आखिर आज तक कोई पर्वतारोही कैलास पर्वत क्यों नहीं फतह कर सका, बता रहे हैं माउंटेनियर रिसर्चर
कैलास देवाधिदेव शिव का वास। दुनिया की सबसे रहस्यमयी अद्भुत अलौकिक व दिव्य पर्वत श्रृंखला। मगर एक रहस्य आज भी बरकरार है। भोले की इस तपोस्थली तक शिवभक्तों के पहुंचने की कथाएं तो मिलती हैं मगर आज तक कोई भी पर्वतारोही इस पर चढ़ नहीं सका है।
अल्मोड़ा, दीप सिंह बोरा : कैलास, देवाधिदेव शिव का वास। दुनिया की सबसे रहस्यमयी, अद्भुत, अलौकिक व दिव्य पर्वत श्रृंखला। मगर एक रहस्य आज भी बरकरार है। भोले की इस तपोस्थली तक शिवभक्तों के पहुंचने की कथाएं तो मिलती हैं मगर आज तक कोई भी पर्वतारोही इस पर चढ़ नहीं सका है। ब्रितानी दौर से अब तक तीन विदेशी पर्वतारोहियों ने कैलास चढ़ने की कोशिश की पर नाकाम रहे। एक स्पेनिश पर्वतारोही को चीनी सरकार ने न्यौता दिया पर उसने धार्मिक आस्था का हवाला दे मना कर दिया। अध्ययनकर्ताओं की मानें तो समूचा कैलास ब्रह्मांडीय शक्ति ऊर्जा (कॉस्मिक एनर्जी) का भंडार है। वहीं जबर्दस्त चुंबकीय क्षेत्र वाले इस पर्वत की जटिल तिकोनी भौगोलिक संरचना में चढ़ाई का मार्ग तलाशना संभव नहीं है।
बेशक कैलास पर्वत की ऊंचाई माउंट एवरेस्ट से 2210 मीटर कम है लेकिन विचित्र भौगोलिक संरचना वाली शिव की तपोस्थली की ओर देश दुनिया का कोई भी माहिर पर्वतारोही चढ़ाई तो दूर कदम रखने की चेष्टा भी नहीं करता। राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण शोध संस्थान कोसी कटारमल (अल्मोड़ा) के शोधकर्ता रह चुके पर्वतारोही डॉ. महेंद्र सिंह मिराल कैलास पर्वत पर अपने अध्ययन का हवाला दे कहते हैं कि धार्मिक आस्था बड़ा कारण तो है ही।
कैलास तकनीकी व भौगोलिक लिहाज से बहुत जटिल पर्वत श्रंखला है। जबर्दस्त चुंबकीय क्षेत्र को खुद में समेटे इस अलौकिक पर्वत की सतह से कुछ ही ऊंचाई तक चढ़ाने पर कुशलतम पर्वतारोही भी थकान से टूट जाता है। त्रिकोण सी आकृति वाले इस पर्वत पर चढ़ने के मार्ग या तो मिलते नहीं। बर्फीले रेगिस्तान वाली खालिस खड़ी पर्वतमाला पर रास्ते तलाश कर भी लिए तो बेहद तीखे व जटिल। उस पर रेडियो एक्टिव क्षेत्र के साथ कॉस्मिक ऊर्जा इस आध्यात्मिक पर्वत पर आगे बढ़ने की इजाजत नहीं देती।
कब, किस पर्वतारोही ने की नाकाम कोशिश
- 1926 : ब्रितानी पर्वतारोही रटलेस व कर्नल आरसी विलसन ने कैलास पर चढ़ने का प्रयास किया पर असफल
- 1936 : ऑस्ट्रेलियन पर्वतारोही भी हारा
- 2007 : रूसी पर्वतारोही सरगे भी पहुंचा पर नहीं चढ़ सका
स्पेनिश पर्वतारोही ने धार्मिक आस्था पर रोके कदम
चार दशक पूर्व 1980 चीनी सरकार ने विश्व प्रसिद्ध स्पेनिश पर्वतारोही रिनोल्ड मिसनर को कैलास पर्वत पर चढ़ने का प्रस्ताव दिया था। मगर रिनोल्ड ने धार्मिक आस्था का हवाला दे साफ इनकार कर दिया।
बौद्ध लामा योग के जरिए पहुंचा
अध्ययनकर्ता जॉ. मिराल कहते हैं कि तिब्बती धर्मग्रंथ में यौगिक शक्ति के जरिये बौद्ध लामा मिलरेपा के 11वीं सदी में कैलास पर चढ़ने का जिक्र किया गया है। योगकला में माहिर लामा मिलरेपा सुबह कैलास में गए, उसी दिन लौट आए। चूंकि हिंदुओं के साथ ही जैन, बौद्ध व बोन (तिब्बती) कैलास व शिव के प्रति अगाध आस्था रखते हैं। लिहाजा मान्यता है कि लामा मिलरेपा योग शक्ति व भक्ति की धुन में रहस्यमयी कैलास पर चढ़ने में सफल रहा होगा।
आर्यावर्त का आखिरी पर्वत है कैलास
आर्यावर्त का पवित्र व आखिरी पर्वत कैलास पृथ्वी का मध्य केंद्र माना जाता है। कहते हैं आर्यों का पृथ्वी पर पदार्पण शिव के इसी वासस्थल से हुआ। सिंधु, सतलुज, ब्रह्मपुत्र व करनाली नदियों के इसी उद्गम पर्वत में वेद व रिचाएं रची गईं। वैदिककाल से बाद के पुराकाल तक यह पूरी पर्वतमाला मानसखंड यानी कुमाऊं का हिस्सा रही।
शरीर के बाल व नाखून तेजी से बढ़ने लगते हैं
पर्वतारोही व शोधकर्ता डॉ. महेंद्र सिंह मिराल ने बताया कि धार्मिक आस्था के केंद्र कैलास पर्वत पर चढ़ना असंभव है। वहां शरीर के बाल व नाखून तेजी से बढ़ने लगते हैं। इसके अलावा कैलास पर्वत बहुत ज्यादा रेडियोएक्टिव भी है। माना जाता है कि कैलास पर थोड़ा सा ऊपर चढ़ते ही व्यक्ति दिशाहीन हो जाता है। तिकोने आकार वाला कैलास पिरामिड सी आकृति लिए है जो बर्फ से ढका रहता है। जिन पर्वतारोहियों ने चढ़ने का प्रयास किया उन्हें सिर में भयंकर दर्द शुरू हो गया। उन्हें किसी तरह उतरना पड़ा। कैलास की ओर कोई रास्ता नहीं है। चारों ओर खड़ी चट्टानों व हिमखंड इसे विचित्र व जटिल बना देते हैं। हर वर्ष लाखों श्रद्धालु कैलास पर्वत के चारों ओर परक्रमा कर शिव के दर्शन करते हैं। लेकिन चढ़ाई क्यों नहीं कर पाते वाकई रहस्य है।