WORLD ELEPHAND DAY : जिम कॉर्बेट पार्क में बाघों के साथ ही बढ़ा हाथियों का कुनबा
विश्व प्रसिद्ध जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में बाघों के साथ ही गजराजों का कुनबा भी बढ़ चुका है। हालांकि इसस मानव व वन्यजीवों के बीच संघर्ष की आशंका बढ़ गई है।
रामनगर, विनोद पपनै : विश्वप्रसिद्ध जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में बाघों के साथ ही गजराजों का कुनबा भी बढ़ चुका है। यह सूचना भले ही वन्यजीव प्रेमियों के लिए सुखद हो मगर इस तथ्य से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि हाथियों व मानव बीच बढ़ते टकराव को रोकना सीटीआर व वन महकमे के लिए बड़ी चुनौती है।
पिछले एक साल से रामनगर से मोहान व कुमेरिया के जंगलों में गजरात का उत्पात कई बार सामने आ चुका है। कभी वन चौकी में तोडफ़ोड़ तो कभी विभागीय आवासीय परिसरों में हाथियों ने काफी आतंक मचाया। इतना ही नहीं पर्वतीय क्षेत्रों को जाने वाले कई वाहनों को पलटकर हाथियों द्वारा उनमें लदे सामान को नष्ट करने की अब तक कई घटनाएं हो चुकी हैं। यह बात दीगर है कि अभी तक हाथियों ने किसी की जान नहीं ली है मगर खतरा तो खतरा है।
इन चुनौतियों के बीच हर साल 12 अगस्त को पूरी दुनिया में हाथी दिवस मनाते हुए उनके संरक्षण की वकालत की जाती है। मगर इंसानों से टकराव को दूर करने की दिशा में आज तक कोई कारगर पहल नहीं हो सकी है। भले ही देश में हाथियों की संख्या घटी हो लेकिन कॉर्बेट पार्क में हाथी बढे हैं। साल 2003 में देश में हाथियों की संख्या 45 हजार थी जो 2017 में घटकर केवल 27 हजार रह गयी है।
कॉर्बेट में हैं 1035 हाथी
2007 की गणना में कार्बेट मेंं 650 हाथी थे, जो बढ़कर 2015 में 1035 हो गए थे। अभी इनकी संख्या में और इजाफा होने के आसार हैं।
घटते वास स्थल के कारण संकट में गजराज
वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर दीप रजवार की मानें तो जलवायु परिवर्तन, मानव के दखल के कारण कंक रीट में तब्दील होते जंगल, बंद होते कॉरिडोर, जंगलों में चारे के अभाव और पानी की कमी के कारण इनकी आबादी पर संकट पैदा होने लगा है।
गजराजों की कत्लगाह बना था कॉर्बेट
कार्बेट पार्क 2000 में गजराजों के लिए किसी कत्लगाह से कम नही था। उस साल 5 फरवरी, 8 और 10 फरवरी तथा 27 दिसंबर को तस्कर जंगल में घुस कर कई हाथियों को मार गिराने के बाद उनके दांत निकाल कर भागने में कामयाब हुए थे।
म्यूजियम से भी हाथी दांत ले उड़े थे चोर
आपरेशन मानसून से पहले 12 जून 2008 को चोर धनगढ़ी म्यूजियम से हाथी के लगभग 37 किलो वजनी दो दांत ले उड़े थे। कोई सुराग न मिलने पर पुलिस ने फाइनल रिपोर्टी लगा दी थी। आज भी सीटीआर की दक्षिणी सीमा खुली होने के कारण किसी खतरे से कम नही है।
इसलिए होता है शिकार
वन्य जीव विशेषज्ञ संजय छिम्वाल कहते हैं कि हाथी दांत के लिए इनका शिकार किया जाता है। इनके दांत के बने आभूषण और खिलौने बाजार में काफी महंगे बिकते हैं। जिनकी विदेशों में काफी मांग है।
सुरक्षा तंत्र मजबूत होने का दावा
सीटीआर के निदेशक राहुल कहते हैं हाथियों एवं मानव के बीच संघर्ष न होने पाए इस दिशा में प्रयास जारी हैं। लोगों को भी जागरूक किया जा रहा है कि हाथियों के कॉरीडोर बंद न होंने दें। सुरक्षा के सवाल पर कहते हैं कि पहले हमारे पास संसाधन कम थे लेकिन अब पूरी चाक चौबंद व्यवस्था है।
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