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एनसीईआरटी की किताब में नहीं है वर्णमाला का पाठ, सीधे पढ़ाई जा रही कविता व कहानी

भाषा सीखने की पहली सीढ़ी है वर्णमाला का ज्ञान होना। वर्णमाला के बाद वाक्य व उसके बाद पैराग्राफ या पाठ पढऩा सीखते हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Thu, 22 Aug 2019 03:50 PM (IST)Updated: Sun, 25 Aug 2019 01:57 PM (IST)
एनसीईआरटी की किताब में नहीं है वर्णमाला का पाठ, सीधे पढ़ाई जा रही कविता व कहानी
एनसीईआरटी की किताब में नहीं है वर्णमाला का पाठ, सीधे पढ़ाई जा रही कविता व कहानी

रुद्रपुर, बृजेश पांडेय : भाषा सीखने की पहली सीढ़ी है वर्णमाला का ज्ञान होना। वर्णमाला के बाद वाक्य व उसके बाद पैराग्राफ या पाठ पढऩा सीखते हैं। यही सिद्धांत भी है कि किसी भी चीज का आधारभूत ज्ञान न होने पर उसकी गहनता नहीं समझ सकते। हम सब हमेशा से अ से अनार व ए से एप्पल सीखते आ रहे हैं। पर शिक्षा विभाग की स्थिति अजीबोगरीब है। बच्चों को वर्णमाला का ज्ञान कराए बिना ही सीधे कविता, कहानी व जोड़-घटाना सीखने को बच्चों को मजबूर किया जा रहा है।
दरअसल, पिछले वर्ष समान शिक्षा व्यवस्था को लागू करने के लिए राज्य सरकार ने प्रदेश में कक्षा एक से 12 तक एनसीईआरटी लागू कर दी। इससे अभिभावकों को किताबों पर होने वाले खर्च से राहत मिली है। पर बच्चों के सामने ऊहापोह की स्थिति पैदा हो गई है। क्योंकि इसमें सीधे कक्षा एक में प्रवेश लेना होता है और इसमें वर्णमाला का अध्याय है ही नहीं। शहर के बच्चे तो कक्षा में एक दाखिला लेने से पहले नर्सरी में एबीसीडी व ककहरा सीखकर अक्षर ज्ञान हासिल कर लेते हैं। पर गांव के बच्चों को सीधे कक्षा एक में प्रवेश दिया जाता है और उन्हें अंग्रेजी के एबीसीडी व हिंदी की वर्णमाला का ज्ञान कराए ही सीधे पाठ पढ़ाया जा रहा है। इसकी वजह गांवों में अक्सर प्ले स्कूल नहीं होते हैं। अब भला बिना अक्षर ज्ञान के बच्चे सीधे कविता कहानी कैसे पढ़ लेंगे। यह व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है। यह सीधे-सीधे उनके भविष्य के साथ मजाक है। विभाग की व्यवस्था से बच्चों के साथ शिक्षक व अभिभावक परेशान है।
जिले में करीब 500 प्राइमरी स्कूल गांवों में हैं। ग्रामीण क्षेत्र में प्ले स्कूल न के बराबर होते हैं। जहां है भी तो अभिभावक का सामान्य आर्थिक पृष्ठभूमि के चलते उन्हें प्ले स्कूल में प्रवेश न दिलाकर सीधे कक्षा एक में दाखिला दिलाते हैं। ऐसे में इन बच्चों के सामने जहां ककहरा और वर्णमाला किताबों में होना चाहिए, वहां उनके समक्ष ङ्क्षहदी की पुस्तक में कहानी, अंग्रेजी में कविताएं और गणित में जोड़-घटाव व आकृतियां हैं। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे गहरे अवसाद में जा रहे हैं वहीं उनके अभिभावकों को उनके भविष्य की चिंता सता रही है।

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यह है कक्षा एक का हिंदी पाठ्यक्रम
कक्षा एक की एनसीईआरटी पुस्तकों में ककहरा के स्थान पर रिमझिम पुस्तक लगाई गई है, जिसमें कहानी झूला, आम की टोकरी व पत्ते ही पत्ते आदि से शुरुआत हुई है। वहीं, अंग्रेजी की पुस्तक में एबीसीडी नहीं बल्कि मैरीगोल्ड की पुस्तक लगाई गई है, जिसमें यूनिट प्रथम में थ्री लिटिल पिग्स, ए हैप्पी चाइल्ड व दि बबल दि स्ट्रा जैसे चैप्टर से शुरुआत हुई है।

क्या कहते हैं प्रधानाचार्य व अध्यापक
डॉ. सतीश अरोरा, प्रधानाचार्य, जनता इंटर कालेज रुद्रपुर  ने कहा कि एनसीईआरटी लागू हुई अच्छी बात है, लेकिन बारीकियों को समझना चाहिए। सबसे अधिक आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में बसती है। यहां के बच्चे सीधे कक्षा एक में प्रवेश लेते हैं। ऐसे में नए प्रवेशित बच्चों के सामने शब्दों का नहीं बल्कि वर्णमाला का ज्ञान होना जरूरी है।रानी चढ्डा, प्रधानाचार्य, श्री गुरुनानक बालिका इंटर कालेज रुद्रपुर ने बताया कि आदेश है तो उसका पालन करना ही पड़ेगा। फिलहाल वर्गमाला और अन्य चीजें पाठ्यक्रम से हटा दी गई हैं। इससे शिक्षकों की जिम्मेदारी बढ़ गई है। शिक्षा ग्रहण करने के लिए कक्षा एक में क, ख, ग का ज्ञान होना आवश्यक है। ग्रामीण क्षेत्र के छात्रों के लिए नई पुस्तकों को समझाना मुश्किल है।
वहीं अवनी यादव, प्रधानाचार्य सनातन धर्म कन्या इंटर कालेज रुद्रपुर ने बताया कि बच्चों के पढऩे से पहले वर्णमाला का ज्ञान होना जरूरी है। भले ही नई शिक्षा नीति से ज्ञान देने की मुहिम हो, लेकिन गांवों में छात्रों के लिए ककहरा और एबीसीडी न होना समस्या है। सीधे बच्चों को कविता, कहानी पढ़ाने से सिर्फ वो सुनते हैं, जबकि शब्दों का ज्ञान नहीं हो पाता।

क्या कहते हैं अधिकारी
अशोक कुमार सिंह, सीईओ यूएसनगर ने कहा कि सिलेबस बनाने वाले को ध्यान देना चाहिए। इस संबंध में कोई टिप्पणी नहीं कर सकते। लेकिन वर्णमाला से बच्चे जल्दी सीखते हैं। ऐसे में शिक्षकों का कार्य बढ़ गया है। उनके द्वारा बोर्ड और स्लेट पर ककहरा पढ़ाया जाता है।


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