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सौरमंडल से बाहर दूसरे ग्रहों पर जीवन की तलाश में तेज हुई खोज, वैज्ञानिकों को मि‍ल सकती है बड़ी सफलता

पृथ्वी की तरह जीवनयोग्य दूसरी धरती की तलाश में एस्सोप्लेनेट व उनके चंद्रमा की तलाश में तेजी आई है वहीं वैज्ञानिकों की निगाहें ड्वार्फ स्टार यानी बौने तारों के ग्रहों पर जा टिकी हैं। नई तकनीक विकसित हो जाने से एक्सोप्लेनेट और उनके चंद्रमा की खोज हुई आसान।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Mon, 19 Oct 2020 05:43 PM (IST)Updated: Mon, 19 Oct 2020 05:43 PM (IST)
सौरमंडल से बाहर दूसरे ग्रहों पर जीवन की तलाश में तेज हुई खोज, वैज्ञानिकों को मि‍ल सकती है बड़ी सफलता
सौरमंडल से बाहर दूसरे ग्रहों पर जीवन की तलाश में तेज हुई खोज।

नैनीताल, रमेश चंद्रा : पृथ्वी की तरह जीवनयोग्य दूसरी धरती की तलाश में एस्सोप्लेनेट व उनके चंद्रमा की तलाश में तेजी आई है, वहीं वैज्ञानिकों की निगाहें ड्वार्फ स्टार यानी बौने तारों के ग्रहों पर जा टिकी हैं। नई तकनीक विकसित हो जाने से एक्सोप्लेनेट और उनके चंद्रमा की खोज आसान हो जाने से धरती के समतुल्य दूसरी दुनिया मिलने की संभावना बढ़ चली है।

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आर्यभटट् प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एरीज के खगोल विज्ञानी डॉ. शशिभूषण पांडे के अनुसार पिछले कुछ ही सालों के अंतराल में एक्सोप्लेनेट की खोज में तेजी आ गई है। एक्सोप्लेनेट यानी ग़ैर-सौरीय ग्रह दूसरे तारों के ग्रह हैं और हमारे सौरमंडल के ग्रहों की तरह उन ग्रहों के अपने चंद्रमा होते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि एक्सोप्लेनेट यानी परग्रहों में पृथ्वी की तरह जीवन होने की संभावना से कतई इंकार नहीं किया जा सकता है। इस दिशा में नासा का केप्लर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, वहीं हब्बल जैसी आकाशीय दूरबीन इस खोज में लगी हुई है।

हाल ही में कनाडा के वैज्ञानिक क्रिस फॉक्स के नेतृत्व में विज्ञानियों के दल ने एक ऐसा एक्सोप्लेनेट सिस्टम खोज निकाला है। जिसके छह एक्सोमून होने की प्रबल संभावना जताई जा रही हैं। यदि यह खोज सफल रही तो वैज्ञानिकों की एक्सोमून को लेकर अब तक की अहम खोज होगी। इसके साथ ही अंतरिक्ष के ड्वार्फ तारों के ग्रहों पर भी जीवन की संभावना विज्ञानी जता रहे हैं। क्योंकि ड्वार्फ तारे अधिक गर्म नही होते हैं। जिस कारण उनके ग्रहों का ताप भी अधिक नहीं हो सकता है। बहरहाल इस दिशा में दुनियाभर की अंतरिक्ष वेदशालाएं जुटी हुई हैं।

एक्सोप्लेनेट की खोज में विकसित नई तकनीक

डॉ शशिभूषण पांडे का कहना है कि नई तकनीक में वर्तमान में मुख्यत: चार तरह की विधि का प्रयोग किया जा रहा है। जिसमें ट्रांजिट, डायरेक्ट इमेज एक्सोप्लेनेट, ग्रेवी माइक्रो लेंसिंग मेथड व स्पेक्ट्रोज कॉपी विधि शामिल है।

यह होते हैं बौने तारे

जो तारे पूर्ण रूप से विकसित नही हो पाते हैं तो वह बौना तारा कहलाता है। इनमें तारे जितनी उर्जा नही होती है और ना ही तेज प्रकाश उत्पन्न करने की क्षमता होती है।


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