Women's Day 2021 : नैनीताल की जानकी सूर्या बनी पीड़ितों की आवाज, खेती करने के साथ दस वर्ष तक रहीं प्राचार्य
सामान्य परिवार में जन्म लेने के बाद भी उच्च शिक्षा के लिए लोगों के ताने सुनने पड़े। गांव के लोग कहते थे कि बेटी को क्यों पढ़ा रहे हो दूसरे के घर जाना है इसे चूल्हा-चौका सिखाओ घर के काम बताओ पढ़ाकर क्या मिलेगा।
हल्द्वानी, मनीस पांडेय : सामान्य परिवार में जन्म लेने के बाद भी उच्च शिक्षा के लिए लोगों के ताने सुनने पड़े। गांव के लोग कहते थे कि बेटी को क्यों पढ़ा रहे हो, दूसरे के घर जाना है इसे, चूल्हा-चौका सिखाओ, घर के काम बताओ, पढ़ाकर क्या मिलेगा। इस तरह के सवालों के बाद भी जानकी सूर्या के हौससले मजबूत रहे। पिता जानकी को डाक्टर बनाना चाह रहे थे, लेकिन बेटी की जिद थी कि हजारों बेटियों की पढ़ाई के लिए उन्हें शिक्षक बनना है।
11 जुलाई 1960 में नैनीताल जिले के देवीधुरा गांव में जन्मी जानकी ने पढ़ाई से कभी समझौता नहीं किया। आठ भाई-बहनों में सातवें क्रम की जानकी के हौंसले पहाड़ की तरह मजबूत होते गए। लोगों की नकारात्मक टिप्पणियों ने शिक्षा के प्रति एक जिद पैदा कर दी। जिसका असर हुआ कि गांव में पिता के जरिये संचालित स्कूल में हाईस्कूल व इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी कर ली। उच्च शिक्षा के लिए नैनीताल जाना पड़ा।
कॉलेज घर से दूर होने के कारण व्यक्तिगत फार्म भरकर स्नातक की शिक्षा हासिल की। एमए अर्थशास्त्र, एमए राजनीति शास्त्र, बीएड, एमएड के बाद एलएलबी की डिग्री भी हासिल कर ली। ग्रेजुएशन के दौरान ही शादी हुई तो मायके और ससुराल में एक मात्र उच्चशिक्षित सदस्य रही। दोनों पक्षों से शिक्षा के प्रति पूरा सहयोग मिला।
पहले किसान फिर बनी शिक्षक
शिक्षा के प्रति समर्पित जानकी ने वन विभाग की जमीन लीज पर लेकर कुछ समय तक खेती का कार्य किया। एक किसान की जिंदगी जीने के बाद अध्यापन का कार्य किया। जिसमें महर्षि विद्या मंदिर में करीब 10 वर्ष तक प्राचार्य के पद पर रहीं। राज्य आंदोलन में भागीदारी की।
अधिवक्ता परिषद की बनी प्रदेश अध्यक्ष
नैनीताल में उच्च न्यायालय बनने के बाद वकालत करना आरंभ किया। जिसमें निर्धन लोगों व खासतौर से महिलाओं के मामले में निश्शुल्क विधिक सहायता प्रदान करने का कार्य कर रही हैं। जिसमें वह पीडि़तों की आवाज के रूप में खुद को स्थापित करने का प्रयास कर रही हैं। वर्तमान में वह अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद की प्रदेश अध्यक्ष के रूप में एक मात्र महिला पदाधिकारी हैं। जानकी कहती हैं कि उनके पास पीडि़तों की सेवा करने का अवसर है, जिसके लिए वह आजीवन प्रयासरत रहेंगी।
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