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Kumaun University ने तैयार किया जनजातियों के इतिहास पर सिलेबस, लोक संस्कृति, खानपान, रीति-रिवाज बनेंगे हिस्सा

Kumaun University कुमाऊं विवि की ओर से हाल में नैनीताल में राज्य के विश्वविद्यालयों में पीजी स्तर के विषयों व व्यावसायिक कोर्स के विषयों का पाठ्यक्रम तैयार करने को कार्यशाला आयोजित की गई थी। करीब 70 से अधिक विषयों के पाठ्यक्रम तैयार हो चुके हैं।

By kishore joshiEdited By: Nirmala BohraPublished: Sun, 19 Mar 2023 03:09 PM (IST)Updated: Sun, 19 Mar 2023 03:09 PM (IST)
Kumaun University ने तैयार किया जनजातियों के इतिहास पर सिलेबस, लोक संस्कृति, खानपान, रीति-रिवाज बनेंगे हिस्सा
Kumaun University: करीब 70 से अधिक विषयों के पाठ्यक्रम तैयार हो चुके हैं।

किशोर जोशी, नैनीताल: Kumaun University: पिथौरागढ़ के धारचूला-मुनस्यारी की दारमा व व्यास घाटी की रं जनजाति के अलावा आदिवासी वनरावतों, देहरादून के जौनसार-बावर, उत्तरकाशी व ऊधमसिंह नगर जिले की थारू-बुक्सा जनजातियों का इतिहास समृद्ध है।

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इनकी लोक संस्कृति, खानपान, रहन-सहन, पारंपरिक उत्सव, धार्मिक-सामाजिक मान्यताएं, परंपराएं आदि स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम का हिस्सा बनेंगी। कुमाऊं विश्वविद्यालय इतिहास विभाग के बोर्ड आफ स्टडी की मुहर लगने के बाद नए शैक्षणिक सत्र से राज्य के स्नातकोत्तर के छात्र जनजाति के इतिहास का अध्ययन कर सकेंगे।

नई शिक्षा नीति के अनुसार तैयार पाठ्यक्रमों को अंतिम रूप दिया

कुमाऊं विवि की ओर से हाल में नैनीताल में राज्य के विश्वविद्यालयों में पीजी स्तर के विषयों व व्यावसायिक कोर्स के विषयों का पाठ्यक्रम तैयार करने को कार्यशाला आयोजित की गई थी। इसमें नई शिक्षा नीति के अनुसार तैयार पाठ्यक्रमों को अंतिम रूप दिया गया।

कुमाऊं विवि इतिहास विभाग के डा. रितेश साह ने बताया कि नई शिक्षा नीति के अनुसार विवि ने पीजी में इतिहास का पाठ्यक्रम तैयार किया है। जिसमें उत्तराखंड का इतिहास, गोरखा शासन तथा 1950 तक के आंदोलन शामिल हैं।

इन आंदोलनों में ब्रिटिशकाल के दौरान कुली बेगार आंदोलन, चंद शासन काल के अलावा उत्तराखंड की पत्रकारिता, ब्रिटिश राज में कमिश्नर रहे ट्रेल से हैनरी रैमजे तक, उस दौर की स्थापत्य कला तथा उत्तराखंड आंदोलन को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। डा. साह के अनुसार जल्द बोर्ड आफ स्टडी में पाठ्यक्रम को मंजूरी प्रदान कर दी जाएगी। नए शैक्षणिक सत्र से यह कोर्स का हिस्सा बन जाएगा।

वहीं पिथौरागढ़ जिले की धारचूला-मुनस्यारी की रं जनजाति से लेकर वनरावत, जौनसार-भाबर की जनजातियों, थारू-बुक्सा जनजाति की लोक संस्कृति, खानपान, रहन-सहन, रीति-रिवाज उन्हें खास बनाता है। इन जनजातियों ने आधुनिकता के दौर में अपनी धार्मिक मान्यताओं, रीति-रिवाज, रहन-सहन, खानपान को आज भी जिंदा रखा है। इन जनजातियों पर शोधपत्र भी प्रकाशित हो चुके हैं। यह सब भी पाठ्यक्रम का हिस्सा बनने के बाद नई पीढ़ी के लिए अध्ययन का विषय बनेगा।

पीजी में अनिवार्य हो गया शोध प्रोजेक्ट

नई शिक्षा नीति के अनुसार अब स्नातकोत्तर स्तर के छात्रों को हर सेमेस्टर में रिसर्च प्रोजेक्ट पर काम करना होगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शोध को बढ़ावा देने की संकल्पना की गई है, इसलिए रिसर्च प्रोजेक्ट को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना होगा। छात्र-छात्राओं को इसके चार क्रेडिट प्वाइंट मिलेंगे।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार प्रशिक्षण-कार्यशाला आयोजित कर चुके कुमाऊं विवि भौतिकी विभागाध्यक्ष प्रो. संजय पंत के अनुसार विश्वविद्यालयों की ओर से पीजी व व्यावसायिक कक्षाओं के कामन मिनिमम कोर्स तैयार किए जा चुके हैं।

करीब 70 से अधिक विषयों के पाठ्यक्रम तैयार हो चुके हैं। बोर्ड आफ स्टडी की मंजूरी के बाद कोर्स को पब्लिक डोमेन में डाला जाएगा, फिर उसे नए शैक्षणिक सत्र से लागू किया जाएगा। शासन ने तीन विषय वाले अंडर ग्रेजुएट के साथ ही एकल विषय में आनर्स, पीजी क्लासेज में एनईपी लागू की जा रही है। विवि हर विषय में 70 प्रतिशत कामन कोर्स जबकि 30 प्रतिशत स्थानीय हिसाब से कोर्स में शामिल कर सकता है।


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