़िल्म 'भाग मिल्खा भाग' के लिए बेस्ट स्टोरी अवॉर्ड
2015: पद्मश्री पुरस्कार
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