दो पौधों से हर सीजन तीन से चार क्विंंटल कीवी का उत्पादन कर रहे हैं 72 साल के मोहन सिंह
उत्तराखंड की पथरीली जमीन पौष्टिक फलों के उत्पादन के लिए सबसे अनुकूल है। सेब माल्टा आडू कीवी खुबानी नाशपत्ती जैसे फलों की यहां अच्छी पैदावार है। वहीं कुछ किसानों ने विदेशी फलों का उत्पादन भी शुरू कर दिया है।
अल्मोड़ा, दीप सिंह बोरा : उत्तराखंड की पथरीली जमीन पौष्टिक फलों के उत्पादन के लिए सबसे अनुकूल है। सेब, माल्टा, आडू, कीवी, खुबानी, नाशपत्ती जैसे फलों की यहां अच्छी पैदावार है। वहीं कुछ किसानों ने विदेशी फलों का उत्पादन भी शुरू कर दिया है। ऐसे ही एक किसान अल्मोड़ा जिले के हैं, जन्होंने कीवी का उत्पादन शुरुआत में शौकिया तौर पर किया और अब इसे राेजगार का जरिया बना लिए हैं। इसके साथ ही वह आसपास के लोगों को कीवी की खेती का प्रशिक्षण भी दे रहे हैं। कोरोना वायरस के संकटकाल में कीवी की खेती बेरोजगारों के लिए अवसर बन सकती है।
यहां बात हो रही है 72 वसंत पार कर चुके अल्मोड़ा के हवालबाग ब्लॉक स्थित स्याहीदेवी गांव निवासी मोहन सिंह लटवाल की। कृषि बागवानी के लिए समर्पित मोहन सिंह को वर्ष 2005 में जिले के प्रगतिशील किसान का गौरव पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं। इसी दौरान उन्हें हिमाचल में लगी कृषि प्रदर्शनी में हिस्सा लेने का मौका मिला। उन्होंने समुद्र तल से करीब सात हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित स्याही देवी में किवी उत्पादन के मकसद से वैज्ञानिकों से राय मांगी। बकौल मोहन सिंह, तब विशेषज्ञों ने तर्क दिया कि किवी उत्पादन इतना आसान नहीं।
दो पौधों से दो कुंतल किवी उत्पादन
मगर मोहन सिंह की जिद पर विशेषज्ञों ने मात्र दो ही पौधे उपलब्ध कराए। गांव लौटने पर दो नाली जमीन को किवी की बेल के लिए तैयार किया। दो पौधों से वर्ष 2010 में पहले सीजन में फल लगे। दो कुंतल उत्पादन हुआ। स्याही देवी के टूरिस्ट एस्टेट में साहसिक पर्यटन के सिलसिले में पहुंचे दिल्ली का दल बाकायदा 250 रुपया प्रति किलो की दर से किवी खरीद ले गया। इससे बुजुर्ग का उत्साह बढ़ा। पौधे अब और परिपक्व हो चले हैं। उनकी बेल लगातार विस्तार ले रही। अबकी सीजन मोहन सिंह के यहां तीन से चार कुंतल किवी हुई है।
अधिकतम 1800 मीटर की ऊंचाई पर होती है किवी
विशेषज्ञ कहते हैं, आमतौर पर 900 से 1800 मीटर की ऊंचाई किवी के लिए माकूल होती है। मगर बुजुर्ग मोहन सिंह ने मेहनत व पौधों की बेहतर परवरिश से कठिन काम को आसान कर दिखाया। मोहन सिंह कहते हैं कि किवी के बागान में वह घास व पलवार के जरिये सिंचाई में खर्च होने वाले पानी की भी बचत कर लेते हैं।
अब प्रवासियों को कर रहे प्रोत्साहित
बगैर सरकारी मदद व विभागीय सहयोग के अपने बूते खेती में नित नए प्रयोग करने वाले धरतीपुत्र मोहन सिंह क्षेत्र में बागवानी विकास में जुटे दिग्विजय सिंह बौरा का प्रोत्साहन नहीं भूलते। वह कहते हैं, जैसे उन्होंने हमें कुछ नया करने के लिए प्रेरित किया। अब मोहन सिंह गांव लौटे प्रवासियों व अन्य ग्रामीणों को जैविक तकनीक से किवी उत्पादन के जरिये आर्थिकी मजबूत करने का हुनर सिखा रहे।
बड़े काम का ये रसीला किवी
- पहाड़ी फल है किवी। 'विटामिन सी' का भंडार।
- रोगों से लडऩे में रामबाण। शरीर की प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाता है।
- कैंसर रोगियों के लिए रामबाण।
- हृदय रोग में लाभकारी।
- मधुमेह रखे नियंत्रित
- गर्भावस्था में फायदेमंद, गर्भवती महिलाओं को रोजाना 400 से 600 माइक्रोग्राम फोलिक एसिड की जरुरत को पूरा करता है।
- पाचन दुस्स्त रख अवसाद से बचाता है। किवी में केले के बराबर पोटेशियम जो ओस्टियोपोरोसिस के रोगियों को देता है लाभ
- किवी में 27 से अधिक पोषक तत्व, एंटीऑक्सीडेंट, फाइबर व मिनरल्स का जानदार स्रोत।
- पेट दर्द में राहत, उलटी रोकता है।
- सर्दी जुकाम में फायदेमंद
- लंबे समय तक जवा रखता है।
- खून की कमी दूर करता है।
- रोजाना किवी का सेवन आपके शरीर में ऊर्जा का नया स्त्रोत जगाता है।