पहाड़ से पलायन बेलगाम, हर साल 394 गांव बंजर और 11898 लोगों ने छोड़ा घर
आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले दस साल यानी साल 2011 से 2020 तक प्रदेश के 13 जिलों से 118981 लोगों ने पूरी तरह से पलायन किया। जिस वजह से 3946 गांव बंजर हो गए। हर साल औसतन 11898 लोगों ने पलायन किया और 394 गांव खाली हो गए।
हल्द्वानी, गोविंद बिष्ट। पहाड़ का पानी और जवानी टिकने का नाम नहीं ले रही। रोजगार, शिक्षा और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की तलाश में लोग गांव से मैदान की और दौड़ रहे हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले दस साल यानी साल 2011 से 2020 तक प्रदेश के 13 जिलों से 118981 लोगों ने पूरी तरह से पलायन किया। जिस वजह से 3946 गांव बंजर हो गए। इस हिसाब से हर साल औसतन 11898 लोगों ने पलायन किया और 394 गांव खाली हो गए। लंबे संघर्षों के बाद बने इस राज्य के लिए यह आंकड़े चिंताजनक है।
हल्द्वानी के तिकोनिया निवासी हेमंत गौनिया ने सूचना अधिकार के तहत पलायन आयोग से कई बिंदुओं पर जानकारी मांगी थी। जिसमें उन्होंने सरकार द्वारा पलायन रोकने को किए कामों का ब्यौरा भी पूछा। हालांकि, आरटीआइ में मिले जवाब में कहा गया कि आयोग केवल सरकार को सिफारिश करता है। इसलिए कामों का ब्यौरा उनके पास नहीं है। पलायन आंकड़ा भी पिछले दस साल का दिया गया। क्योंकि 2011 में ही आयोग अस्तित्व में आया था।
कुमाऊं की स्थिति गढ़वाल से बेहतर
कुमाऊं के छह जिलों की स्थिति गढ़वाल के सात जनपदों के मुकाबले बेहतर है। दस साल में गढ़वाल के गांवों से जहां 72067 लोगों ने पलायन किया। वहीं, कुमाऊं से 46914 लोगों ने। सबसे ज्यादा पलायन पौड़ी जिले से हुआ। जबकि ऊधमसिंह नगर में। पौड़ी से 25584 व ऊधमसिंह नगर से 952 लोगों ने पलायन किया। राजधानी देहरादून तक से 2802 लोग चले गए।
2011 से 2020 का आंकड़ा
जिला खाली हुई ग्राम पंचायत पलायन की संख्या
उत्तरकाशी 111 2727
चमोली 373 14289
रुद्रप्रयाग 230 7835
टिहरी 585 18830
देहरादून 53 2802
पौड़ी 821 25584
पिथौरागढ़ 384 9883
बागेश्वर 195 5912
अल्मोड़ा 646 16207
चंपावत 208 7886
नैनीताल 213 4823
यूएसनगर 54 952
हरिद्वार 73 1251