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संघर्ष को हराने वाला कलाकार जिंदगी से हार गया

मोर्चरी के बाहर पोस्टमार्टम के लिए लाए जाने वाले शव के अपने, पुलिस वाले और पत्रकार ही दिखाई देते हैं, मगर शनिवार को मोर्चरी के बाहर नजारा अलग था।

By Edited By: Published: Sat, 09 Jun 2018 08:34 PM (IST)Updated: Tue, 12 Jun 2018 05:01 PM (IST)
संघर्ष को हराने वाला कलाकार जिंदगी से हार गया
संघर्ष को हराने वाला कलाकार जिंदगी से हार गया
गणेश पांडे, हल्द्वानी: मोर्चरी के बाहर पोस्टमार्टम के लिए लाए जाने वाले शव के अपने, पुलिस वाले और पत्रकार ही दिखाई देते हैं, मगर शनिवार को मोर्चरी के बाहर नजारा अलग था। भीड़ में तमाम लोग ऐसे थे, जिनके लोक गायक पप्पू कार्की न तो रिश्तेदार थे और न पारिवारिक संबंधी। कई अपने पसंदीदा कलाकार की अंतिम झलक पाने उमड़ आए थे। लोगों के दिलों में राज करने का यह मुकाम कार्की को लंबे संघर्ष के बाद हासिल हुआ था। वर्ष 1998 में महज 14 वर्ष की आयु में पप्पू कार्की ने पहला गीत रिकॉर्ड कराया, मगर पहचान 2010 में आई जब 'झम्म लागछी' एलबम के 'डीडीहाट की जमुना छोरी.' गीत लांच हुआ। 12 साल के संघर्ष में पप्पू कार्की ने दिल्ली समेत कई महानगरों में हाथ-पांव मारे। 2003 से 2006 तक दिल्ली में पेट्रोल पंप, प्रिंटिंग प्रेस और बैंक में चपरासी तक की नौकरी करनी पड़ी। इसके बाद रुद्रपुर का रुख किया और दो साल डाबर कपंनी में ठेकेदारी प्रथा में काम किया। पिछले दिनों अपने स्टूडियो में मुलाकात के दौरान पप्पू ने बताया था कि दर-दर भटकाव से परेशान होकर उन्होंने गांव लौटने का मन बना लिया था। इसी दौरान लोक गायक प्रह्लाद मेहरा व चांदनी इंटरप्राइजेज के नरेंद्र टोलिया के साथ मिलकर 'झम्म लागछी' एलबम के लिए गाने रिकॉर्ड किए। इसके बाद पप्पू कार्की की जमीन तैयार होती चली गई। हाल में लांच हुए 'तेरी रंग्याली पिछौड़ी' वीडियो गीत एक मिलियन से ज्यादा लोग देख चुके हैं। :::::::::::: पंचेश्वर बांध पर लाना चाहते थे गीत लोकगायक पप्पू कार्की के करीबी रहे लोकगायक संदीप आर्य ने बताया कि पप्पूदा ने पंश्चेश्वर बांध पर लोक गीत रचा था। 'न छोडू ईजा की माटी, न छोडू आपणी थाती' यानी अपनी मातृभूमि को नहीं छोड़ंगे और न अपनी जड़ों को छोड़ेंगे। सही समय आने पर वह इसे लोगों के बीच लाने की सोच रहे थे। :::::::::::: ये सपने भी रह गए अधूरे नीलम कंपनी के साथ कार्की तीन गीत, 'सुनै की थाली मा', 'रिमा-झिमा पानी' और 'ओ हिमा ह्यू पड़ो हिमाला' की रिकॉर्डिग के लिए दिल्ली जाने वाले थे। इसके लिए 11 से 13 जून की तिथि तय थी। संदीप ने बताया उन्हें 10 जून की रात निकलना था। इस कारण वह रात ही गौनियारो से लौटने की बात कह रहे थे। छित्कू हिवाल ग्रुप के देवू पांगती के साथ मिलकर कुमाऊंनी रामलीला की रिकॉर्डिग में जुटे थे। यह काम भी बीच में रुक गया है। :::::::::: खुद भटकता रहे, दूसरों के लिए खोला स्टूडियो पप्पूदा ने एक बार बताया कि शुरुआत के दिनों में वह स्टेज पर प्रस्तुति देने लगे थे। कई म्यूजिक कंपनी वाले उनकी गायकी को सराहते, लेकिन जब उनके स्टूडियो गए तो टहलाया जाता था। एक साल पहले दमुवाढूंगा में पीके इंटरप्राइजेज नाम से रिकॉर्डिग स्टूडियो खोला। कई प्रशिक्षु गायकों ने खुद को यहां तरासा। ::::::::: सबने अपने तरीके से दी श्रद्धांजलि सोशल मीडिया में प्रशंसकों ने अपने तरह से लोक गायक को श्रद्धांजलि दी है। डीपी में पप्पू की फोटो लगी है। उनके गीत, झोड़ा, चाचरी शेयर हो रही हैं। ::::::::: कुछ चर्चित लोकगीत ऐ जा रे चैत बैशाखा मेरो मुनस्यारा बिर्थी कोला पानी बग्यो सारारा. डीडीहाट की जमुना छोरी मधुली. रूपै की रसिया पहाणो ठंडो पांणी तेरी रंगीली पिछौड़ी छम-छम बाजलि हो ::::::::::::: घटनास्थल पहुंच गए संस्कृतिकर्मी हादसे जानकारी मिलने के बाद लोक गायक प्रह्लाद मेहरा, गोविंद दिगारी, प्रभाकर जोशी, पुष्कर महर घटनास्थल पहुंच गए। गायक गणेश मर्तोलिया, रितेश जोशी, जितेंद्र मर्तोलिया, देवेंद्र नेगी मोर्चरी पहुंचे। गायिका माया उपाध्याय, चंद्रप्रकाश, दीपा नगरकोटी, खुशी जोशी, देवू पांगती, नरेंद्र टोलिया, सरोज आनंद जोशी, विक्की योगी, राजेंद्र ढैला,पर्वतीय महापरिषद लखनऊ के महासचिव गणेश चंद्र जोशी, गायक डीएन कांडपाल समेत तमाम लोगों ने गहरा दुख जताया है।

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