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ब्रिटिशकाल में झंडीधार चोटी पर जलती बत्ती गर्वनर के नैनीताल में मौजूदगी का देती थी संकेत

नैनीताल की गगनचुंबी चोटियों में एक ऐसी भी है जो कभी सीधा गर्वनर से ताल्लुक रखती थी। ब्रिटिशकाल में इस चोटी में जलती बत्ती गर्वनर का नैनीताल में मौजूदगी का संकेत दिया करती थी।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Fri, 17 Jan 2020 04:28 PM (IST)Updated: Sat, 18 Jan 2020 01:06 PM (IST)
ब्रिटिशकाल में झंडीधार चोटी पर जलती बत्ती गर्वनर के नैनीताल में मौजूदगी का देती थी संकेत
ब्रिटिशकाल में झंडीधार चोटी पर जलती बत्ती गर्वनर के नैनीताल में मौजूदगी का देती थी संकेत

नैनीताल, रमेश चंद्रा : सरोवर नगरी नैनीताल की गगनचुंबी चोटियों में एक ऐसी भी है, जो कभी सीधा गर्वनर से ताल्लुक रखती थी। ब्रिटिशकाल में इस चोटी में जलती बत्ती गर्वनर का नैनीताल में मौजूदगी का संकेत दिया करती थी। करीब तीन सौ फिट के दायरे में फैली  यह चोटी प्राकृतिक सुंदरता का अदभुत संगम है, जो एक ओर तराई भाबर के दर्शन कराती है तो दूसरी ओर पर्वतीय सुंदरता को विहंगम नजारा पेश करती है।

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राजभवन क्षेत्र में स्थित है झंडीधार चोटी

जी हां इस चोटी का नाम है झंडी धार। यह चोटी राजभवन क्षेत्र में स्थित है। इस चोटी का नाम झंडी धार पडऩे के पीछे एक बड़ा कारण है। समुद्र की सतह से करीब 22 सौ मीटर की उंचाई पर स्थित इस चोटी में ध्वज फहराया जाता है। जिसे लेकर इस चोटी का नाम झंडीधार रख दिया गया। यह  परंपरा ब्रिटिशकाल से चली आ रही है, जो बिगुल बजाने के साथ ध्वज फहराने की परंपरा आज तक चली रही है।

बरेली में बैठे अंग्रेज अफसर दूरबीन से देखते थे

ब्रिटिशकाल में जब गर्वनर राजभवन में मौजूद होते थे तो ध्वज के साथ एक बत्ती ध्वज जलती थी और बरेली में बैठे अंग्रेज अफसर दूरबीन से जलती बत्ती देखकर पता लगा लेते थे कि अभी लाट साब नैनीताल में हैं। इस चोटी पर एक समर हाउस बनाया गया है। समर हाउस की छांव में बैठकर अंग्रेज गर्वनर प्रकृति का आनंद लिया करते थे। समर हाउस आज भी मौजूद है। झंडीधार की चोटी से लगी दो और चोटियां हैं। जिनमें एक चोटी पर समर हाउस बना है तो दूसरी पर बैठने के लिए आरामदायक सीमेंट की बैंच लगी हैं। इन चोटियों से सुंदरता का विहंगम दृश्य नजर आते हैं।

नयनापीक, स्नोव्यू व टिफिनटॉप  अंग्रेजों ने संवारा

नैनीताल में वैसे तो कई चोटियां हैं, मगर तीन चोटियां क्रमश: नयनापीक, स्नोव्यू व टिफिनटॉप  को अंग्रेज हुकूमत ने सजाने-संवारने में कोई कसर नही छोड़ी, लेकिन इन सब में हटकर झंडी धार की चोटी अपने आप में खास है। राजभवन के पूर्वी दिशा में मौजूद इस चोटी के ओर देवदार, सुरई व बांज आदि प्रजातियों का घना जंगल है। जंगलों के बीच से होकर जाती  पगडंडियां जंगल की सुंदरता में चार चांद लगाती हैं। यह पंगडंडियां राजभवन के गोल्फ कोर्स पहुंचती हैं। जिनसे होकर वन्य जीवों को बखूबी देखा जा सकता है। हीरन, घुरल व काकड़, सांप, जंगली मुर्गी व तेंंदुआ आदि वन्य जीवों आसानी से दीदार होते हैं। वर्ष 1900 में राजभवन बनकर तैयार हुआ और उसी दौरान झंडी धार की चोटी को संवारने का कार्य शुरू हो गया। इस चोटी पर एक स्विमिंग पूल बनाया गया है तो ठीक उसके नीचे एक फिश पौंड बनाया गया है। फिश पौंड में कई तरह की रंग बिरंगी मछलियां देखी जा सकती हैं।

राजभवन का अभिन्न अंग है झंडी धार की चोटी

झंडी धार राजभवन का वीआईपी क्षेत्र में होने के कारण आम लोगों की पहुंच से दूर है। जिसके चलते स्थानीय लोग भी इस जगह के बारे शायद ही जानते हों। सुरक्षा कारणों से पर्यटक भी इस चोटी तक नही पहुंच पाते हैं। जिसके चलते यह चोटी आज भी वैसी ही सुरक्षित व खुबसूरत है, जैसी ब्रीटिशकाल में हुआ करती थी। इस चोटी को लेकर यह कहने में अतिश्योक्ति नही होगी कि सरोवर नगरी का यह स्थान धरोहर के रूप में आज भी वैसा ही है, जैसा दशकों पहले हुआ करता था।

इस चोटी का कोई सानी नहीं

राजभवन के पूर्व इंचार्ज व अधिशासी अभियंता डीएस बसनाल कहते हैं कि इस जगह की प्राकृतिके सुंदरता का कोई सानी नही। राज्यपाल के अलावा देश के उच्च अधिकारी यहां की सुंदरता को देख अभिभूत हुए बिना नही रहते।  

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