सेमिनार में विषय विशेषज्ञों ने कहा, बदहाल स्वास्थ्य, चौपट स्कूल नहीं थी राज्य की परिकल्पना
उत्तराखंड राज्य की परिकल्पना और यथार्थ विषय पर रविवार को एफटीआइ में हुए सेमिनार में विषय विशेषज्ञों ने गहन मंथन किया और अपने-अपने तर्क प्रस्तुत किए।
हल्द्वानी, जेएनएन : सुविधा व डॉक्टर विहीन अस्पताल, चौपट होते स्कूल और खाली होते गांव उत्तराखंड राज्य की परिकल्पना नहीं थी। दुर्भाग्यवश पिछले 19 वर्षों में वही हुआ, जिसके प्रतिकार के लिए लोगों ने उत्तराखंड राज्य की लड़ाई लड़ी। 'उत्तराखंड राज्य की परिकल्पना और यथार्थ' विषय पर रविवार को एफटीआइ में हुए सेमिनार में विषय विशेषज्ञों ने गहन मंथन किया और अपने-अपने तर्क प्रस्तुत किए।
सबसे अधिक चिंता बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्थाओं पर जताई गई। संचालन कर रहे लेखक व राज्य आंदोनलकारी चारू तिवारी ने कहा कि दो साल में प्रदेश के भीतर 70 प्रसूताओं की अस्पताल पहुंचने से पहले ही मौत हो गई। सरकारें अस्पतालों में सुरक्षित प्रसव कराने तक की सुविधा नहीं दे पा रही हैं। शिक्षा को सुधारने के बजाय छात्र संख्या कम होने का बहाना बनाकर सरकारी स्कूल बंद किए जा रहे हैं। रोजगार के सवालों पर सरकार में बैठे लोग बात करना तक पसंद नहीं करते। वक्ताओं ने कहा कि यही वे बुनियादी सुविधाएं हैं, जिनके लिए लोग गांव छोड़ रहे हैं। अभिव्यक्ति कार्यशाला संस्था की ओर से आयोजित सेमिनार में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. प्रयाग जोशी, आयोजक मनोज चंदोला, मदन बिष्ट, योगेश पंत, भावना पंत, आशिमा पांडे समेत कई लोग मौजूद रहीं।
चीमा ने कविता के जरिये किया तंज
जाने-माने कवि बल्ली सिंह चीमा ने सरकार की किसान व खेती विरोधी नीतियों पर तंज करते हुए कहा, 'कभी धान से, कभी गेहूं से तेरी मंडियों ने दगा किया, मेरी खेतियों से तुझे बैर है, तेरी नीतियों ने बता दिया।Ó एक अन्य कविता के जरिये सरकारों की मंशा पर सवाल उठाया। प्राकृतिक संसाधनों की लूट पर कहा, 'साथी जल, जंगल, जमीन का बचना बहुत जरूरी है, इसलिए अंधे विकास से लडऩा बहुत जरूरी है।'
राज्य की बर्बादी में लगी हैं सरकारें : पीसी तिवारी
उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष पीसी तिवारी ने कहा कि राज्य के सत्ताधीशों ने प्रदेश को आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक रूप से कमजोर किया है। भूमि सुधार कानून में संशोधन कर हिमालयी राज्य की विविधता को समाप्त करने व कृषि भूमि की खरीद-फरोख्त का रास्ता तैयार किया है। जल, जंगल, जमीन पर सरकारें खुद का कब्जा जमाने को आतुर हैं।
गांव व युवा विकास के एजेंडे से बाहर : डॉ. भूपेन
उत्तराखंड ओपन यूनिवर्सिटी में पत्रकारिता विभाग के असिस्टेंट प्रोफसर डॉ. भूपेन सिंह ने कहा कि सरकारें आर्थिक विकास दर के आंकड़ों से प्रदेश व देश में सब कुछ ठीक होने की दिलासा देती हैं। सरकारों की विकास दर में गांव की महिला, देश का बेरोजगार शामिल नहीं होता। उन्होंने कहा कि भ्रष्ट हो चुकी सरकारें समाज को भी भ्रष्ट बनाने पर तुली हुई हैं। राज्य की परिकल्पना कहीं पीछे छूट चुकी है।
विस्फोटक स्थिति में पहुंची बेरोजगारी : रूपेश
पत्रकार रूपेश कुमार सिंह ने कहा कि राज्य गठन के 19 साल बाद भी प्रदेश में रोजगार नीति नहीं बनी। कागजों में सिडकुल में 450 से अधिक उद्योग हैं, जिनमें सौ भी ठीक से चल नहीं रहीं। छह से सात हजार रुपये माह में युवक अपना जीवन खपा रहे हैं। रोजगार, स्वास्थ्य व शिक्षा सुविधा बढ़ाने के लिए सरकारों ने विजन ही नहीं दिखाया।
खुद के स्तर से करने होंगे प्रयास : काव्या
युवा पत्रकार व आरजे काव्या ने कहा कि सरकारों की तरफ उम्मीद से देखने के बजाय लोगों को खुद के स्तर से भी प्रयास करने होंगे। साधन संपन्न लोग पहाड़ में स्वरोजगार स्थापित करने की दिशा में काम कर सकते हैं। लोगों के छोटे-छोटे प्रयासों से स्थिति सुधारने के साथ सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है।
सुविधाएं बेहतर बनाने को सरकार प्रयासरत : भट्ट
पत्रकार व सीएम त्रिवेंद्र रावत के मीडिया सलाहकार रमेश भट्ट ने स्वास्थ्य व रोजगार की खराब हालत स्वीकारते हुए कहा कि इसकी बेहतरी के लिए सरकार प्रयासरत है। हालांकि छत्तीसगढ़, झारखंड की तुलना में उत्तराखंड की आर्थिक विकास दर को उन्होंने बेहतर बताया। इसके लिए उन्होंने विकास दर के आंकड़े गिनाए। सरकारी स्कूलों के बंद होने के लिए छात्र संख्या कम होने को वजह बताया।