वृद्धाश्रम में रह रहे अपनों के ठुकराए कई बुजुर्ग, हाल जानने तक नहीं आते NAINITAL NEWS
श्राद्ध पक्ष में लोग अपने पितरों के निमित्त श्राद्धकर्म आदि कर्मकांड आदि करते हैं। वहीं समाज में कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने अपने परिजनों को जीवित रहते घर-द्वार से अलग कर दिया।
हल्द्वानी, जेएनएन : श्राद्ध पक्ष में लोग अपने पितरों के निमित्त श्राद्धकर्म, तर्पण व सामर्थ्य अनुसार दान आदि करते हैं। वहीं, समाज में कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्होंने अपने परिजनों को जीवित रहते घर-द्वार से अलग कर दिया है। अपनों से हारे ऐसे लोग वृद्धाश्रम में रहकर किसी तरह शेष जीवन व्यतीत कर रहे हैं। वहीं कुछ लोग ऐसे हैं जो चौराहों पर दूसरों के आगे हाथ फैलाकर पेट भरने को मजबूर हैं। श्राद्धपक्ष में हमने ऐसे ही कुछ लोगों से बात कर खोते मानवीय मूल्यों को समाज के सामने लाने की कोशिश की। इसलिए ताकि लोग अपने बुजुर्गों की कद्र करें, क्योंकि कहा भी गया है 'पुराना वृक्ष फल भले न दे, लेकिन छांव जरूर देता है।'
पत्नी ने दस साल से हाल तक नहीं पूछा
बरेली रोड स्थित आनंद वृद्धाश्रम में चार बाय छह फीट की फोल्डिंग चारपाई पर गले में गमछा डाले बैठे रुदन साहनी (47) की पत्नी, दो बेटे और यूपी के देवरिया में दो मंजिला मकान है। चौधरी चरण सिंह विवि मेरठ से बीएड करने वाले रुदन अच्छे से बोल लेते हैं। हालांकि उनके हाथ-पांव में परेशानी हैं, फिर भी याददाश्त इतनी पक्की कि तारीख तक याद है। कहते हैं ज्योलीकोट के पार्वती प्रेमा जगाती स्कूल में वर्ष 2000 से आठ अक्टूबर 2012 तक पढ़ाया। 25 हजार रुपये महीना वेतन मिलता था। बच्चे, पत्नी साथ रहती थी। 2009 से तबियत बिगडऩी शुरू हुई तो पत्नी बच्चों समेत गांव (देवरिया) लौट गई और आज तक नहीं लौटी। हाल भी नहीं पूछा। वृद्धाश्रम संचालिका कनक चंद ने किसी तरह नंबर जुटाकर पत्नी से बात की तो वह अपने साथ रखने को तैयार नहीं हुई। हालांकि रुदन अपने घर जाना चाहते हैं।
हाथ-पैर जवाब दे गए तो परिवार ने बनाई दूरी
डेढ़ साल से आनंद वृद्धाश्रम में रह रहे कैलाश कश्यप (83) हाथ-पैर से लाचार हैं। उम्र के आखिरी पड़ाव में जब उन्हें सहारे की जरूरत थी तो परिवार ने किनारा कर लिया। कैलाश कश्यप का हल्द्वानी में अपना घर-परिवार है। परिजन उन्हें ताने मारते व प्रताडि़त करते थे। इसलिए वह घर से बाहर ही रहने लगे। बाद में आश्रम में आसरा मिला। बुजुर्ग का दिल है कि अपने परिजनों की खुलकर शिकायत भी नहीं कर पाते। बताते हैं कि तेल मिल में काम कर परिवार पाला। आश्रम संचालिका कनक बताती हैं पिछले दिनों कैलाश को परिजन साथ ले गए थे, मगर कुछ दिन बाद ही वापस छोड़ गए। बुजुर्ग दबी जुबान में जमीन का कोई मामला बता रहे थे।
प्रेरणा : अपनों की तरह देखरेख करते हैं कृष्ण-गीता
बुजुर्गों से भले अपनों ने किनारा कर लिया हो, लेकिन आनंद वृद्धाश्रम में काम करने वाले कृष्ण चंद्र व उनकी पत्नी गीता परिवार के सदस्यों की देखरेख कर रही हैं। ओखलकांडा के रहने वाले कृष्ण, गीता बीए पास हैं। दोनों आश्रम में रहकर यहां रहने वाले 12 बेसहारा बुजुर्गों की सेवा करते हैं। बीमारी में अस्पताल ले जाते हैं। बुजुर्ग उनकी तारीफ करते नहीं थकते।
हालचाल लेने तक नहीं आते
कनक चंद, संचालिका आनंद वृद्धाश्रम ने बताया कि आश्रम में रहने वाले अधिकांश बुजुर्ग अकेले हैं, जिनके परिवार हैं भी तो अपनों का हाल जानने नहीं आते। यह समाज की बहुत बड़ी विडंबना है। बच्चों में संस्कार व बड़ों के आदर का बीज बोना होगा।