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यहां जले तो नहीं मिलेगा उपचार, बर्न वार्ड में सर्जन न अन्‍य सुविधाएं

दिवाली निकट है। रोशनी और पटाखों के त्योहार पर आतिशबाजी न हो, यह तो असंभव है। हां, इतना जरूर है कि उसमें सावधानी कितनी बरती जाए, इस पर बहुत ध्यान देने की जरूरत है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Mon, 05 Nov 2018 06:19 PM (IST)Updated: Mon, 05 Nov 2018 06:19 PM (IST)
यहां जले तो नहीं मिलेगा उपचार, बर्न वार्ड में सर्जन न अन्‍य सुविधाएं
यहां जले तो नहीं मिलेगा उपचार, बर्न वार्ड में सर्जन न अन्‍य सुविधाएं

हल्द्वानी (जेएनएन) : दिवाली निकट है। रोशनी और पटाखों के त्योहार पर आतिशबाजी न हो, यह तो असंभव है। हां, इतना जरूर है कि उसमें सावधानी कितनी बरती जाए, इस पर बहुत ध्यान देने की जरूरत है। क्योंकि अगर आप झुलसे तो यहां सरकारी अस्पतालों से अच्छे उपचार की उम्मीद कतई न करें। आपको दिल्ली और बरेली ही भागना पड़ेगा। सचेत इसलिए किया जा रहा है कि जनप्रतिनिधियों की काहिली और अफसरों की नौकरी करने भर की रस्मअदायगी के चलते बेस अस्पताल और एसटीएच के बर्न वार्ड में पहले से ही 'झुलसी व्यवस्था' का इलाज नहीं हो पा रहा है। शर्मनाक हालात यह हैं कि दोनों ही बड़े अस्पतालों में सर्जन नहीं हैं तो दवाओं का भी टोटा है। एसटीएच के वार्ड में तो साफ-सफाई की स्थिति भी ठीक उलट है।

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एसटीएच के बर्न वार्ड में 'मानकों की सर्जरी'

कुमाऊं के सबसे बड़े डॉ. सुशीला तिवारी अस्पताल में बर्न वार्ड की व्यवस्था यह सोच कर की गई थी कि झुलसे रोगियों को उचित उपचार मिल सकेगा। लेकिन अफसरों की लापरवाही और जनप्रतिनिधियों की अनदेखी के शिकार इस अस्पताल में रोगियों से ज्यादा तो व्यवस्था ही बीमार नजर आ रही है। एसटीएच के बर्न वार्ड में रखी अलमारी आदि इतनी गंदी हैं कि अच्छा-खासा रोगी स्वस्थ होने की बजाय बीमार हो जाए। इससे संक्रमण का पूरा खतरा बना हुआ है। लेकिन गरीब बेचारा क्या करे, उसे सस्ता और सुलभ उपचार चाहिए सो इसी उम्मीद से भर्ती होने को मजबूर है। यहां एक लड़की भर्ती है, उसके पास रखी अलमारी पर साफ दिख रही गंदगी चिकित्सकों की उन बातों को झुठला रही है जब वह रोगियों से साफ-सफाई बरतने की हिदायत देकर जाते हैं। हैरानी तो यह भी है कि उपचार अनट्रेंट स्टाफ और बिना प्लास्टिक सर्जन के ही किया जा रहा है। सही हो गए तो ठीक, नहीं तो हालत बिगडऩे पर रेफर वाला कॉलम तुरंत भरकर रोगी को चलता कर दिया जाता है।

आखिर कब मिलेंगी ये सुविधाएं

स्किन बैंक 

स्किन बैंक बनने से जले हुए मरीजों की रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी के लिए बैंक से स्किन मिल सकेगा।

आईसीयू

आईसीयू होने से गंभीर मरीजों को बेहतर इलाज मिल सकेगा।

एयर फिल्टर वार्ड

एयर फिल्टर वार्ड के होने से धूल, वायरस और बैक्टीरिया से बचाव मिलेगा। जिससे मरीजों को संक्रमण के खतरे से निजात मिल जाएगी।

फुल टाइम स्टाफ

बर्न यूनिट के लिए प्लास्टिक सर्जरी के विशेषज्ञ व फुल टाइम स्टाफ होने ने मरीजों को बेहतर इलाज मिल सकेगा।

बर्न यूनिट

बर्न यूनिट के होने से मरीजों को बेहतर सुविधाओं के साथ बेहतर इलाज भी मिल पाएगा। 

डोम की व्यवस्था

डोम (स्टैंड में लगा हरा कपड़ा) के होने से जले हुए मरीजों के शरीर को ढकने में आसानी होती हैं। इससे मरीज के शरीर का उपचार करने में भी परेशानी नहीं होती।

बर्न यूनिट बनाने के लिए आ चुका है बजट

डॉ. सीपी भैंसोड़ा, प्राचार्य, राजकीय मेडिकल कॉलेज  ने बताया कि बर्न वार्ड में अभी सुविधाएं कम हैं, लेकिन बर्न यूनिट बनाने के लिए बजट आ चुका है। इसके लिए प्रक्रिया चल रही है। उम्मीद है जल्द ही काम शुरू हो जाएगा। इसके बाद मरीजों को बेहतर सुविधा मिलने लगेगी।

बेस भी बेबस : बिना चिकित्सकों के ही चल रहा बर्न वार्ड

सोबन सिंह जीना बेस अस्पताल में पहाड़ से आने वाला रोगी बड़ी उम्मीद से भर्ती होता है, लेकिन प्राथमिक उपचार के बाद जब उसे यहां से रेफर किया जाता है तो वह भी उनको कोसने के लिए मजबूर हो जाते हैं जो पहाड़ के विकास के वादे करते नहीं थक रहे हैं। यहां के बर्न वार्ड में वर्षों से चिकित्सकों की नियुक्ति ही नहीं हो पाई है। वार्डों में काम करने वाले स्टाफ से ही बर्न वार्ड की सेवाएं संचालित की जा रही हैं। बर्न के मरीजों के उपचार के लिए काम में आने वाले उपकरणों व दवाइयों का जबरदस्त अभाव बना हुआ है। बर्न वार्ड में छह बेड और दो एसी के अलावा अन्य कोई सुविधा नहीं है।

उच्‍चाधिकारियों को करा दिया गया है अवगत

डॉ. एसबी ओली, प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक, बेस अस्पताल का कहना है कि बर्न वार्ड है, लेकिन सर्जन नहीं होने से दिक्कत होती है। इसलिए मरीजों को रेफर कर दिया जाता है। सर्जन के लिए उच्चाधिकारियों को अवगत कराया जा चुका है।

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