1929 में कौसानी पहुंचे थे बापू, कुमाऊं में ही जगाई थी आजादी की अलख
महात्मा गांधी ने कौसानी से पूरे कुमाऊं में आजादी की अलख जगाई। यहां बापू 1929 में आए। 14 दिन रुके। यहीं से आंदोलन की धार तेज की।
चंद्रशेखर द्विवेदी, बागेश्वर : महात्मा गांधी ने कौसानी से पूरे कुमाऊं में आजादी की अलख जगाई। यहां बापू 1929 में आए। 14 दिन रुके। यहीं से आंदोलन की धार तेज की। कुमाऊं यात्रा में छुआछूत जैसी कुरीति पर भी प्रहार किया। यही कारण रहा कि 22 दिवसीय यात्रा में आंदोलन के लिए दान में मिले 24 हजार रुपये भी गांधीजी ने हरिजन कोष में दे दिए। यहीं पर उन्होंने अनासक्ति योग पुस्तक की प्रस्तावना लिखी। अनासक्ति आश्रम आज भी आजादी की प्रेरणा देता है।
कुली बेगार आंदोलन ने किया प्रभावित
ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ सफलतापूर्वक चलाए गए कुली बेगार आंदोलन से प्रभावित होकर बापू यहां आए। कुमाऊं यात्रा का बड़ा उद्देश्य बागेश्वर जाना था। 22 जून को वह कौसानी से पैदल और डोली के सहारे बागेश्वर मुख्यालय पहुंचे, जहां स्वराज भवन की नींव रखी। एक दिन रुकने के बाद फिर कौसानी के लिए प्रस्थान कर गए।
26 स्थानों पर भाषण, स्वावलंबन पर रहा जोर
कुमाऊं की पहली यात्रा में महात्मा गांधी ने 26 स्थानों पर भाषण दिए। सभी में स्वदेशी, स्वावलंबन, आत्मशुद्धि, खादी प्रचार व समाज में व्याप्त कुरीतियों को त्यागने पर जोर दिया। कुमाऊं भ्रमण में उनके साथ प्रमुख रूप से बद्री दत्त पांडे, गोङ्क्षवद बल्लभ पंत, हीरा बल्लभ पांडे, मोहन ङ्क्षसह मेहता, विक्टर मोहन जोशी, रुद्रदत्त भट्ट भी मौजूद रहे।
बागेश्वरी चरखे ने आगे बढ़ाया स्वदेशी आंदोलन
बागेश्वर प्रवास के दौरान जीत सिंह टंगडिय़ा ने बापू को स्वनिॢमत चरखा भेंट किया। चरखे की विशेषता थी कि वह कम समय में ज्यादा ऊन कात लेता था। उसी चरखे को देखकर तब गांधीजी ने कहा था कि यह स्वदेशी आंदोलन को आगे बढ़ाने में मदद करेगा। वर्धा पहुंचने के बाद बापू ने विक्टर मोहन जोशी को पत्र लिखकर एक और चरखा मंगाया, जिसे नाम दिया बागेश्वरी चरखा। जीत सिंह ने बाद में उस चरखे में और बदलाव किया, जो कताई के साथ ही बटाई भी कर लेता था। 1934 में तो उन्होंने घर में चरखा आश्रम की ही स्थापना कर दी।
कुमाऊं की दूसरी यात्रा
बापू कुमाऊं की दूसरी यात्रा में 18 मई 1931 को नैनीताल पहुंचे। कुमाऊं कमिश्नरी के तत्कालीन तीन जिलों नैनीताल, अल्मोड़ा व ब्रिटिश गढ़वाल ( पौड़ी) के कांग्रेस कार्यकर्ताओं का सम्मेलन भी आयोजित किया। यह कुमाऊं परिषद के 1926 में कांग्रेस में विलय होने के बाद पहला बड़ा राजनैतिक सम्मेलन था। गांधीवादी विचारक गोपाल दत्त भट्ट कहते हैं कि महात्मा गांधी ने कुमाऊं में आजादी की अलख जगाई। आने वाली पीढिय़ां भी उनका संदेश याद रखेंगी।