भूमि की बंदोबस्ती के इंतजार में बीते 63 वर्ष, जनप्रतिनिधियों को चुनाव में ही याद आता है मुद्दा
बरेली रोड भाबरी क्षेत्र में करीब 63 वर्षो से बंदोबस्ती ना होने से कई प्रकार की समस्याएं सामने आ रही हैं। भूमि के मकडज़ाल में भू माफिया अपने जड़ जमाने लगा है।
लालकुआं, जेएनएन : सन् 1956 से लेकर आज तक कई सरकारें बदल गईं। कई नियम और कानून में भी बदलाव किया गया। लेकिन जनपद के बरेली रोड भाबरी क्षेत्र में करीब 63 वर्षो से बंदोबस्ती ना होने से कई प्रकार की समस्याएं सामने आ रही हैं। भूमि के मकडज़ाल में भू माफिया अपने जड़ जमाने लगा है। वहीं कई मामलों में भूमि के असली मालिक को भी अपनी भूमि गवानी पड़ रही है।
लोकसभा चुनाव को लेकर भले ही प्रमुख राजनैतिक दलों ने प्रत्याशी घोषित नहीं किया है। लेकिन मतदाताओं को रिझाने के लिए राजनैतिक आकाओं ने की बंद कमरों में मुद्दों की तलाश शुरू कर दी है। किस मुद्दे या समस्या से मतदाता जाल में फंसेगा इसपर माथापच्ची की जा रही है। लेकिन कुछ मुद्दे ऐसे है जो वर्षो से वोट बटोरने का कार्य कर रहे है। इनमें एक मुद्दा है भाबरी क्षेत्र में बंदोबस्ती कराने का। जो पिछले 63 वर्षो से बाबरी क्षेत्र में वोट बटोरने के लिए रामबाण साबित हो रहा है। दरअसल राज्य में आजादी के बाद सन् 1956 में बंदोबस्ती हुई थी। उस समय हुई भूमि की बंदोबस्ती में हुई गलती व बाद में परिवारों में बटवारों के कारण भूमि के खेत व खसरा नंबरों में गडग़ड़ी हो गई। जिसकारण कई भू स्वामी ऐसे है जो बंदोबस्ती के समय से ही भूमि में काबिज है या फिर उस समय हुई बंदोबस्ती से काबिज लोगों से जमीन खरीदकर दशकों से उस भूमि में रह रहे है।
लेकिन 62 वर्षो के बाद भी बंदोबस्ती ना होने के कारण कई भूमि ऐसी है जो राजस्व अभिलेखों में किसी और की है तो उसमें काबिज कोई और व्यक्ति है। जमीन महंगी हो गई है तो लालच भी बढ़ गया है। दंबंग किस्म के भू माफिया ऐसे जमीन को खोजने लगे है। जिसके बाद भूमाफिया जिसके नाम पर खेत व खसरा नंबर है उसको कुछ पैसे देकर दूसरे की जमीन की रजिस्ट्री अपने नाम कराकर अधिकारियों से साठ गांठ कर भूमि का दाखिल खारिज भी करा देते है। जिसके बाद वह दबंगई व कानून की मदद लेकर भूमि पर कब्जा कर लेते है। और जो दशकों से भूमि में कब्जेदार है। उसे अपनी भूमि से ही हाथ धोना पड़ता है। ग्रामीणों का कहना है कि हर बार जनप्रतिनिधि बंदोबस्ती कराने का वादा कर वोट बटोर लेते है लेकिन उसके बाद कोई सुध नही लेता है।
जनप्रतिनिधियों की लापरवाही से भूमाफिया की चांदी
लालकुआं तहसील के अंतर्गत आने वाले राजस्व गांवों में कई ऐसे मामले में जिसमें भू माफिया द्वारा असली मालिक को बताए बिना उसकी जमीन को अपने नाम कराकर दाखिल खारिज करा लिया गया। जिसके बाद कोर्ट व दंबगई के माध्यम से जमीन पर कब्जा जमा लिया। कई मामलों में असली मालिक को ही अपनी पुस्तैनी जमीन को बचाने के लिए मोटी रकम चुकानी पड़ती है।
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