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प्रार्थना के लिए जंगलों से जाना पड़ता था मल्लीताल, जानवरों के डर से बनाया सेेंट निकोलस चर्च

प्रारम्भ में इन विद्यालयों के छात्रों शिक्षकों को चर्च सॢवस के लिए व रविवार प्रार्थना के लिए सूखाताल स्थित सेंट जोंस चर्च जाना पड़ता था मगर यह चर्च स्कूल से दूर था। रास्ता घनघोर जंगल से गुजरता था और हमेशा जंगली जानवरों का डर बना रहता था।

By Prashant MishraEdited By: Published: Fri, 11 Dec 2020 09:31 AM (IST)Updated: Fri, 11 Dec 2020 09:31 AM (IST)
प्रार्थना के लिए जंगलों से जाना पड़ता था मल्लीताल, जानवरों के डर से बनाया सेेंट निकोलस चर्च
इतिहासकार प्रो अजय रावत बताते हैं कि इस चर्च की नीवं 1890 में डाली गई

किशोर जोशी, नैनीताल : 19वीं शताब्दी में स्थापित शेरवुड व ऑल सेंट्स कॉलेज के छात्रों को जब रविवार की प्रार्थना के लिए घने जंगल के बीच रास्ते से मल्लीताल क्षेत्र में स्थित सेंट जोंस चर्च जाना पड़ता था तो जंगली जानवरों के खतरे को देखते हुए अंग्रेजों ने राजभवन के समीप सेंट निकोलस चर्च की स्थापना की। प्रोटेस्टेंट धर्म के अनुयायियों के लिए 1890 में बिशप एल्फ्रेड ऐल्फील्ड क्लिफर तथा उत्तर पश्चिमी प्रान्त के गवर्नर सर ऑकलैंड काल्विन द्वारा इसकी नींव रखी गई थी।

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प्रसिद्ध सेंट निकोलस चर्च राजभवन के निकट स्थित है। इस चर्च की स्थापना प्रोटेस्टेंट मत के अनुयायियों के लिए की गई थी। राजभवन से टिफिनटॉप की ओर पैदल मार्ग पर दो प्रोटेस्टेंट स्कूलों की स्थापना 19 वीं शताब्दी में हो चुकी थी। शेरवुड बालकों के लिए जबकि ऑल सेंट्स बालिकाओं के लिए। प्रारम्भ में इन विद्यालयों के छात्रों शिक्षकों को चर्च सॢवस के लिए व रविवार प्रार्थना के लिए सूखाताल स्थित सेंट जोंस चर्च जाना पड़ता था, मगर यह चर्च स्कूल से दूर था। रास्ता घनघोर जंगल से गुजरता था और हमेशा जंगली जानवरों का डर बना रहता था। इस कारण 19 वीं शताब्दी में बिशप तथा अन्य अनुयायियों द्वारा निर्णय लिया गया कि एक प्रोटेस्टेंट चर्च स्कूलों के नजदीक स्थापित किया जाए।

इतिहासकार प्रो अजय रावत बताते हैं कि इस चर्च की नीवं 1890 में डाली गई, जबकि इसकी प्रतिस्थापना 1896 में बिशप एल्फ्रेड क्लिफर्ड तथा उत्तर पश्चिम प्रान्त के लेफ्टिनेंट गवर्नर सर ऑकलैंड काल्विन द्वारा किया गया। काल्विन के नाम से लखनऊ में भी कॉलेज है। प्रो रावत के अनुसार संत निकोलस दो नाम हैं, संत निकोलस ऑफ मायरा अथवा संत निकोलस ऑफ बारी। ये यूनानी मूल के थे व चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध पा चुके थे, इसलिए उन्हेंं निकोलस द वंडर वर्कर की उपाधि से नवाजा गया। उनका एक प्रसिद्ध चमत्कार अपने नाविक भक्तों के लिए किया गया था। जब समुद्र में तूफान आ गया, भक्तों ने उनका आह्वान किया, तो संत ने तूफान रोक दिया।  उनका जन्म 15 मार्च 270 ईसवीं में पतारा नामक स्थान में हुआ जबकि मृत्यु 6 दिसंबर 343 ईसवीं में मायरा में हुई। वे सेंटा क्लॉज अथवा फादर क्रिसमस के नाम से प्रसिद्ध हैं।

दुनियां में क्रिसमस पर भेंट देने की परंपरा उन्हीं से शुरू हुई। वे नाविकों, व्यापारियों, तीरंदाजों, छात्रों तथा जिनका विवाह नहीं हुआ, उनके रक्षक हैं। निकोलस दिवस 22 मई को मनाया जाता है। उनकी मृत्यु के 200 साल बाद सेंट निकोलस चर्च की पहली बार मायरा नामक स्थान पर स्थापना हुई। उनकी लोकप्रियता इतनी अधिक है कि मूॢत निर्माण वृत्त चित्रों में कलाकारों के प्रिय विषयवस्तु हैं। साथ ही रूस, सर्बिया तथा यूनान के वह संरक्षक संत माने जाते हैं। नैनीताल स्थित संत निकोलस चर्च हैरिटेज भवन घोषित है।


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