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सरकारी मशीनरी की उपेक्षा व मौसम की मार से बेहाल हैं पहाड़ के किसान

कभी आलू का करीब सौ कुंतल से अधिक पैदावार करने वाले कालाखेत गांव में आज दो कुंतल भी आलू की पैदावार भी नहीं होती। बेतालघाट ब्लॉक के कालाखेत गांव के किसान उपेक्षा से आहत हैं। करीब सत्तर फीसद किसानों ने खेतों में बुवाई करनी ही छोड़ दी है।

By Prashant MishraEdited By: Published: Sat, 05 Dec 2020 11:40 AM (IST)Updated: Sat, 05 Dec 2020 11:40 AM (IST)
सरकारी मशीनरी की उपेक्षा व मौसम की मार से बेहाल हैं पहाड़ के किसान
किसानों ने इसे जंगली जानवरों के बढ़ते आतंक तथा नीति नियंताओं की कार्यशैली को जिम्मेदार ठहराया है।

संवाद सहयोगी, गरमपानी (नैनीताल ) : सरकार व उनके नुमाइंदे सुदूर गांवों में किसानों को योजनाओ का लाभ दिलाने के लाख दावे करें पर आलम यह है कि मौसम की मार व विभागीय मशीनरी के उपेक्षा से आहत ग्रामीण अब खेती किसानी ही छोड़ने का मन बना चुके हैं। हालत यह है कि कभी आलू का करीब सौ कुंतल से अधिक पैदावार करने वाले कालाखेत गांव में आज दो कुंतल भी आलू की पैदावार भी नहीं होती। बेतालघाट ब्लॉक के सुदूर कालाखेत गांव के किसान उपेक्षा से आहत हैं। हालात यह है कि करीब सत्तर फीसद किसानों ने खेतों में बुवाई करनी ही छोड़ दी है। कई खेत बंजर हो चुके हैं। किसानों ने इसे जंगली जानवरों के बढ़ते आतंक तथा नीति नियंताओं की कार्यशैली को जिम्मेदार ठहराया है। ग्रामीण बताते हैं कि कभी कुफरी ज्योति प्रजाति के आलू की बंपर पैदावार होती थी। गांव के पचास से ज्यादा काश्तकार करीब सौ कुंतल से अधिक आलू की उपज की पैदावार करते थे मगर आज हालात विकट है। आलम यह है की अब दो कुंतल भी आलू की पैदावार नहीं होती। दिग्थरी ग्राम पंचायतों के तोक कालाखेत के कास्तकार खुद को उपेक्षित महसूस करने लगे हैं। पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य खीम सिंह, हीरा सिंह, त्रिलोक सिंह मेहरा, माधव राम, नरेंद्र सिंह, उमेश रावत आदि के अनुसार करीब सत्तर फीसद किसानों ने खेती छोड़ दी है। अधिकांश किसानों के खेत बंजर पड़े हैं।

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जंगली जानवर भी पहुंचा रहे नुकसान

किसानों के अनुसार जंगली जानवरों के आतंक से खेती बचाने को कई बार सूअर रोधी दीवार व अन्य उपाय करने के लिए गुहार लगाई जा चुकी है पर कोई सुनवाई नहीं होती जिसका खामियाजा अब काश्तकारों को भुगतना पड़ रहा है हाड़तोड़ मेहनत के बाद उपज होते ही जंगली जानवर खेतों को रौंद उपज चौपाट कर रहे है। गांव में आढू, सेव खुमानी की भी बंपर पैदावार होती है पर बंदर लंगूर उपज को चौपट कर देते हैं जिससे किसानों को निराशा हाथ लगती है।


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