भूख से नींद नहीं, खुशी ने सोने न दिया
लालकुआं जंक्शन के प्लेटफार्म नंबर पांच पर गुरुवार शाम 4.1
संस, लालकुआं : लालकुआं जंक्शन के प्लेटफार्म नंबर पांच पर गुरुवार शाम 4.18 मिनट पर श्रमिक एक्सप्रेस रुकी। ट्रेन 1091 प्रवासियों को बेंगलुरु से लाई थी। 48 घंटे में 2200 किमी का सफर करने वाले प्रवासियों को 24 घंटे पहले भोजन मिला था, मगर उनके साथ आ रहे छोटे बच्चों के लिए कहीं भी दूध का इंतजाम न था। महिला, बुजुर्ग, युवा, बच्चे सभी इस ट्रेन में सवार थे। इन सबको ट्रेन में भूख के कारण नींद नहीं आई तो घर लौटने की खुशी ने मानों नींद का अहसास ही नहीं होने दिया। आखिरकार ट्रेन लालकुआं पहुंची तो इनके थके चेहरे सब कुछ बयां कर रहे थे, मगर सबके तेज कदम बस सामने खड़ी बसों की ओर ही बढ़ रहे थे।
बेंगलुरु में होटल में काम करने वाले बेतालघाट निवासी सुरेंद्र सिंह भी हाथ में बैग लेकर अपनी धुन में बस की तरफ जा रहा था। उसकी बुजुर्ग मां कौशल्या देवी व चार माह के बेटे नकुल को गोद में लेकर उसकी पत्नी ममता उसके पद चिह्नों की नकल करते हुए उसके पीछे से चल रही थी। प्रवासियों के शोरगुल, ट्रेन की आवाज के बावजूद नकुल मां की गोद में ही सोया हुआ था। भूख व थकान इनके चेहरे पर थे।
अभी वह रेलवे स्टेशन के गेट नंबर दो से अपनी धुन में सड़क की ओर निकल ही रहे थे कि- कहा जाना है के सवाल पर तीनों के कदम एक साथ रुक गए। बोल सर बेंगलुरु से आ रहे है और बेतालघाट जाना है। लॉकडाउन से लेकर ट्रेन में भोजन व पानी की व्यवस्था के बारे में पूछने पर बोले लॉकडाउन के दो माह बड़ी मुश्किल से गुजरे। मालिक ने 14 मार्च के बाद से कोई वेतन नहीं दिया। कमरा का किराया राशन भी नहीं दिया गया। जिसकारण जमा पूंजी भी लगभग खत्म हो गई है। 19 मई की शाम को चार बजे ट्रेन में बैठते समय बेंगलुरु रेलवे स्टेशन में चावल, दाल, रोटी व दो बोतल पानी के मिले थे। जिसके 24 घंटे बाद 20 मई की शाम पांच बजे के आसपास भोजन व पानी मिला। लेकिन बच्चे के लिए दूध कही भी नहीं मिला।
टनकपुर जा रहे रोहित बोरा ने बताया कि साउथ इंडिया में भोजन व पानी की काफी दिक्कत हुई। यात्री 24 घंटे तक भूखे प्यासे रहे। खटीमा के मनोहर सिंह ने बताया कि रेलगाड़ी में खाने व पीने की व्यवस्था ने काफी परेशान किया। जिसके बाद फेसबुक व अन्य माध्यमों से यात्रियों ने अपनी समस्या को पोस्ट किया। जिसके बाद भोजन व पानी मिला। नैनीताल के पूरन सिंह ने बताया कि बेंगलुरु के बाद नागपुर में भोजन व पानी मिला जिससे यात्रियों का काफी परेशानी उठानी पड़ी। पहाड़ में रोजगार मिले तो क्यों जाएंगे परदेश
पहाड़ में उद्योग व स्वरोजगार के अवसर मिले तो वह कभी भी अपने वतन को छोड़कर नहीं जाएंगे। यह कहना प्रवासी युवाओं का हैं। उनका कहना था कि परदेश में जीवन यापन करना बहुत कठिन है। लेकिन रोजी रोटी के खातिर शहरों की ओर रूख करना पड़ता है। बेंगलुरु में होटल में काम करने वाले रामनगर के जमन सिंह, नैनीताल के पूरन सिंह, पिथौरागढ़ के अशोक सिंह, अल्मोड़ा के राम सिंह ने कहा कि रोजी-रोटी के लिए वह बेंगलुरु गए। हालांकि लॉकडाउन में भोजन की कमी नहीं रही लेकिन हर दिन कोरोना संक्रमण का खतरा सताता रहता था। अगर उत्तराखंड या आसपास रोजगार के अवसर मिल जाए तो वह कभी इतनी दूर नहीं जाएंगे। मैसूर के इन्फोसिस सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करने वाली तनुजा व रबीना ने बताया कि लॉकडाउन में खाने पीने की कोई कमी नहीं हुई। लेकिन घर से हजारों किमी दूर रहना काफी कठिन है।