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जानिए कौन हैं पद्मश्री पाने वाली बसंती बहन, जिनका जीवन पर्यावरण, जल संरक्षण व महिला सशक्तीकरण को है समर्पित

महिलाओं और पंचायतों के सशक्तिकरण के लिए उन्होंने 2008 मेें काम शुरू किया। गांवों में महिला प्रतिनिधियों के साथ निरंतर संपर्क रखकर उन्हेें आत्मनिर्भर बनाया। वर्तमान में 242 महिला प्रतिनिधि सशक्तीकरण अभियान से जुड़ी हैं। कोसी बचाओ अभियान में बसंती बहन ने अभूतपूर्व काम किए हैं।

By Prashant MishraEdited By: Published: Wed, 26 Jan 2022 04:52 PM (IST)Updated: Wed, 26 Jan 2022 04:52 PM (IST)
जानिए कौन हैं पद्मश्री पाने वाली बसंती बहन, जिनका जीवन पर्यावरण, जल संरक्षण व महिला सशक्तीकरण को है समर्पित
बसंती को पंचायतों के सशक्तीकरण के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार के बाद अब पद्मश्री मिलना गौरव की बात है।

घनश्याम जोशी, बागेश्वर। कौसानी स्थित लक्ष्मी आश्रम की बसंती देवी को समाज सेवा के क्षेत्र में पद्मश्री सम्मान मिलने से उत्तराखंड का मान बढ़ा है। पर्यावरण संरक्षण के लिए संघर्षरत बसंती बहन ने सूखती कोसी नदी का अस्तित्व बचाने के लिए महिला समूहों के माध्यम से सशक्त मुहिम चलाई। घरेलू हिंसा और महिला उत्पीडऩ रोकने के लिए उनका जनजागरण आज भी जारी है। निस्वार्थ सेवा भाव में जुटी बसंती को पंचायतों के सशक्तीकरण के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार के बाद अब पद्मश्री मिलना गौरव की बात है। 

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बसंती देवी को लोग बसंती बहन के नाम से ही जानते हैं। समाजसेवा की शुरुआत उन्होंने अल्मोड़ा जिले के धौलादेवी ब्लाक मेें बालबाड़ी कार्यक्रमों के माध्यम से की। यहां उन्होंने महिलाओं के भी संगठन बनाए। 2003 में लक्ष्मी आश्रम की संचालिका राधा बहन ने उन्हें अपने पास बुलाया और कोसी घाटी के गांवों में महिलाओं को संगठित करने की सलाह दी। बसंती बहन के प्रयासों से कौसानी से लेकर लोद तक पूरी घाटी के 200 गांवों में महिलाओं के सशक्त समूह बने हैं।

महिलाओं और पंचायतों के सशक्तिकरण के लिए उन्होंने 2008 मेें काम शुरू किया। गांवों में महिला प्रतिनिधियों के साथ निरंतर संपर्क रखकर उन्हेें आत्मनिर्भर बनाया। वर्तमान में 242 महिला प्रतिनिधि सशक्तीकरण अभियान से जुड़ी हैं। हिमालय ट्रस्ट के संचालक लक्ष्मी आश्रम से जुड़े वरिष्ठ समाजसेवी सदन मिश्रा ने कहा कि कोसी बचाओ अभियान सहित महिलाओं और पंचायतों के सशक्तीकरण को बसंती बहन ने अभूतपूर्व काम किए हैं। 

12 साल की आयु में हो गया था विवाह 

मूल रूप से पिथौरागढ़ के कनालीछीना निवासी बसंती सामंत शिक्षा के नाम पर मात्र साक्षर थीं। 12 साल की आयु में उनका विवाह हो गया था। कुछ ही समय के बाद पति की मृत्यु हो गई। दूसरा विवाह करने की बजाय उन्होंने पिता की प्रेरणा से मायके आकर पढ़ाई शुरू कर दी। इंटर पास करने के बाद गांधीवादी समाजसेविका राधा बहन से प्रभावित होकर सदा के लिए कौसानी के लक्ष्मी आश्रम में आ गईं। वर्तमान में आश्रम संचालिका नीमा बहन ने बताया कि बसंती बहन कुछ समय से पिथौरागढ़ में ही रह रही हैं। 

बसंती बहन की सेवा को सम्मान 

हिमालयन इंस्टीट्यूट आफ मल्टीपल अल्टरनेटिव फार लाइवलीहुड संस्था के अध्यक्ष रमेश कुमार मुमुक्षु कहते हैं कि राधा बहन के संरक्षण में रहकर बसंती बहन ने समाज सेवा को सही मायने में साकार किया। बसंती संस्था की उपाध्यक्ष भी हैं। सोमेश्वर, दन्या, कौसानी आदि क्षेत्रों में महिला सशक्तीकरण, जल व पर्यावरण संरक्षण के काम उनके संघर्ष को बयां करते हैं। पद्मश्री मिलने की संस्था को बेहद खुशी है। फोन बंद रहने से उनसे बात नहीं हो सकी है।


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