कुमाऊं विश्वविद्यालय के शोध में सामने आई बात पहाड़ियाें का मलबा बिगाड़ रहा नैनी झील की सेहत
कुमाऊं विवि के शोध अध्ययन में खुलासा हुआ है कि पहाडिय़ों से औसतन हर साल एक सेंटीमीटर गाद नैनी झील में समा रही है।
किशोर जोशी, नैनीताल। सरोवरनगरी की पहाडिय़ों के कटाव समेत नालों से आ रहा मलबा नैनी झील की सेहत बिगाड़ रहा है। कुमाऊं विवि के शोध अध्ययन में खुलासा हुआ है कि पहाडिय़ों से औसतन हर साल एक सेंटीमीटर गाद नैनी झील में समा रही है। पिछले 140 साल से झील में करीब 130 सेमी मिट्टी जमा हो चुकी है। शोध के अनुसार नैनी झील में हर साल भीमताल झील से 30 गुना अधिक मलबा समा रहा है। शोध में इसके लिए कंक्रीट के रास्तों व सड़क के निर्माण पर सख्ती से रोक लगाने की सिफारिश की गई है।
दरअसल 2016 में झील का जलस्तर काफी गिर गया था। जिससे झील में टापू उभर आए थे। तब तीन मई 2016 को कुमाऊं विवि के भूगर्भ विज्ञानी प्रो. बहादुर सिंह कोटलिया द्वारा शोध अध्ययन के मकसद से तल्लीताल आर्मी होली-डे होम के समीप जेसीबी से खुदाई कराई। प्रो. कोटलिया ने नमूनों की जांच के बाद निकले निष्कर्ष को बेहद चौंकाने वाला बताया। शोध अध्ययन के निष्कर्ष बताते हुए कहा कि 50 हजार साल पूर्व बनी नैनी झील की तलहटी में 20 मीटर तक मिट्टी जमा हो चुकी है। दूसरी झीलों में एक हजार साल में 30 सेमी गाद भरती है, जबकि नैनी झील में एक साल में एक सेमी गाद भर रही है।
तल्लीताल तक था भूस्खलन का प्रभाव
प्रो. कोटलिया के अनुसार 1880 के आल्मा लॉज की पहाड़ी में हुए भूस्खलन का जबरदस्त प्रभाव तल्लीताल क्षेत्र में भी था। उन्होंने कहा कि झील का अस्तित्व बनाए रखने के लिए नैनीताल में कंक्रीट के रास्तों का निर्माण पूरी तरह बंद करना होगा। सीसी मार्ग की वजह से बारिश का पानी व्यर्थ बह रहा है।
सूखाताल में दस फिट मलबा जमा
प्रो. बहादुर सिंह कोटलिया के अनुसार सूखाताल में करीब दस फिट मलबा जमा हो चुका है। उन्होंने कहा कि सूखाताल में केएमवीएन की पार्किंग के दो मंजिले तक झील का कैंचमेंट है। पंप हाउस से लेकर करबला शरीफ तक झील का हिस्सा है। सूखाताल झील क्षेत्र के दायरे में करीब ढाई दर्जन निर्माण हैं। यहां बता दें कि लोनिवि, पालिका व प्राधिकरण के संयुक्त सर्वे में भी सूखाताल में डूब क्षेत्र में तीन दर्जन निर्माण होने की पुष्टिï हुई है।
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