मैदान से पहाड़ तक खौफ, शिकारी बुलाने से गुरेज
जासं हल्द्वानी मैदान से लेकर पहाड़ तक गुलदार किसी को जख्मी कर रहा है तो किसी की जान जा रही है। इसके बावजूद वन विभाग के अफसर गंभीरता दिखाने को तैयार नहीं।
जासं, हल्द्वानी: मैदान से लेकर पहाड़ तक गुलदार किसी को जख्मी कर रहा है तो किसी की जान जा रही है। इसके बावजूद वन विभाग के अफसर गंभीरता दिखाने को तैयार नहीं। नामी शिकारियों को बुलाने को लेकर अब तक कोई फैसला नहीं लिया गया है। विभाग की काहिली यह है कि फतेहपुर के नरभक्षी को मारने के लिए उसके पास शिकारी तक नहीं और जिस दुर्गम ब्लाक ओखलकांडा में एक सप्ताह के भीतर तीन लोगों की जान चली गई, वहां सिर्फ एक शिकारी है। पिथौरागढ़ में मेरठ का शिकारी भेजा गया है।
लाकडाउन के दौरान गुलदार और बाघ सड़क पर घूमते नजर आए। लोगों के घरों से बाहर न निकलने की वजह से कोई हादसा नहीं हुआ, मगर अनलाक सीजन शुरू होने के बाद वन्यजीवों का आतंक शुरू हो गया है। जबकि वन विभाग ग्रामीणों की सुरक्षा से पहले ही सरेंडर कर चुका है। सवाल यह भी है कि इंसान की जान जाने के बाद भी ग्रामीणों का आक्रोश झेलने और सुरक्षा की जिम्मेदारी रेंज स्तर पर क्यों टिक जाती है। बड़े अफसर मौके पर आने तक को राजी नहीं हो रहे। ऐसे में मानव-वन्यजीव संघर्ष के साथ महकमे के प्रति लोगों की नाराजगी भी बढ़ रही है। लखपत और जाय की जरूरत
प्रदेश के बड़े और सबसे ज्यादा अनुभवी शिकारी माने जाने वाले लखपत सिंह रावत और जाय हुकिल से वन विभाग ने अब तक संपर्क नहीं साधा। जबकि आदमखोर को ढेर करने के मामले में दोनों रिकार्ड बना चुके हैं। स्थिति बिगड़ने के बावजूद ओखलकांडा को छोड़ अन्य जगहों पर वन विभाग नए शिकारियों को चांस दे रहा है। गुलदार के आतंक की वजह से लोग घरों से बाहर निकलने तक में डर रहे हैं। तीन लोगों को मारने के बाद भी वन विभाग लापरवाही बरत रहा है। शिकारियों की संख्या बढ़ा आदमखोर को ढेर नहीं किया गया तो आंदोलन किया जाएगा।
पंकज सिंह बोरा, बीडीसी मेंबर सुनकोट (ओखलकांडा) फतेहपुर में गुलदार दोबारा ट्रेस नहीं हो सका। कुछ दिनों से कोई घटना भी यहां नहीं हुई। अगर वो वन विभाग के कैमरों में कैद होता है तो तुरंत शिकारी को बुलाया जाएगा।
चंद्रशेखर जोशी, डीएफओ रामनगर डिवीजन