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Uttarakhand News: यहीं से शुरू हुई भगवान शंकर के शिवलिंग पूजन की परंपरा, शैव सर्किट में शामिल होगी पिथौरागढ़ की महादेव गुफा

shivling धारचूला की उच्च हिमालयी दारमा घाटी के अंतिम गांव सीपू से आगे यह गुफा है। 14 500 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस गुफा तक पहुंचने का मार्ग दुर्गम है। लेकिन स्थानीय लोग यहां पर भगवान शिव की आराधना के लिए पहुंचते हैं। यहां पर शिवोत्सव भी प्रस्तावित है।

By Prashant MishraEdited By: Published: Sat, 21 May 2022 02:16 PM (IST)Updated: Sat, 21 May 2022 03:44 PM (IST)
Uttarakhand News: यहीं से शुरू हुई भगवान शंकर के शिवलिंग पूजन की परंपरा, शैव सर्किट में शामिल होगी पिथौरागढ़ की महादेव गुफा
शिव पुराण के अनुसार इस गुफा में भगवान शिव ने लंबे समय तक तपस्या की थी।

तेज सिंह गुंज्याल, धारचूला (पिथाैरागढ़) : चीन सीमा से लगे अंतिम गांव सीपू से सटी पौराणिक महादेव गुफा को कुमाऊं में प्रस्तावित शिव सर्किट से जोड़ा जाएगा। कुमाऊं मंडल विकास निगम (केएमवीएन) इसे आदि कैलास यात्रा मार्ग में शामिल कर धार्मिक पर्यटन का नया अवसर प्रदान करेगा। इससे स्थानीय युवाओं को रोजगार मिलेगा और क्षेत्र का तेजी से विकास भी होगा।

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शिव पुराण के अनुसार इस गुफा में भगवान शिव ने लंबे समय तक तपस्या की थी। सती के अग्निकुंड में समाने के बाद विरत हुए भगवान शिव ने इसी गुफा को अपनी तपस्या स्थली बनायी थी। धार्मिक मान्यता के अनुसार वह गुफा के भीतर जिस पत्थर पर खड़े हुए वहां पर आज भी शिव के पदचिह्न विद्यमान हैं।

यह गुफा धारचूला की उच्च हिमालयी दारमा घाटी के अंतिम गांव सीपू से आगे है। 14, 500 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस गुफा तक पहुंचने का मार्ग दुर्गम है। लेकिन स्थानीय लोग यहां पर भगवान शिव की आराधना के लिए पहुंचते हैं। यहां पर शिवोत्सव भी प्रस्तावित है।

भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आइटीबीपी) के पूर्व उप महानिरीक्षक एपीएस निंबाडिया के अनुसार उन्होंने इस गुफा का दर्शन किया है। उनके अनुसार आज भी गुफा में भगवान शिव के पदचिह्न मौजूद हैं। उनका मानना है कि आदि कैलास पार्वती सरोवर का कैलास मानसरोवर की तर्ज पर परिक्रमा पथ बनाया जाए तो यह स्थल धार्मिक पर्यटन के रूप मेें अपनी खास पहचान बनाएगा।  

सीपू गांव निवासी जीवन सिंह सीपाल ने बताया कि यहां पर भगवान शिव ने तपस्या की थी। ग्रामीण महादेव गुफा में जाकर भगवान शिव के चरण की पूजा करते हैं। युवा ट्रैकर जयेंद्र फिरमाल बताते हैं कि महादेव गुफा का मार्ग दुर्गम है। लेकिन पर्यटकों को पहुंचने में किसी तरह की परेशानी नहीं होती है।

यहीं से शिवलिंग पूजन की परंपरा 

स्थानीय लोग पूजा में भोजपत्र या फिर पद्म के वृक्ष की टहनी को शिव के प्रतीक के रूप में स्थापित करते हैं। उच्च हिमालय में भोजपत्र और मध्य हिमालय में पद्म का वृक्ष कभी नहीं सूखता। दोनों वृक्षों को अति पवित्र माना जाता है।

कालांतर में जब श्रद्धालु कैलास मानसरोवर की यात्रा पर जाते थे तो उन्होंंने इसे देखा। लेकिन भगवान शिव के प्रतीक के रूप में लंबी वृक्ष की शाखा नहीं लगा पाने के कारण छोटे शिवलिंग स्थापित करने लगे। 

साहसिक पर्यटन के प्रबंधक दिनेश गुरुरानी ने बताया कि महादेव गुफा भगवान शिव की तपस्या स्थली है। यह क्षेत्र अति पवित्र है। महादेव गुफा धार्मिक पर्यटन के लिए इस क्षेत्र में मील का पत्थर बनेगी। इसके लिए प्रशासन, पर्यटन विभाग और केएमवीएन से बात कर महादेव गुफा को शिव सर्किट से जोडऩे का प्रयास किया जा रहा है।

क्या है शैव या शिव सर्किट

अल्मोड़ा में जागेश्वर, पिथौरागढ़ में पाताल भुवनेश्वर, बागेश्वर में बागनाथ महादेव, चंपावत में क्रांतेश्वर महादेव, भीमताल के भीमेश्वर महादेव, काशीपुर में मोटेश्वर महादेव, टिहरी के कोटेश्वर महादेव, केदारनाथ, ऊखीमठ में काशीविश्वनाथ, चोपता में तुंगनाथ, उत्तरकाशी में विश्वनाथ, हरिद्वार में दक्ष प्रजापित को मिलाकर शैव सर्किट में विकसित किया जा रहा है। इससे धार्मिक पर्यटन को गति मिलेगी। और अब महादेव गुफा को इस सर्किट में शामिल किया जाएगा।


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