हल्द्वानी में डेेंगू का प्रकोप रोकने के लिए सड़क के गड्ढों में डाले 300 लीटर मिट्टी का तेल
तंत्र की लापरवाही का आलम कहें या फिर अनदेखी। शहर में आपदा जैसे हालात हैं। हर घर से तीसरा व्यक्ति डेंगू की चपेट में है।
हल्द्वानी, जेएनएन : तंत्र की लापरवाही का आलम कहें या फिर अनदेखी। शहर में आपदा जैसे हालात हैं। हर घर से तीसरा व्यक्ति डेंगू की चपेट में है, नियंत्रण के लिए शोरशराबा तो बहुत है, लेकिन हकीकत में प्रभावी कदम अभी तक नहीं उठाए गए। इसकी बानगी है शहर के गड्ढे और अस्पतालों में अधूरी व्यवस्थाएं। एक साल से नगर निगम शहर के सैकड़ों को गड्ढे को तो नहीं भर सका, लेकिन डेंगू से बचाव के नाम पर इसमें 300 लीटर मिट्टी तेल डालने का दावा कर रहा है। मेयर डॉ. जोगेंद्र रौतेला ने बताया कि इसके साथ ही हमने प्रिवेंशन पर जोर दिया है। 60 हजार बच्चों को जागरूक करने के लिए अभियान चलाया है।
डॉक्टर व स्टाफ नर्स नहीं
बीमारी बढऩे लगी थी। बेस अस्पताल में एक भी फिजीशियन नहीं था। जब आपदा जैसे हालात पैदा हुए। मीडिया में डेंगू की खबरें छपने लगीं तो फिर बेस अस्पताल में रामनगर, अल्मोड़ा, बागेश्वर से डॉक्टर बुलाए। अब भी वहंा पर पर्याप्त स्टाफ नहीं है। एसटीएच मे मेडिसिन विभाग में आठ असिस्टेंट प्रोफेसर की जगह केवल एक कार्यरत हैं। आठ सीनियर रेजिडेंट भी नहीं है। 140 स्टाफ नर्सों की कमी है। पैथोलॉजी लैब में 12 तकनीशियन की जगह पांच ही कार्यरत हैं।
मौत के आंकड़ों को छुपाना
स्वास्थ्य विभाग लगातार मौत के आंकड़ों को छुपाने में लगा है। डेंगू व वायरल फीवर से 11 मौतें हो गई। इसके अलावा भी लोग इधर-उधर भर्ती हुए। शुरुआत में स्वास्थ्य विभाग के पास न ही निजी अस्पतालों के आंकड़े थे और न ही मौत की कोई जानकारी। इसके बावजूद सयम रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए।
स्प्रे व फॉगिंग की अधूरी व्यवस्था
राज्य बनने के 18 साल बाद भी नैनीताल व ऊधमसिंह नगर के दो जिलों में एक ही जिला मलेरिया अधिकारी कार्यालय है। महज पांच लोगों का स्टाफ। इनके पास भी दो-तीन फॉगिंग व स्प्रे मशीन। ऐसे में जिले के आठ ब्लॉकों के करीब 14 लाख लोगों तक कैसे पहुंच हो पाती। इसका जवाब किसी के पास नहीं है। हालांकि अब करीब 10 मशीनें बढ़ा दी हैं। फिर भी आबादी के हिसाब से नाकाफी ही हैं।
पैथोलॉजी केंद्रों की मनमानी पर अंकुश नहीं
निजी पैथोलॉजी केंद्रों में खुलकर मनमानी चल रही है। इन पर अभी तक कोई अंकुश नहीं है। डेंगू कार्ड टेस्ट स्वास्थ्य विभाग नहीं मानता है। फिर भी निजी पैथोलॉजी केंद्रों में इसकी कीमत 500 रुपये दो हजार तक वसूली जा रही है। आखिर इतनी कीमत किस आधार पर इसका कोई जवाब नहीं है।
सरकारी कार्यालय खामोश, नहीं भरे गए शहर के गड्ढे
स्वास्थ्य विभाग की लचर कार्यप्रणाली उजागर होने के बावजूद किसी के प्रति कोई जिम्मेदारी तय नहीं हुई। इस आपदा के बीच भी विभागों में समन्वय नहीं नजर आया। जबकि, इसके लिए डीएम से लेकर मंडलायुक्त ने कई बैठकें भी की। यहां तक जिन गड्ढों में मच्छरों के लार्वा पनप रहे हैं। उन्हें भी नहीं भरा गया।