ट्रीटमेंट से नहीं चलेगा काम, नैनीताल के ऐतिहासिक लोअर माल रोड का होगा पुनर्निर्माण
सरोवर नगरी की ऐतिहासिक लोअर माल रोड के पिछले साल झील में समाने के बाद ट्रीटमेंट किए हिस्से का फिर से ट्रीटमेंट नहीं होगा।
नैनीताल, जेएनएन : नैनीताल के ऐतिहासिक लोअर माल रोड का बड़ा हिस्सा पिछले साल दरक कर झील में समा गया था और इसका असर अपर मालरोड पर भी पड़ा था। मरम्मत के लिए इस पर वाहनों के आवागमन को प्रतिबंधित कर दिया गया था। मरम्मत के बाद पुन: खोला गया आैर फिर आवागमन सुचारु हो सका। लेकिन यह एक काम चलाऊ व्यवस्था थी। जिला प्रशासन माल रोड को लेकर सचेत हुआ है। इसलिए अब मरम्मत कराने की बजाए विशेषाज्ञों की सलाह पर पुनिर्निर्माण पर विचार किया जा रहा है। इसी क्रम में जिला प्रशासन ने करीब 41 करोड़ की डीपीआर का बनाकर शासन को भेजा है। डीएम ने इसके लिए सचिव लोनिवि को भी पत्र भेज है।
पिछले साल 18 अगस्त की शाम को लोअर माल रोड का करीब 25 मीटर हिस्सा झील में समा गया था। करीब एक माह तक लोअर माल रोड से वाहनों की आवाजाही बंद रही। लोनिवि ने तब 23.79 लाख की लागत से 25 फीट लंबाई के जीआइ पाइपों को 10 फीट गहराई तक गाड़कर उनके सहारे जियो बैग की चिनाई की। जिसके बाद गाडिय़ों की आवाजाही शुरू हो सकी। इस जियो बैग की आयु करीब दस-12 साल होती है। हाल ही में ट्रीटमेंट वाले हिस्से की चौड़ाई डेढ़ मीटर बढ़ाने के लिए लोनिवि की ओर से 13 लाख का आगणन तैयार किया गया था। खुद डीएम सविन बंसल अपने फंड से यह बजट देने को सहमति जता चुके थे, मगर लोनिवि मुख्य अभियंता से वार्ता के बाद इस प्रस्ताव को रद कर दिया गया है। डीएम के अनुसार खतरे की आशंका को देखते हुए ट्रीटमेंट नहीं करने का निर्णय लिया है।
56 मीटर गहराई में भी नहीं मिली हार्ड रॉक्स
लोअर माल रोड समेत आसपास की पहाड़ी के स्थायी उपचार के लिए आपदा प्रबंधन विभाग, रुड़की आइआइटी, जीएसआइ के विशेषज्ञों द्वारा अध्ययन किया गया। लोनिवि की ओर से करीब 41 करोड़ की डीपीआर तैयार कर शासन को भेजी गई तो शासन द्वारा औचित्य पूछा गया। साथ ही ट्रीटमेंट वाले हिस्से की ड्रिलिंग कराई। जिसकी रिपोर्ट हाल ही में आइआइटी रुड़की व जीएसआइ को भेजी गई है। अपर सहायक अभियंता महेंद्र पाल कंबोज के अनुसार इस क्षेत्र में 56 मीटर गहराई तक हॉर्ड रॉक नहीं मिली। जबकि तमाम क्रेक्स मिले। डीएम सविन बंसल ने बताया कि थर्ड पार्टी से रिपोर्ट की जांच खुद प्रशासन कराने को तैयार है। शासन से जल्द बजट आवंटन के पत्र भेजा जा चुका है।
आपदा के मुहाने पर खड़ा है नैनीताल
