मंदिरों में चढ़ाए नारियल, गोबर और मिट्टी से माता का स्वरूप गढ़ती है निर्मला भट्ट
नैनीताल निवासी निर्मला भट्ट ऐसी मूर्ति कलाकार हैं जो पिछले 37 सालों से मंदिरों में चढ़ाए गए नारियलों से देवी की मूर्ति बनाती हैं। अब तक वह चालीस हजार से अधिक मूर्तियां बना चुकी हैं। उनके इस कार्य को अब उनकी बहु कविता भट्ट भी आगे बढ़ा रही है।
नैनीताल, जेएनएन : मूर्तियों का निर्माण उसका जुनून है। मूर्तियों की बिक्री से परिवार की जीविका चलती है। कलाइयों में ऐसा जादू है कि खरीदार भी श्रद्धापूर्वक मनमाफिक रकम देने को लालायित रहता है। तल्लीताल छावनी क्षेत्र निवासी निर्मला भट्ट ऐसी मूर्ति कलाकार हैं जो पिछले 37 सालों से मंदिरों में चढ़ाए गए नारियलों से देवी की मूर्ति बनाती हैं।
अब तक वह चालीस हजार से अधिक देवी की मूर्तियां बना चुकी हैं। उनके इस कार्य को अब उनकी बहु कविता भट्ट भी आगे बढ़ा रही है। उनके द्वारा निर्मित मूर्तियों की मांग उत्तराखंड के अलावा विदेश में भी है। नवरात्र आते ही निर्मला घरेलू कामकाज छोड़कर देवी की मूर्तियां बनाने में व्यस्त हो जाती है। जो कि दीपावली तक चलता है। उन्होंने बताया नवरात्र में वह रोज पाषाण देवी मंदिर में पूजा अर्चना करने जाती है। यहां चढ़े नारियल से वह देवी की मूर्तियां तैयार करती हैं। एक सप्ताह में छह देवी की मूर्ति बनकर तैयार हो जाती है।
ये है प्रक्रिया
देवी की मूर्ति बनाने में नारियल के रेसे, शुद्ध गोबर और मिट्टी का प्रयोग किया जाता है। इन सबके मिश्रण से नारियल को माता के चेहरे का आकार दिया जाता है। उसके बाद लाल, काला, पीला व सफेद रंग भरकर मूर्तियों को तैयार किया जाता है। नवरात्र व दीपावली में मूर्तियों की मांग बढ़ जाती है।
37 वर्षों से बना रही देवी मूर्ति
निर्मला बताती है कि वह 37 वर्षों से नारियल से देवी की मूर्ति तैयार कर रही है। शुरूआत में शहर के लोगों द्वारा ही इनकी मांग की जाती थी, लेकिन अब देश ही नहीं विदेशों में बसे भारतीय लोग भी उन्हें इन मूर्तियों के आर्डर देते है । इस प्रयास में जहां भक्ति और समर्पण जुड़ा हुआ है । वहीं इससे होने वाली आमदनी से उनके परिवार की आजीविका भी चलती है।
पूरी तरह ईको फ्रेंडली है यह मूर्तियां
नारियल से तैयार की जाने वाली इन मूर्तियों में पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश छुपा हुआ है। मंदिर में चढ़ावे के बाद अक्सर कई नारियल व्यर्थ चले जाते है। नारियलों से तैयार होने वाली इन मूर्तियों में आसानी से उपलब्ध हो जाने वाली चीजों का प्रयोग किया जाता है। गोबर, मिट्टी और प्राकृतिक रंगों का प्रयोग होने के कारण यह मूर्तियां पूरी तरह ईको फ्रेंडली है।