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रामनगर के कोसी बैराज में नजर आया सुर्खाब का जोड़ा, उम्रभर साथ रहने वाले खूबसूरत पक्षी की जानें खास बातें

वन्‍यजीवों के लिए देश-दुनिया में विख्‍यात जिम कार्बेट नेशनल पार्क में पक्षियों की भी विविध प्रजातियां पाई जाती हैं। यहां विदेश के पक्षी भी सर्दी के मौसम में पहुचंते हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Mon, 14 Oct 2019 10:26 AM (IST)Updated: Tue, 15 Oct 2019 04:56 PM (IST)
रामनगर के कोसी बैराज में नजर आया सुर्खाब का जोड़ा, उम्रभर साथ रहने वाले खूबसूरत पक्षी की जानें खास बातें
रामनगर के कोसी बैराज में नजर आया सुर्खाब का जोड़ा, उम्रभर साथ रहने वाले खूबसूरत पक्षी की जानें खास बातें

नैनीताल, जेएनएन : वन्‍यजीवों के लिए देश-दुनिया में विख्‍यात जिम कार्बेट नेशनल पार्क में पक्षियों की भी विविध प्रजातियां पाई जाती हैं। यहां विदेश के पक्षी भी सर्दी के मौसम में पहुचंते हैं। अभी हाल ही में सुर्खाब का एक जोड़ा रामनगर के कोसी बेराज में नजर आया है। अममून ये पक्षी जोड़ा नवंबर के पहले सप्‍ताह में आता है, लेकिन इस बार समय से पहले इनके पहुंचने से पर्यावरण और वन्‍यजीव प्रेमी काफी खुश नजर आ रहे हैं। 

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जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क व आस-पास के वन प्रभागों में करीब 600 से अधिक पक्षियों की प्रजातियां पाई जाती हैं। इसमें मेहमान परिंदा सुर्खाव की निगरानी रखने के लिए वन विभाग पार्क से सटे कोसी बैराज में सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए हैं। पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार सूर्खाव बेहद शर्मिंदा पक्षी होता है। पक्षी को रूडी शेल्डक नाम से भी जाना जाता है। यह उत्तरी पशिचमी अफ्रीका व इथोपिया, दक्षिणी पूर्वी यूरोप, मध्य एशिया, चीन व नेपाल के ठंडे इलाकों में रहती हैं। लेकिन अक्टूबर-नवंबर में वहां पर बर्फवारी होने से सुर्खाब भोजन की तलाश में भारतीय उपमहादीप में शीतकालीन प्रवास पर आते हैं। सूर्खाव का भोजन मच्छी नहीं होता है। मेहमान पक्षी का पसंदीदा भोजन जलीय वनस्पति होते हैं और ये अधिकांश खुले तलाबों, नदियों में रहना पसंद करते हैं।

समय से पहले लौटने भी लगे हैं सुर्खाब

अक्टूबर व नवंबर में आने वाली सूर्खाव पक्षी अप्रैल में लौटती हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों से भोजन की कमी के चलते ये पहले ही अपने वतन लौटने लगे हैं। भारत में सुर्खाब अर्फीका, चीन व नेपाल की बर्फीली पहाड़ी से आते हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों में कोसी बैराब का जलस्‍तर कम होने से उन्‍हें जलीय वनस्पति नहीं मिल पा रहा है। इससे वह समय से पहले ही अपने वतन लौटने लगे हैं।

इन नामों से भी जाना जाता है

सुर्खाब पक्षी को चकवा, चकवी, कोक, नग, लोहित, चक्रवात, केसर आदि नामों से भी जाना जाता है। वहीं पक्षी प्रेमी इन्‍हें बा्रम्‍हणी डक और रूडी सेल्‍डक के नाम से भी पुकारते हैं। खूबसूरती में मोर को भी मात देते इस पक्षी को हिमालयन मोनल भी कहा जाता है। ये एक प्रकार की जलमुर्गी हैं, जो खुले जलाशयों में रहना पसंद करती हैं। जोड़ों में रहना इनका स्‍वाभाविक लक्षण है। हल्‍की सी भी आहट मिलने पर ये उड़ जाते हैं और स्थिति सामन्‍य होने के बाद ही लौटते हैं।

पेड़ों और दरारों में बनाते हैं घोंसला

सुर्खाब पक्षी पेड़ों और चट्टाना की दरारों में अपना घोसला बनाते हैं। इनका प्रमुख भोजन घास-फूस, काई, छोटे मेढक और कीड़े-मकोड़े होते हैं। वन्‍यजीव प्रेमियों को इन‍के हर साल आने का बेशब्री से इंतजार रहता है। इसका शिकार पूरी तरह से प्रतिबंधित है।

उम्रभर के लिए जोड़ा बनाते हैं सुर्खाब

सुर्खाव पक्षी जोड़े में ही दिखाई देते हैं। इनका सिर पीला तो शरीर नारंगी भूरे रंग का होता है। अधिक जल स्तर वाले पानी में रहने वाले सुर्खाव अपना घर पहाड़ी क्षेत्रों में बनाना पसंद करती हैं। सुरखाब पक्षी उम्र भर के लिए जोड़ा बनाते हैं, यह पानी से काफी दूरी पर घोंसला बनाता है, मादा एक बार में आठ अंडे देती है,  मादा चार हफ्तों तक इन अन्डो को सेती है, अंडों से निकले हुए बच्चों का पालन माता-पिता दोनों मिलकर करते हैं, अंडों से निकलने के आठ हफ्ते बाद सुरखाब के बच्चे उड़ने लगते हैं।


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