पंत विवि ने विकसित की गेहूं की तीन नई प्रजातियां, प्रोटीन से भरपूर, उत्पादन भी शानदार
हरित क्रांति की जन्म स्थली गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि ने कुछ माह पहले गेहूं की तीन ऐसी प्रजातियां विकसित की हैं जिससे न केवल उत्पादन अधिक लिया जा सकता है बल्कि कुपोषण को भी दूर किया जा सकता है।
रुद्रपुर, जेएनएन : हरित क्रांति की जन्म स्थली गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि ने कुछ माह पहले गेहूं की तीन ऐसी प्रजातियां विकसित की हैं जिससे न केवल उत्पादन अधिक लिया जा सकता है, बल्कि कुपोषण को भी दूर किया जा सकता है। इसकी खासियत अन्य गेहूं की अपेक्षा इसमें प्रोटीन, आयरन व जिंक की मात्रा अधिक है। जो सेहत के लिए बहुत ही फायदेमंद है।
उत्तराखंड में रबी मौसम में उगाई जाने वाली फसलों में गेहूं सर्वाधिक महत्वपूर्ण फसल है। इसकी खेती मैदानी, भावर एवं तराई क्षेत्रों से लेकर पहाड़ में लगभग 1500 मीटर के ऊंचाई तक की जाती है। मौसमी बदलाव के कारण फसलों में रोग एवं कीट का प्रकोप बढ़ा है। गेहूं में रतुआ अथवा गेरुई रोग प्रमुख है। जिससे फसल को बचाने के लिए कृषक प्रोपिकानोजोले रसायन का प्रयोग करते हैं। रसायनों के प्रयोग पर धन तो खर्च होता है साथ ही वातावरण भी प्रदूषित होता है। अतः उच्च उत्पादकता के साथ-साथ रोग एवं कीटों के प्रति अवरोधी किस्मों का निरंतर विकास खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता बनाए रखने के लिए आवश्यक है। साथ ही इन किस्मों में पोषक तत्वों की प्रचुर मात्रा का भी होना आवश्यक है। जिससे कि कुपोषण की समस्या से लड़ने में ये किस्में सहयोग कर सकें।
करीब सात माह पहले उत्तराखंड राज्य विमोचन समिति द्वारा गेहूं की तीन उन्नतशील किस्मों क्रमशः यूपी 2903, यूपी 2938 तथा यूपी 2944 का उत्तराखंड के मैदानी, भाबर व तराई क्षेत्रों में खेती के लिए अनुमोदन किया गया है। इन प्रजातियों में रोग से लड़ने की क्षमता भी सामान्य प्रजातियों की अपेक्षा अधिक है। उत्पादन तो अधिक होगा, साथ ही प्रोटीन की मात्रा अधिक है। इसके सेवन से कुपोषण को भगाया जा सकता है। ऐसे भी कोरोना संक्रमण से लड़ने में यह प्रजाति काफी कारगर साबित हो सकती है।
पंत विवि के शोध निदेशक डाॅक्टर अजित सिंह नैन ने बताया कि गेहूं की तीनों प्रजातियों में प्रोटीन, आयरन व जिंक की मात्रा सामान्य गेहूं की प्रजातियों से अधिक है। उत्पादन भी अधिक होता है। लंबे समय से वैज्ञानिक इन प्रजातियों को विकसित करने में लगे थे। जो लंबे अरसे बाद सफलता मिली।
प्रजातियों की खासियत
- 1 यूपी 2903 को सिंचित दशा में समय से बुआई, नवंबर माह के लिए अनुमोदित किया गया है। उत्तराखंड में कृषक प्रक्षेत्रों पर आयोजित परीक्षणों में इसकी उपज 47.5 क्विंटल हेक्टेयर पाई गई तथा इसकी उत्पादन क्षमता 70.9 क्विंटल हेक्टेयर है। यह किस्म रतुआ अथवा गेरुई, रस्ट के प्रति उच्च प्रतिरोधी क्षमता रखती ह। उच्च उत्पादन क्षमता के साथ ही यह प्रजाति उच्च गुणवत्ता युक्त भी है। इस प्रजाति में प्रोटीन की मात्रा 12.68 फीसद है। जस्ता और लौह की प्रचुर मात्रा है जो कि क्रमशः 39.2 पीपीएम पार्ट पर मिलियन और 39.8 पीपीएम है। इसके अतिरिक्त यह उच्च सेडीमेंटशन वैल्यू 59 मिली लीटर के साथ अच्छी गुणवत्ता वाली ब्रेड के लिए भी उपयक्त है।
- 2 दूसरी किस्म यूपी 2938 को भी सिंचित दशा में समय से बुआई नवंबरके लिए अनुमोदित किया गया है। उत्तराखंड में कृषक प्रक्षेत्रों पर आयोजित परीक्षणों में इसकी उपज 65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पाई गई है। यह किस्म भी रतुआ अथवा गेरुई, रस्ट के प्रति उच्च प्रतिरोधी क्षमता रखती है। अधिक उत्पादन भी होता है।
- 2 तीसरी किस्म यूपी 2944 को सिंचित दशा में विलम्ब दिसंबर से बुआई के लिए अनुमोदित किया गया है। उत्तराखंड में कृषक प्रक्षेत्रों पर आयोजित परीक्षणों में इसकी उपज 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इसकी प्रतिरोधक क्षमता अधिक है। प्रजाति में प्रोटीन की मात्रा 14.5 फीसद है। उत्पादन भी अधिक है। सेडीमेंटशन वैल्यू 50 मिली लीटर के साथ अच्छी गुणवत्ता वाली ब्रेड के लिए भी यह प्रजाति अच्छी है।