मेहमान परिंदों से गुलजार हुआ कोसी बैराज
उच्च हिमालयी क्षेत्रों को पार करते हुए मेहमान परिंदे सुर्खाब फिर रामनगर के कोसी बैराज को गुलजार करने लगे हैं।
संवाद सहयोगी, रामनगर : उच्च हिमालयी क्षेत्रों को पार करते हुए मेहमान परिंदे सुर्खाब फिर रामनगर के कोसी बैराज को गुलजार करने लगे हैं। रोजाना कोसी बैराज में इन्हें जलक्रीड़ा करते देख लोग काफी आकर्षित होते हैं।
बता दें लद्दाख व तिब्बत की घाटियों में इन दिनों बर्फबारी शुरू होने की वजह से सुर्खाब हर साल भोजन की तलाश में हजारों किलोमीटर का सफर तय करते हुए रामनगर के कोसी बैराज में पहुंचने लगे हैं। अभी इनकी संख्या बहुत कम है लेकिन नवंबर माह के अंत तक इनकी संख्या में काफी इजाफा हो जाएगा। इस बार यह पिछले सालों की अपेक्षा यहां पहले पहुंचने लगे हैं। जिसका कारण जलवायु परिवर्तन और उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी होना माना जा रहा है। अमूमन यह परिंदे नवंबर के पहले सप्ताह तक यहां पहुंचते हैं और मार्च तक प्रवास करने के बाद वापस ऊच्च हिमालयी क्षेत्र को लौट जाते हैं।
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सुर्खाब के हैं कई नाम: सुर्खाब को कई नामों से पुकारा जाता है। चकवा, चकवी, कोक, नग, लोहित, चक्रवात, केसर आदि नामों से भी इन्हें जाना जाता है। पक्षी प्रेमी इन्हे ब्राह्मणी डक व रूडी शेल्डक नाम से भी पुकारते हैं। यह वही चकवा-चकवी जल पक्षी हैं जिनका कवि अपनी कविताओं में उल्लेख करते थे। रामचरित मानस में भी गोस्वामी तुलसीदास ने इनका वर्णन किया है।
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सुर्खाब का मुख्य भोजन: घास-फूस, जड़ काई, छोटे मेढक, कीड़े, मकोड़े आदि।
शिकार पर है प्रतिबंध: सुर्खाब के शिकार पे पूर्णत: प्रतिबंध है। वन्यजीव अधिनियम की धारा 1973 ( 2003) से इन्हें पूर्ण संरक्षण प्राप्त है।
खुले तालाब में रहना इनकी पसंद : यह जल मुर्गी है। सुर्खाब खुले जलाशय और नदियों में रहना पसंद करते हैं। ये जोड़ों में रहना पसंद करते हैं। इनकी आवाज कौवे जैसी कर्कश होती है।
इन स्थानों पर भी पहुंचती है सुर्खाब : रामनगर के कोसी बैराज, कार्बेट पार्क की रामगंगा नदी, तुमड़िया जलाशय, नानकमत्ता डैम के अलावा अन्य छोटे-छोटे जलाशयों में इन्हें देखा जा सकता है।
सुरक्षा के लिए हों पर्याप्त इंतजाम: पक्षी प्रेमी एजी अंसारी, दीप रजवार, संजय छिम्वाल, बची सिंह बिष्ट, राजेश भट्ट, विजय सिंह आदि ने इनकी सुरक्षा के इंतजाम करने की पैरवी की है।