जानिए कुमाऊं के उन प्रमुख मुद्दों को जो हर चुनाव की तरह फिर सवाल बनकर खड़े हैं
कुमाऊं के कुछ प्रमुख मसलें जो इस चुनाव में भी मुद्दे बनकर खड़े हो गए हैं उनमें प्रमुख हैं जमरानी बांध आईएसबीटी और झीलों का संरक्षण। आइए उनपर नजर डालते हैं।
जमरानी बांध : जमरानी से बुझेगी लाखों लोगों की प्यास
नैनीताल, जेएनएन : नैनीताल जिले के तराई-भाबर के साथ ही उत्तर प्रदेश के लिए भी जमरानी बांध अति महत्वपूर्ण परियोजना है। निकाय और पंचायत चुनावों से लेकर विधानसभा व लोकसभा चुनाव तक में दशकों से जमरानी बांध को मुद्दा बनाया जाता रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में भी जमरानी बांध परियोजना का मुद्दा भाजपा की चुनावी घोषणाओं में शामिल था।
जमरानी बांध की जरूरत आज की नहीं दशकों पुरानी है। वर्ष 1975 में जमरानी बांध परियोजना को सैद्धांतिक स्वीकृति के साथ ही 61.25 करोड़ रुपये स्वीकृत हुए थे। सिंचाई विभाग ने वर्ष 1981 में काठगोदाम बैराज, 440 किमी नहरें व जमरानी कालोनी आदि के निर्माण में 25.24 करोड़ रुपये खर्च किए। इसके बाद कई बार जमरानी बांध की डीपीआर बनाकर केंद्र सरकार को भेजी गई, लेकिन हर बार आपत्तियां लगकर प्रस्ताव वापस आ गए। वर्ष 2018 के अंतिम महीनों में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने भी जमरानी बांध परियोजना निर्माण में लेटलतीफी को गंभीरता से लिया। इसके बाद सरकारें हरकत में आई और जमरानी बांध की डीपीआर की कमियां दूर होने लगी। फरवरी माह में केंद्रीय जल आयोग के जमरानी बांध परियोजना की 2584 करोड़ रुपये की डीपीआर को स्वीकृति दे दी। अब वित्त मंत्रालय से परियोजना को वित्तीय स्वीकृति मिलनी है।
जमरानी बांध 624.48 हेक्टेयर भूमि पर बनना है। बांध में 10 किलोमीटर झील का निर्माण होगा और इसकी चौड़ाई एक किमी होगी। 130.6 मीटर ऊंचे बांध का 43 फीसद सिंचाई के लिए पानी उत्तराखंड को मिलेगा, जबकि शेष 57 फीसद पानी उत्तर प्रदेश को सिंचाई के लिए दिया जाएगा। बांध की क्षमता 208.60 मिलियन क्यूबिक मीटर जल संग्रहण होगी। बांध से हल्द्वानी को 117 एमएलडी प्रतिदिन पानी मिलेगा और 14 मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा। बांध के जलाशय से 57065 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई हो सकेगी। इसके अलावा बांध निर्माण से मत्स्य पालन, नौकायन, पर्यटन गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा।
समाधान के तरीके
1- योजना को तत्काल स्वीकृति मिले
2- योजना से प्रभावित ग्रामीणों को विस्थापित किया जाए
3- जमरानी बांध योजना को राष्ट्रीय योजना घोषित किया जाए
4 - योजना को चुनावी एजेंडे से बाहर निकाल जाए
आइएसबीटी : शहर की एक अदद जरूरत
गौलापार में आइएसबीटी का निर्माण कार्य रोकने के बाद से सरकार अभी तक नई जमीन की तलाश में जुटी है। कुमाऊं का प्रवेशद्वार होने के साथ तेजी से बढ़ रहे इस शहर के लिए आइएसबीटी एक अहम मुद्दा है। इसके निर्माण से जहां देश के हर कोने तक बसें भेजकर परिवहन निगम की कमाई में इजाफा होगा, वहीं नैनीताल रोड पर बसों के आवागमन की वजह से रोजाना लगने वाले जाम से भी निजात मिलेगी।
