पिता के निधन के बाद आई मुश्किलों को स्टंपकर सहेज लिया खुशियों का विकेट
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता की इस बेटी ने पिता के निधन के बाद आई मुश्किलों को स्टंप कर पवेलियन लौटाया तो खुशियों के विकेट को सहेजे रखा। आज भारतीय राष्ट्रीय महिला क्रिकेट टीम में बतौर विकेट कीपर जगह भी बना ली..।
ओपी अवस्थी, पिथौरागढ़। जुनून जब जिद में बदल जाय तो देर ही सही मंजिल मिलती जरूर है। भले सामने सीना ताने चट्टान सी मुश्किल ही क्यों न हो, मार्ग नहीं रोक पाती। लक्ष्य से भटका नहीं पाती। अपनी पहाड़ की बेटी श्वेता वर्मा ने तो यही जताया और पूरे देश को अपनी प्रतिभा से बता भी दिया। उनको भी सीख दी जो अभाव का रोना रोते हैं।
व्यवस्था को कोसते हैं। थल कस्बा..प्रकृति ने इसे करीने से संवारा है। रामगंगा नदी का मीठा पानी, आडू, खुमानी व काफल से लदे वृक्ष सुखद एहसास कराते हैं। हां, पहाड़ी रास्ते जरूर चुनौतीपूर्ण हैं। नदी से गांव तक पानी पहुंचाने की मशक्कत भी कम नहीं। यही सब तो है जो यहां के वाशिंदों को जुनूनी बनाता है। लक्ष्य को हासिल करने के लिए जिद्दी बनाता है। यहीं के जोग्यूड़ा गांव में पली-बढ़ी श्वेता वर्मा इसी जिद व जुनून से अब भारतीय महिला टीम की हिस्सा है। आने वाले दिनों में अंतरराष्ट्रीय मैच में विकेटकीपर व बल्लेबाज के रूप में खेलती नजर आएगी। श्वेता के क्रिकेट को आज भले ही मुकाम मिल गया, लेकिन इस सफर में चुनौतियों की भरमार थी। वह भी तब जब पिता का साया सिर से उठ गया हो।
अभाव में तलाश लिया अवसर: श्वेता थल के एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखती है। वह जहां रहती है वहां खेलने के लिए एक अदद बेहतर मैदान भी मयस्सर नहीं, हालांकि जिस रामलीला मैदान में बल्ला पकड़कर लड़कों के साथ पिच पर उतर क्रिकेट को जीना सीखा वह अब जरूर कुछ बड़ा कर दिया गया है। लेकिन मानकों के अनुसार अभी भी नहीं है। पहाड़ की बेटी, हौसला चट्टान सा: घर से स्कूल का मुश्किल सफर था। खतरों से भरी पहाड़ की चढ़ाई। इन सब से जूझते हुए श्वेता ने जब सफलता हासिल की और विषम भौगोलिक परिस्थिति से जूझने वाली पहाड़ी बेटियों को नई राह दिखाई है। जिले की पहली अंतरराष्ट्रीय महिला क्रिकेटर बनकर मानक भी स्थापित किया। पूरा थल आज बेटी की उपलब्धि पर गौरवान्वित है। श्वेता के परिवार से जुड़े मुकेश वर्मा बताते हैं कि वह नजारा भी गजब था जब चयन की खबर थल पहुंची। लोगों ने खुद ही मिठाई बांट कर खुशी जताई।
5वीं कक्षा में पहली बार मिला बल्ला: श्वेता के क्रिकेट के जुनून की चर्चा छिड़ते ही मां कमला वर्मा अतीत में खो जाती हैं। बताती हैं- परिवार के सदस्य जब क्रिकेट मैच देखते तो नन्हीं श्वेता की नजर तो टीवी से हटती ही नहीं थी। मैच शुरू होते ही सहेलियों का साथ छोड़ घर दौड़ आती। 5वीं कक्षा पास करते ही क्रिकेट के प्रति लगाव देख उसे बल्ला दिया गया। इसके बाद तो वह क्रिकेट में ही रम गई।
जुनून से हारे ताने सारे के सारे: गांव में क्रिकेट खेलने के लिए सहेलियों का साथ नहीं मिला तो श्वेता ने हमउम्र लड़कों के साथ ही गांव की सड़क को पिच बनाकर खेलना शुरू किया। यह देख आसपास के घरों की महिलाओं ने ताना भी मारा। सभी कहतीं-देखो कैसी बेटी है। लड़कों के साथ पूरे दिन खेलती है..। घर का काम नहीं सूझता..। लेकिन इस सब से बेपरवाह श्वेता क्रिकेट की ही धुन में रमी रही। मुकाबला टेनिस बॉल से हो या फिर ड्यूक से, वह विकेट के पीछे कीपर के रूप में चट्टान सी खड़ी रहती। मजाल जो एक भी बॉल बाउंड्री के बाहर जाए। फुर्ती ऐसी कि कप्तान को स्लिप में फिल्डर की जरूरत ही नहीं पड़ती।
पिता का साथ छूटा, मां ने थाम लिया: कम आमदनी के बावजूद श्वेता का परिवार खुश था। पूरे परिवार ने बेटी की खातिर कुछ मौकों पर समझौता भी किया। कोशिश यही रही कि श्वेता की प्रैक्टिस प्रभावित न हो। इसीलिए पिता मोहन लाल वर्मा ने वाहन चालक का काम छोड़कर थल की ही खड़ी बाजार में रेडीमेड वस्त्रों की दुकान खोल ली। कारोबार चल पड़ा। दो वर्ष पूर्व अचानक पिता का साया सिर से उठ गया। आमदनी बंद हो गई। लगा क्रिकेट छूट जाएगा। इस मुश्किल घड़ी में मां ने गम भुलाकर बेटी का हाथ थाम लिया और श्वेता का क्रिकेट चलता रहा।
पिथौरागढ़ जिला यूं तो भारत-नेपाल व चीन से तनातनी के लिए चर्चा में रहता है। इस बार थल क्षेत्र के जोग्यूड़ा गांव निवासी श्वेता वर्मा ने इसे राष्ट्रीय पहचान दिलाई है। जागरण आर्काइव
गुरु लियाकत ने हीरा बना दिया : इंटरमीडिएट की पढ़ाई के बाद उच्च शिक्षा के लिए श्वेता कुमाऊं विवि के अल्मोड़ा स्थित सोबन सिंह जीना कैंपस पहुंची। प्रदर्शन के बल पर कॉलेज की टीम में जगह बना ली। यहां खेल को तराशने के लिए लियाकत अली जैसे प्रतिबद्ध कोच मिल गए। वे बताते हैं-क्रिकेट के प्रति किसी लड़की में ऐसा जुनून पहली बार देखा। श्वेता का चयन वर्ष 2016 में उत्तर प्रदेश टीम में हुआ। यही वह टìनग प्वाइंट था, जहां से श्वेता ने राष्ट्रीय टीम में जगह बना ली।
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