बात सुनने में जरा खौफ पैदा करेगी, लेकिन है बिल्कुल सच। देश के सबसे खूबसूरत पर्यटन स्थलों में शुमार नैनीताल आपदा के मुहाने पर खड़ा है। हर दिन इसके कुछ न कुछ ऐसे संकेत मिल रहे हैं जो बेहद डरावने हैं। कुछ दिनों पहले जहां नैनीताल की लोवर माल रोड का बड़ा हिस्सा नैनी झील में धंस गया था वहीं बलियानाला की पहाड़ियों का दरकना निरंतर जारी है। दिनों दिन बढ़ता शहर का बोझ और अंधाधुंध हुए निर्माण ने शहर के हालात को काफी जटिल बना दिया है। आइए जानते हैं कि ऐसी कौन सी स्थितियां बनी जो आज नैनीताल को अपदा के इस मुहाने पर लाकर खड़ी कर दी हैं।
अंधाधुंध हुए शहर में अवैध निर्माण
वर्तमान में नैनीताल की बसासत इतनी सघन हो चुकी है कि अब निर्माण की गुंजाइश ही नहीं है। इसके बावजूद बचे खुचे स्थानों पर भी उपर तक पहुंच रखने वाले लोगों ने निर्माण कार्य जारी रखा। मानकों को ताक पर रखकर उन्हें इसकी स्वीकृति भी मिलती रही। लेकिन जब हद हो गई तो उत्तराखंड हाईकोर्ट ने मामले का खुद संज्ञान लेते हुए सरोवर नगरी में निर्माण पर पूरी तरह से प्रतिबंध ला दिया।
बाहर के वाहनों को प्रवेश की अनुमति
आम दिनों को छोड़ दिया जाए तो पर्यटन सीजन में भी बाहर से आने वाले वाहनों पर कोई प्रतिबंध नहीं। नतीजा ऐसे दिनों में पार्किंग पूरी तरह से फुल हो जाती है। वाहनों की भीड़ इस कदर बढ़ जाती है कि काठोदाम से नैनीताल तक वाहनों की लंबी कतार लग जाती है। ऐसे में लोकल के लोगों को अपने घर और ऑफिसों में पहुंचने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
इलेक्ट्रॉनिक वाहनों का संचालन नहीं
बार बार मांग उठने और प्रस्ताव बनने के बावजूद नैनीताल के लिए अभी तक इलेक्ट्रॉनिक वाहन अभी तक नहीं चल सके। इसका नुकसान होता है कि लोग व्यक्तिगत वाहन लेकर पहुंच जाते हैं। इससे जहां सरोवर नगरी में प्रदूषण का ग्राफ बढ़ रहा है वहीं अनावश्यक का दबाव भी आपदा के लिए खतरनाक साबित हो रहा है।
पर्यटकों के आगमन पर कोर्इ प्रतिबंध नहीं
नैनीताल को नैसर्गिक सौंदर्य इस कदर को लोगों को भाता है किे हर कोई यहां खिंचा चला है। इससे दिन ब दिन सरोवर नगरी पर दबाव बढ़ता जा रहा है। पर्यटकों के आमद को लेकर कोई निति नहीं बनी है। इसका खामियाजा सरोवर नगरी को भुगतना पड़ रहा है।
वनों का अंधाधुंध कटान
वनों का अंधाधुंध कटान भी सरोवर नगरी के लिए घातक साबत हुआ है। पेड़ों का कटना पहाड़ों के दरकने की बड़ी वजह मानी जाती है। लेकिन शुरुआती दिनों में इस पर कोई अंकुश न लगने के कारण सरोवर नगरी को काफी नुकसान पहुंचा है।
यह भी पढ़ें : जलवायु परिवर्तन से मौसम चक्र प्रभावित, गर्मी हो रही लंबी, सिकुड़ रहा बरसात व सर्दी का दायरा
यह भी पढ़ें : हिमालय के वीरान गांवों में खुला रोजगार का द्वार, होम स्टे योजना से पर्यटकों की बढ़ी आमद