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ललित मोहन रयाल की 'खड़कमाफी' में स्मृतियों के विविध प्रसंग

लेखक ललित मोहन रयाल की बचपन की स्मृतियों पर आधारित किताब खड़कमाफी बाजार में आ चुकी है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Mon, 26 Feb 2018 07:11 PM (IST)Updated: Mon, 05 Mar 2018 03:25 PM (IST)
ललित मोहन रयाल की 'खड़कमाफी' में स्मृतियों के विविध प्रसंग
ललित मोहन रयाल की 'खड़कमाफी' में स्मृतियों के विविध प्रसंग

नैनीताल, [जेएनएन]: राज्य में पीसीएस के पहले बैच के टॉपर ललित मोहन रयाल ने बचपन की स्मृतियों पर आधारित किताब खड़कमाफी लिखी है जो बाजार में आ गई है। लेखक ने इस किताब में अपनी स्मृतियों से तीस विविध प्रसंगों को चुनकर उनका आत्मीय चित्रण पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है। शिवालिक हिमालय के संधिस्थल पर बसे अपने अंचल के उदारीकरण से पूर्व के दौर के समाज को, उसकी पूरी आशा आकांक्षा को सामने लाने की कोशिश की गई है। इन स्मृतियों में पशु पक्षी, नदी पहाड़ भी पूरी जीवंतता के साथ मौजूद है। 

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दरअसल लेखक ने इस कृति में स्मृतियां नहीं बल्कि पूरे परिवेश एवं भोगे गए यथार्थ को समेटा है। कहीं लेखन निबंध के रूप में तो कहीं घटना विशेष को खास शैली में प्रस्तुत किया है। कुमाऊं मंडल के क्षेत्रीय खाद्य अधिकारी पद पर कार्यरत रयाल ने चरित्र निर्माता, कुंभ व कुम्हार एक, कुंभ व कुम्हार दो व तीन प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा प्रसंगों पर आधारित हैं। इनमें संस्मरणों के माध्यम से अपनपे अंचन के विद्यार्थी जीवन के संघर्ष व कठिनाईयों को न केवल सामने लाने में सफल रहे हैं बल्कि शैक्षिक विसंगतियों को भी रूबरू करा देता है। 

शहरी पाठक के लिए यह कौतुकपूर्ण हो सकता है मगर भूमि से जुड़े पाठक के अंदर हास्य का बोध कराता है। हम मिडिल कक्षाओं में कान्वेंट स्कूलों के उच्चारण की दृष्टि से सेंट टाट विद्यालय के विद्यार्थी थे। देह का कॉपीराइट भी सुपुर्दगी में दे दिया जाता था, जैसी टिप्पणी शिक्षा व्यवस्था के यथार्थ स्थिति पर सारगर्भित वक्तव्य है। 

उच्च शिक्षा निबंध में लेखक अंचल के उच्च शिक्षा में पढऩे वाले विद्यार्थियों का खांचा खींचते हैं। जिसमें खेतीबाड़ी के साथ अतिरिक्त समय में शिक्षा ग्रहण कर लेते थे। परीक्षाएं व फसल कटाई परस्पर क्लैश किया करते थे। दोनों इवेंट्स में बेहतर परफामेंस का दबाव रहता था। इसी में परीक्षा प्रणाली पर टिप्पणी करते हुए लिखा है कि 15 के बजाय गलती से 51 अंक दे दिए जाते थे और लंबे पत्राचार के बाद त्रुटि सुधार की सूचना भेज दी जाती। ब्रह्म मुहुर्त नामक रचना में छात्रावास जीवन के अनुभवों को साझा किया है। मूंछ मर्दन संस्मरण में लेखक पाठक को गुदगुदाने को मजबूर कर देता है। 

गोपालन, भंग प्रसंग, समय सारिणी, कालाय: तस्मे नम आदि कहानियां भी यर्थाथ पर आधारित हैं। लेखक की यह पहली कृति है, जिसमें लेखक ने अनुभव संस्सार और लोक जीवन की गहरी पकड़ का प्रमाण पाठक को दिया है। 

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