निजी अस्पतालों से हड़ताल से बिगड़े हालात, सरकारी अस्पताल मरीजों से पटे
निजी अस्पतालों की बंदी के चलते सरकारी अस्पतालों पर दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है। इसके बावजूद राज्य सरकार किसी भी तरह की वैकल्पिक व्यवस्था करने में नाकाम साबित हो रही है।
हल्द्वानी, जेएनएन : निजी अस्पतालों की बंदी के चलते सरकारी अस्पतालों पर दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है। इसके बावजूद राज्य सरकार किसी भी तरह की वैकल्पिक व्यवस्था करने में नाकाम साबित हो रही है। बुधवार को भी एसटीएच से लेकर बेस व महिला अस्पताल में इमरजेंसी से ओपीडी तक जबरदस्त भीड़ के चलते धक्का-मुक्की होती रही।
फोन से पूछ रहे, सर कब खोलेंगे अस्पताल
यूरोलॉजी से इलाज करा रहे बागेश्वर निवासी अशोक कुमार की तबीयत लगातार खराब हो रही है। वह बार-बार डॉक्टर को फोन कर रहे हैं, लेकिन कोई जवाब नहीं मिल रहा है। अशोक को पेशाब से संबंधित दिक्कत है। वह परेशान हैं। यही हाल अल्मोड़ा की नीमा देवी का है। उन्हें ब्रेन हेमरेज की दिक्कत थी। फॉलोअप के लिए हल्द्वानी के निजी चिकित्सालय में आना था। अब दवाइयां भी कैसे चलाएं, उनकी समझ में नहीं आ रहा है। उनके पति जीवन जोशी का कहना है कि ऐसी हालत भी नहीं कि उन्हें दूसरे राज्य के अस्पताल में ले जा सकें।
एसटीएच व बेस की स्थिति
1350 मरीज एसटीएच की ओपीडी में पहुंचे
560 मरीज हो चुके हैं भर्ती
85 नए मरीज हुए भर्ती
95 मरीजों को किया गया डिस्चार्ज
23 मरीजों का हुआ एमआरआइ
30 मरीजों पहुंचे सीटी स्कैन
270 मरीजों हुआ एक्सरे
30 डिलीवरी के मामले आए सामने
36 मरीज इमरजेंसी पहुंचे
445 मरीजों की हुई खून जांच
1120 मरीज बेस अस्पताल पहुंचे
20 नए मरीज बेस में भर्ती
414 मरीज महिला अस्पताल में गए
हम अपनी मांग पर अड़े रहेंगे
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन अपनी मांग पर अड़ा है। उनकी मांग है कि क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट को किसी भी कीमत में बर्दाश्त नहीं करेंगे। सरकार को संशोधित एक्ट ही लागू करना चाहिए। एसोसिएशन ने अग्रसेन भवन में बैठक की और आगे की रणनीति पर चर्चा की। साथ ही हाई कोर्ट के आदेश पर बातचीत की। इसमें एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. डीसी पंत ने कहा कि मरीजों को होने वाली दिक्कतों के बारे में सरकार को सोचना चाहिए।
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