Move to Jagran APP

दिल, फेफड़े और बॉडी के इम्यून सिस्टम को मजबूत करती है कीड़ा जड़ी, जानें इसके फायदे

उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाई जाने वाली रहस्यमयी और शक्तिवर्धक जड़ी यारसा गंबू (कीड़ा जड़ी) को 26 वर्षों बाद भेषज का दर्जा मिल गया है। अब इसे वैधानिक तरीके से बेचा जा सकेगा।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sat, 20 Oct 2018 06:05 PM (IST)Updated: Sat, 20 Oct 2018 06:40 PM (IST)
दिल, फेफड़े और बॉडी के इम्यून सिस्टम को मजबूत करती है कीड़ा जड़ी, जानें इसके फायदे
दिल, फेफड़े और बॉडी के इम्यून सिस्टम को मजबूत करती है कीड़ा जड़ी, जानें इसके फायदे

पिथौरागढ़ (जेएनएन): उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाई जाने वाली रहस्यमयी और शक्तिवर्धक जड़ी यारसा गंबू (कीड़ा जड़ी) को 26 वर्षों बाद भेषज का दर्जा मिल गया है। देश-दुनिया में बहुतायत मांग वाली इस बूटी को भेषज संघ बेचने के अधिकारी हो चुके हैं। सरकार ने शासनादेश जारी कर दिए हैं। शासनादेश मिलते ही भेषज संघों सहित सीमांत के ग्रामीणों में खुशी की लहर है। इस मामले में सरकार की नीति स्पष्ट न होने के चलते इसकी बिक्री में खुले तौर पर नहीं हो पा रही थी।

loksabha election banner

विगत ढाई दशक से कीड़ा जड़ी का व्यापक दोहन हो रहा है। दोहन और विपणन के लिए नीति नहीं होने के कारण दोहनकर्ता असमंजस में थे। नेपाली ठेकेदारों के माध्यम से कीड़ा जड़ी को चीन तक पहुंचाई जाती है। चीन में यह काफी महंगा बिकता है। कीड़ा जड़ी को लेकर स्पष्ट नीति नहीं होने से यदि यह ग्रामीणों के पास से बरामद हो जाती थी तो उन्‍हें जेल तक जाना पड़ता था। लंबे से समय कीड़ा जड़ी के विपणन की मांग हो रही थी । इसे भेषज संघों के माध्यम से बेचने की मांग थी। जिससे काश्तकारों को कानूनी प्रक्रियाओं से मुक्ति मिले और कीड़ा जड़ी बाजार में उपलब्ध हो।

बेचने के लिए डीएम और एसपी का प्रमाण पत्र जरूरी

इस संबंध में बीते दिनों भेषज संघ ने वित्त मंत्री प्रकाश पंत के सम्मुख इस मांग को रखा था। इस मांग पर सरकार द्वारा कीड़ा जड़ी को भेषज संघों के माध्यम से बेचने का शासनादेश जारी हो गया है। आठ अक्टूबर वन एवं ग्राम्य विकास द्वारा जारी शासनादेश के लिए यारसा गंबू बेचने वाले के पास डीएम द्वारा जारी हैसियत प्रमाण पत्र और एसपी द्वारा प्रदत्त चरित्र प्रमाण पत्र होना चाहिए।

क्या है कीड़ा जड़ी

उच्च हिमालय में बहु औषधीय कवक कार्डिसेप्स-साईनेसिंस को स्थानीय भाषा में कीड़ा घास यानी यारसा गंबू नाम से जाना जाता है। कीड़ा जड़ी समुद्रतल से 3200 से 4800 मीटर  तक हिमालयी एवं उच्च हिमालयी क्षेत्रो में पाया जाता है। यह फफूद थीटारोडस प्रजाति के कीट का लारवा है जो पूर्ण परजीवी है। शीत ऋतु के प्रारंभ में यह लारवा डायपाज अवस्था में जमीन के अंदर प्रवेश करता है संक्रमण के कारण मृत हो जाता है। गर्मी शुरू होते ही फफूद की फूटिंग बॉडी लारवा के शीर्ष में बाहर आ जाती है। जिस कारण इसे स्थानीय लोग कीड़ा घास नाम से जानते हैं।

किन क्षेत्रों में पाया जाता है

पिथौरागढ़ के उच्च हिमालय में पोटिंग ग्लेशियर क्षेत्र, लास्पा, बुर्फू,रालम,नागनीधुरा, महोरपान, दर्ती ग्वार,  छिपलाकेदार, दारमा, व्यास  के अलावा चमोली और उत्तरकाशी के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है। चीन में इसका प्रयोग दो वर्षो से हो रहा है। चीन के बाद इसका प्रयोग नेपाल और भूटान में हुआ । विगत ढाई दशक के भारत में भी इसका दोहन हो रहा है।

जानिए कीड़ा जड़ी के फायदे, चल रहा है शोध

कीड़ा जड़ी के समुचित उपयोग के बारे में कुछ स्पष्ट नहीं हुआ है। इसके बारे में अभी प्रयोगशालाओं में शोध चल रहा है। अब तक के शोध के अनुसार यारसा गंबू में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने, शरीर में ऊर्जा का स्तर बढ़ाने, हृदय, किडनी और फेफड़ों की कार्यशक्ति बढ़ाने आदि की क्षमता है। 

ग्रामीण बेरोकटोक बेच सकेंगे

पीतांबर पंत, अध्यक्ष जिला भेषज संघ पिथौरागढ़ ने बताया कि अभी तक यारसा गंबू किसी भी श्रेणी में नहीं था। जबकि इसका कारोबार करोड़ों में होता था लेकिन सरकार को कोई राजस्व नहीं मिलता था। भेषज संघ के माध्यम से इसको बेचने की अनुमति से जहां सरकार को राजस्व मिलेगा वहीं सीमांत के ग्रामीण अब इसे बेरोकटाक भेषज संघों को बेच सकेंगे।

कीड़जड़ी का कहा जाता है हिमालयी वियाग्रा

यौन शक्ति वर्धक होने के कारण कीड़ा जड़ी को हिमालयी वियाग्रा भी कहा जाता है। इसकी खास बात ये है कि इसका कोई साइड इफेक्‍ट नहीं है। वैसे यह दवा भारत में प्रतिबंधित है। दरअसी यह ए‍क कीड़ा है जो समुद्र तल से 3800 मीटर ऊंचाई पर हिमालय की पहाड़ियों में पाया जाता है। भारत और तिब्‍बत में मिलने के साथ ही यह नेपाल में भी बहुतायत में पाया जाता है । यह कीड़ा भूरे रंग का होता है जिसकी लम्बाई करीब इंच होती है। यह कीड़ा यहां उगने वाले कुछ खास किस्म के पौधों पर ही पैदा होते हैं।इसका जीवन काल करीब  छह महीने का होता है। सर्दियों में इन पौधों से निकलने वाले रस के साथ ही यह पैदा होते हैं। मई-जून में यह कीड़े अपना जीवन चक्र पूरा कर लेते हैं और मर जाते हैं। मरने के बाद यह कीड़े पहाड़ियों में घास और पौधों के बीच बिखर जाते है।

यह भी पढे़ं : प्रतिबंधित कीड़ा जड़ी के साथ रसियन महिला गिरफ्तार

यह भी पढे़ं : लाखों की कीड़ा जड़ी के साथ दो तस्कर गिरफ्तार


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.