साल 2015 में वन विभाग ने गौलापार स्टेडियम के पास आठ हेक्टेयर जमीन आइएसबीटी निर्माण के लिए दी थी। यहां 2625 पेड़ कटवाने के बाद तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने वर्ष 2016 में शिलान्यास कर कंपनी नियुक्त कर काम भी शुरू करवा दिया। तब इसकी लागत 75 करोड़ आंकी गई लेकिन बाद में सरकार बदलते ही कंकाल मिलने का मुद्दा उठाकर इस प्रोजेक्ट पर ताला लगा दिया गया। इसके बाद से सरकार लगातार दूसरी जगह चिह्नित करने में जुटी है। तीनपानी के पास वनभूमि का फिर से निरीक्षण किया गया। परिवहन विभाग के बड़े अफसरों से लेकर प्रशासन तक ने जगह का सीमांकन करने के साथ रिपोर्ट शासन को भेज दी है। बकायदा सड़क को चौड़ा करने के लिए साढ़े 22 करोड़ का प्रस्ताव भी आठ माह पूर्व स्वीकृति के लिए भेजा गया लेकिन अभी तक जमीन अधिग्रहण को लेकर जमीनी स्तर पर काम शुरू नहीं हो सका। वहीं गौलापार में काम रोकने की वजह से जनहित याचिका दायर कर मामले को हाई कोर्ट तक ले जाया गया है। बड़ा सवाल यह है कि दो सरकारों के बीच उलझा शहर का बड़ा प्रोजेक्ट वर्तमान में पूरी तरह अधर में है। परिवहन मंत्री यशपाल आर्य तक दून में बैठक कर इस जमीन पर मुहर लगा चुके हैं लेकिन धरातल पर कोई काम फिलहाल देखने को नहीं मिल रहा। चुनाव के दौरान लगातार आइएसबीटी को लेकर चर्चा हो रही है। सरकार लोकसभा चुनाव संपन्न होने के बाद प्रोजेक्ट को अमलीजामा पहनाने का दावा कर रही है।
समाधान के तरीके
1 - आइएसबीटी की जमीन जल्द चिन्हित हो
2 - आसपास के क्षेत्रों को विकसित किया जाए
3 - सड़क व अन्य संसाधनों को विकसित किया जाए
4 - आसपास स्वास्थ्य केंद्र व ऑटो स्टेंड भी विकसित किया जाए
झील : झीलों से पहचान, वही बदहाल
विश्व प्रसिद्ध नैनी झील का लगातार गिरता जलस्तर शहर के अस्तित्व के लिए बड़ी चिंता बनकर उभरा है। राज्य गठन के बाद एनडीए सरकार के कार्यकाल में झील संरक्षण परियोजना के बहाने नैनी झील समेत आसपास के झीलों के कायाकल्प के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने सौ करोड़ का पैकेज दिया, जिसमें से करीब 65 करोड़ के प्रोजेक्ट मंजूर हुए। झील में गिरने वाले चार दर्जन से अधिक नाले सूख गए हैं। इन नालों से ही सालभर झील रिचार्ज होती रही है। इसके अलावा नैनी झील का कैचमेंट सूखाताल अतिक्रमण की चपेट में है। अवैध निर्माण के मलबे के ढेर की वजह से सूखाताल में मोटी परत जमा हो गई है। बरसात में झील में पानी जमा हो रहा है मगर मोटी परत होने की वजह से रिसाव हो जाता है। झील में गिरने वाले नालों से बरसात में मलबा आने से गहराई घट रही है। नैनी झील में गिरते जलस्तर की वजह से पिछले साल से पहली बार शहर में 24 घंटे पानी सप्लाई की दशकों पुरानी व्यवस्था को खत्म कर सुबह शाम चार घंटे की गई। नैनी झील का अस्तित्व बनाए रखने के लिए गरमपानी में कोसी नदी से पानी लाने का प्रोजेक्ट तैयार किया गया है। नैनी झील का ब्रिटिशकाल में बना डांठ में दरारें पड़ रही हैं। झील के गेट अत्यधिक पुराने पड़ चुके हैं। शहर में अवैध निर्माण का मलबा भी नालों के माध्यम से बरसात में झील में बहा दिया जाता है। इससे पानी भी दूषित हो रही है। नौकुचियाताल,भीमताल, सातताल में भी जलस्तर घट रहा है।
समाधान के तरीके
1 - झील में गिरने वाले नालों से अतिक्रमण हटाया जाए
2 - सूखा ताल से मलबा का निस्तारण किया जाए
3 - झील में गिरने वाले कचरे पर रोक लगाई जाए
4 - झील से अनावश्यक पानी न लिया जाए
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