डोर स्टेप डिलीवरी योजना के लिए नहीं आया कोई आवेदन, शुरू होने से पहले फ्लाप हुई योजना
दिल्ली उत्तरप्रदेश की तरह उत्तराखंड में भी राशन की डोर स्टेप डिलीवरी लागू करने के लिए खूब ढिंढोरा पीटा गया। योजना को पायलट प्रोजेक्ट के तहत सबसे पहले देहरादून जिले के सहसपुर हरिद्वार जिले के बहादराबाद व नैनीताल जिले के रामनगर में शुरू किया जाना था।
हल्द्वानी, जेएनएन : दिल्ली, उत्तरप्रदेश की तरह उत्तराखंड में भी राशन की डोर स्टेप डिलीवरी लागू करने के लिए खूब ढिंढोरा पीटा गया। योजना को पायलट प्रोजेक्ट के तहत सबसे पहले देहरादून जिले के सहसपुर, हरिद्वार जिले के बहादराबाद व नैनीताल जिले के रामनगर में शुरू किया जाना था। योजना 'डोर स्टेप डिलीवरी' के तहत राशन गोदामों से राशन उठान व ढुलान और राशन की दुकानों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी परिवहन ठेकेदारों को दी जानी थी। सफलता के बाद इसे अन्य जिलों में भी लागू किया जाना था। लेकिन जनवरी से अब तक दस माह बीत चुके हैं और कोई भी डोर स्टेप डिलीवरी के लिए आगे नहीं आया। ऐसे में योजना शुरू होने से पहले ही औंधे मुंह गिर गई है।
कुमाऊं संभाग के हल्द्वानी नवीन मंडी परिसर स्थित संभागीय खाद्य नियंत्रक कार्यालय ने जनवरी में परिवहन ठेकेदार के लिए आवेदन मांगे थे। सात फरवरी तक कार्यालय से आवेदन फार्म लेकर उसे भरकर नहीं जमा करना था। मगर, कोई आवेदन फार्म खरीदने नहीं आया। इसके बाद दोबारा आवेदन की तिथि बढ़ाई गई, बावजूद इसके किसी ने दिलचस्पी नहीं ली। शर्त थी कि आवेदक के पास खुद के तीन वाहन या ट्रक होने अनिवार्य हैं। कुमाऊं संभाग के संभागीय खाद्य नियंत्रक ललित मोहन रयाल ने बताया कि डोर स्टेप डिलीवरी को लेकर शासन से निर्देश मिले थे। परिवहन ठेकेदार के लिए पूर्व में आवेदन भी मांगे गए थे। फिलहाल योजना के लिए आवेदन नहीं मिले हैं।
97 दुकानों में शुरू होनी थी योजना
रामनगर ब्लॉक में वर्तमान में राशन की 97 दुकानें संचालित हैं। जिनमें से 72 शहरी व 25 ग्रामीण क्षेत्र में हैं। इन सब दुकानों में राशन की आपूर्ति आमडंडा स्थित गोदाम से होती है। डोर स्टेप डिलीवरी शुरू पहले इन्हीं दुकानों में शुरू होनी थी।
अब तक ऐसी है व्यवस्था
हालिया व्यवस्था के अनुसार मैदानी क्षेत्रों में सस्ता गल्ला विक्रेता गोदाम से खुद ही राशन उठाते हैं। इसके लिए भुगतान की राशि निर्धारित है। जबकि पहाड़ के कई जिलों में राशन पहुंचाने का काम अधिकतर ठेकेदार ही करते हैं।
ये वजह बनी परेशानी
हालिया व्यवस्था के अनुसार मैदान में गोदाम से राशन उठाने का काम खुद गल्ला विक्रेता ही करता है। जिसकी ऐवज में उसे विभाग द्वारा भुगतान किया जाता है। यदि व्यवस्था लागू हो जाती तो यह भुगतान का ये पैसा विक्रेता को मिलने के बजाय परिवहन ठेकेदार को मिलता। इसे देखते हुए कई जिलों में राशन विक्रेताओं ने योजना का विरोध किया था।