Move to Jagran APP

Monsoon 2022 : ग्लेशियरों के पिघलने से काली व गोरी नदियां उफान पर, जौलजीबीवासियों की नींद उड़ी

Monsoon 2022 मई से ग्लेशियरों के पिघलने से ऊफान पर आयींं काली और गोरी नदियां मानसूनी बारिश से पूर्व ही विकराल रूप ले चुकी हैं। विशेषकर गोरी नदी तट पर निवास करने वाले तीन सौ परिवारों की नींद उड़ चुकी है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Mon, 27 Jun 2022 08:32 AM (IST)Updated: Mon, 27 Jun 2022 08:32 AM (IST)
Monsoon 2022 : ग्लेशियरों के पिघलने से काली व गोरी नदियां उफान पर, जौलजीबीवासियों की नींद उड़ी
Monsoon 2022 : काली और गोरी नदियों का जलस्तर लगातार बढ़ता जा रहा है।

जागरण संवाददाता, जौलजीबी (पिथौरागढ़) : Monsoon 2022 : नेपाल सीमा पर काली और गोरी नदियों के संगम स्थल पर स्थित जौलजीबीवासियों के अब सारी रात पहरा देने के दिन आ चुके हैं। काली और गोरी नदियों का जलस्तर लगातार बढ़ता जा रहा है।

loksabha election banner

मई माह से ग्लेशियरों की बर्फ पिघलने से ऊफान आयी दोनों नदियां मानसूनी बारिश से पूर्व ही विकराल रूप ले चुकी हैं। मानसून सक्रिय होते ही नदियों के रौद्र रू प को लेकर ग्रामीण सहमे हैं । विशेषकर गोरी नदी तट पर निवास करने वाले तीन सौ परिवारों की नींद उड़ चुकी है।

काली बस्ती से कुछ मीटर दूर बहती है परंतु गोरी नदी मकानों के पास से गुजरती है। जब भी गोरी नदी का जलस्तर बढ़ता है तो मकानों तक पानी पहुंच जाता है। गोरी नदी किनारे लगभग तीन सौ परिवार निवास करते हैं। नदी के कटाव से बचाव के लिए यहां पर तटबंध नहीं हैं। ना ही रात्रि को जलस्तर बढऩे पर उसे देखने के लिए लाइट लगी है। ग्रामीण नदी के शोर से घरों की दूसरी या तीसरी मंजिल में चले जाते हैं और रात भर जाग कर व्यतीत करते हैं।

तटबंध निर्माण की मांग अनसुनी ही रही

क्षेत्र की प्रमुख समाजसेवी शकुंतला दताल विगत लंबे समय से बस्ती को बचाने की मांग को लेकर मुखर हैं। धारचूला निर्माणाधीन तटबंध निर्माण की तर्ज पर तटबंध बनाने की मांग को लेकर कई बाद देहरादून जाकर सीएम से मिल चुकी हैं। जिलाधिकारी और सिंचाई विभाग के अधिकारियों से लगातार मांग करती आ रही हैं। उन्होंने प्रशासन से गोरी नदी किनारे स्ट्रीट लाइट की तक मांग की ताकि नदी का जलस्तर बढऩे पर लोग सजग हो सके । मानसून काल में प्रतिवर्ष गोरी नदी का जलस्तर रात को भी बढ़ कर बस्ती तक पहुंच चुका है।

नहीं किए सुरक्षा के उपाय

स्थानीय निवासी किशन दताल का कहना है कि काक जौलजीबी खतरे में है। मानसून काल हम लोग राम का नाम लेकर जिंदगी काट रहे हैं। अभी तक गोरी नदी किनारे सुरक्षात्मक कार्य नहीं किए गए हैं। मानसून काल से पूर्व ही गर्मी बढ़ते ही नदी का जलस्तर बढ़ जाता है। यहां पर मजबूत तटबंध निर्माण आवश्यक है।

विशाल हिमनदियों का संगम

सुरेंद्र बूढ़ाथोकी का कहना है कि जौलजीबी सबसे अधिक संवेदनशील है। यहां पर दो विशाल हिमानी नदियोंं का संगम है। मानसून काल में नदियों के संगम स्थल पर समुद्र जैसा दृश्य बन जाता है। गोरी नदी का पानी बस्ती में पहुंच जाता है। यहां पर तटबंध निर्माण सबसे पहले होना चाहिए था।

वर्षा ने 2013 में बदल दिया था यहां का भूगोल

अर्जुन दताल बताते हैं कि दो -दो नदियों के संगम स्थल पर जौलजीबी खतरे में है। यहां पर काली और गोरी नदियों के किनारे बस्तियां हैं। वर्ष 2013 में नदियों ने भूगोल बदल दिया था। भारत नेपाल को जोडऩे वाला अंतरराष्ट्रीय पुल एक झटके में बह गया। इसके बाद भी जौलजीबी की सुरक्षा के लिए कोई इंतजाम नहीं हो रहे हैं।

सारी रात गुजरती है दहशत तें

नीरज सिंह का कहना है कि मानसून काल हम बस्ती वाले कैसे व्यतीत करते हैं इसे हम या ऊपरवाला ही जानता है। सारी रात घर का एक सदस्य पहरा देता रहता है। कब नदी का जलस्तर बढ़ जाए कोई नहीं जानता है। जौलजीबी की उपेक्षा हो रही है। ग्रामीण नदियों के कहर की आशंका से रात भर सो नहीं पाते हैं ।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.