coronavirus : पहाड़ के गांवों में कोरोना की चिंता के बावजूद सामाजिक उत्साह कम नहीं
कोरोना वायरस (coronavirus) के खतरे से हर कोई वाकिफ हो चुका है। पहाड़ के गांव की महिलाएं बुजुर्ग नाम भले नहीं जानते हों मगर उन्होंने कोरोना को खतरनाक बीमारी का नाम दिया है।
हल्द्वानी, गणेश पांडे : कोरोना वायरस (coronavirus) के खतरे से हर कोई वाकिफ हो चुका है। गांव की महिलाएं, बुजुर्ग नाम भले नहीं जानते हों, मगर उन्होंने कोरोना को खतरनाक बीमारी का नाम दिया है। लोगों में चिंता है और डर भी। बावजूद इसके सामाजिक उत्साह में किसी तरह की कमी नहीं है। गांव में कोई आयोजन हो तो उसमें छोटे से लेकर बड़े तक सभी जुटते हैं। मिलकर काम करते हैं, खाते हैं, नाचते और गाते भी हैं। शनिवार को यही मिसाल अल्मोड़ा जिले के धौलादेवी ब्लाॅक के क्वैराली गांव में दिखी।
महिलाएं कोरोना को कह रही हैं खतरनाक बीमारी
ग्यारह रोज पहले संसार में आए नकोरोना वायरस (coronavirus) के खतरे से हर कोई वाकिफ हो चुका है। गांव की महिलाएं, बुजुर्ग नाम भले नहीं जानते हों, मगर उन्होंने कोरोना को खतरनाक बीमारी का नाम दिया है। ए मेहमान का शनिवार को नामकरण संस्कार था। पंडितजी के आने से पहले ही गांव के लोगों का एकत्र होना शुरू हो गया। चूल्हे पर आग सुलगाकर ताबे के बड़े तौलों पर भात-दाल के लिए गर्म पानी चढ़ा दिया गया। लोगों ने मिलकर सब्जी काटी। कोई बड़ के लिए उड़द पीसने में जुटा तो कोई मेहमानों के लिए चाय बनाने में जुटा है। कोरोना पर बात के साथ काम भी आगे बढ़ता रहता है।
संस्कार की रस्म निभाई गई
पंडितजी आते हैं। नामकरण संस्कार की रस्म निभाई जाती हैं। नन्हे मेहमान को नाम दिया जाता है प्रकाश। परिजन खुश हैं। लोग बधाई देते हैं। मानो नन्हा मेहमान कोरोना के वैश्विक खतरे के बीच उम्मीद रूपी प्रकाश लेकर आया हो। नामकरण की रस्म पूरी होती है, अब भोजन की बारी है। खेत में कतारबद्ध होकर सभी एक साथ भोजन करने बैठते हैं। धोती लगाए पंडितजी सभी को चावल, दाल, सब्जी के साथ अमचूर की खट्टी-मीठी चटनी परोस रहे हैं। रायते का जायका भी है।
महिलाएं, लड़कियां ढोलक लेकर गीत गाती हैं
सभी के खाना खा लेने के बाद पुरुष बर्तन धोने में जुट जाते हैं। महिलाएं, लड़कियां ढोलक लेकर गीत गाने लगती हैं। खूब नांच होता है। अब महिलाएं एक-दूसरे के हाथों में हाथ डालकर और कदम से कदम मिलाते हैं। बगसै चाबी नेपाल रैगै, सारी संपत्ति पहाड़ रैगै.. के बोल उठते हैं तो कुमाऊं की झोड़ा गाने की परंपरा जीवंत हो उठती है। जश्न के इस माहौल के बीच पार्वती ताई को बेटे की चिंता सता रही है। दिल्ली में होटल में नौकरी करने वाला उनका बेटा कोरोना के भय के बीच कामकाज बंद होने से हल्द्वानी लौट आया है। हल्द्वानी से गांव आने के लिए साधन मिलेगा कि नहीं, इसको लेकर वह चिंतित हैं।
फोन पर लोग ले रहे हैं हालचाल
रविवार को जनता कर्फ्यू होने से वाहनों की आवाजाही बंद रहेगी, इसी चिंता में गोपाल टैक्सी लेकर हल्द्वानी नहीं गया। दिल्ली, चंडीगढ़, अंबाला आदि शहरों से हल्द्वानी पहुंच चुके यात्री गोपाल को फोन कर रहे हैं, मगर वह किसी दूसरी टैक्सी से गांव आने की सलाह दे रहा है। गांव के गोपाल भट्ट की बेटी का मई में विवाह तय है। वह अपनी एकलौती बेटी की शादी की तैयारी में जुटे हैं। उन्हें भरोसा है तब तक कोरोना की हदशत कम हो चुकी होगी। तीन रोज पहले झांसी से आया प्रकाश ग्रामीणों से वहां के हालात को दूसरों से सांझा कर रहा है।
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