देश के खूबसूरत पर्यटन स्थल नैनीताल पर मंडरा रहा है खतरा, भयावह हो सकते हैं भविष्य में परिणाम
भूगर्भीय दृष्टि से संवेदनशील सरोवर नगरी में बलियानाला चाइनापीक मालरोड कैलाखान टिफिनटॉप क्षेत्रों में हो रहा भूस्खलन और भूधंसाव चौतरफा संकट का संकेत दे रहा है।
नैनीताल, जेएनएन : भूगर्भीय दृष्टि से संवेदनशील सरोवर नगरी में बलियानाला, चाइनापीक, मालरोड, कैलाखान, टिफिनटॉप क्षेत्रों में हो रहा भूस्खलन और भूधंसाव चौतरफा संकट का संकेत दे रहा है। भूवैज्ञानिक भी इसे शहर के अस्तित्व के लिए शुभसंकेत नहीं मान रहे। शहर के बीचोबीच से गुजरने वाले फॉल्ट का एक्टिव होना इसका कारण माना जा रहा है। जिसके परिणाम भविष्य में और भी भयावह हो सकते है।
शहर की बसासत के बाद यहां के प्राकृतिक परिवेश में मानवीय हस्तक्षेप बढ़ने के बाद से ही भूस्खलन की घटनाएं सामने आने लगी थी। माना जाता है कि 1867 में शहर में पहली भूस्खलन की घटना हुई थी। 18 सितंबर 1880 के भूस्खलन ने तो 151 जिंदगी लील ली साथ ही कई भवन जमीदोज हो गए। शहर के नीचे स्थित बलियानले में 150 से भी अधिक वर्षों से भूस्खलन आज भी जारी है। बीते वर्ष शहर की सबसे ऊंची चोटी चाइनापीक में एक बार फिर भारी भूस्खलन हुआ था। साथ ही पहाड़ी के एक बड़े हिस्से में करीब छह इंच चौड़ी दरार उभर आई।
ईधर टिफिनटॉप में भी भूस्खलन होने लगा है। भूस्खलन और पहाड़ी में दरारे उभरने से ऐतिहासिक ब्रिटिशकालीन डोरोथी सीट का अस्तित्व भी खतरे में नजर आ रहा है। कुमाऊँ विश्वविद्यालय के भूवैज्ञानिक प्रो बीएस कोटलिया का मानना है कि शहर और नैनीझील के बीच से गुजरने वाले फॉल्ट के एक्टिव होने से भूस्खलन और भूधसाव की घटनाएं सामने आ रही है। शहर में लगातार बढ़ता भवनों का दबाव और भूगर्भीय हलचल इसका कारण हो सकता है। उन्होंने चेताया है कि अभी भी शहरवासी नहीं संभले तो परिणाम भयावह हो सकते है।
भूगर्भ विज्ञान विभाग कुमाऊं विश्विद्यालय के प्रो बीएस कोटलियाने बताया कि ज्योलीकोट से कुंजखड़क तक एक बड़ी क्षेत्रीय भ्रश रेखा मौजूद है। जो कि बलियानले के समीप से नैनीझील के मध्य से होती हुई गुजरती है। जिसे नैनीताल फॉल्ट का नाम दिया गया है। यह फॉल्ट या दरार भूगर्भिय हलचलों का परिणाम है। भूगर्भीय हलचलों के कारण ही इस फॉल्ट के एक्टिव होने के संकेत मिल रहे है। इस दरार के सिकुड़ने या खुलने से ही भूस्खलन जैसी घटनाएं सामने आ रही है।
प्रतिबंध के बावजूद शहर पर बढ़ता गया दबाव
1880 के भूस्खलन ने ब्रिटिश हुक्मरानों को भी संकट में डाल दिया था। जिसके बाद अंग्रेजो ने कमेटियां गठित कर भूस्खलन के कारणों को जानने के साथ ही इसकी रोकथाम की कवायद शुरू कर दी थी। जिसके बाद शहर के कई क्षेत्रों में भवन निर्माण पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया था। शहर कर शेर का डांडा पहाड़ी पर तो घास काटने, चारागाह के रूप में उपयोग करने और बागवानी पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया। भूस्खलन की रोकथाम के लिए विभिन्न क्षेत्रों में वृहद स्तर पर पौधारोपण भी किया गया। ईधर अन्य क्षेत्रों में छुटपुट भवन निर्माण और विकास कार्य चलते रहे, लेकिन आजादी के बाद शहर की दशा ही बदल गयी। 70-80 के दशक के बाद शहर में अंधाधुंध भवन निर्माण हुए। आज भी प्रतिबंध के बावजूद शहर में अवैध रूप से निर्माण कार्य जारी है।