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1984 सिख दंगा : कत्लेआम का दृश्य जेहन में आते ही सिहर उठती हैं जसबीर

यह दास्तां है कि नैनीताल के मल्लीताल बड़ा बाजार निवासी जसबीर कौर की, जिनके जेहन में आज भी 84 के सिख दंगे आते हैं तो वह सिहर उठती हैं।

By Edited By: Published: Tue, 18 Dec 2018 06:03 AM (IST)Updated: Tue, 18 Dec 2018 08:36 PM (IST)
1984 सिख दंगा : कत्लेआम का दृश्य जेहन में आते ही सिहर उठती हैं जसबीर
1984 सिख दंगा : कत्लेआम का दृश्य जेहन में आते ही सिहर उठती हैं जसबीर

नैनीताल, जेएनएन : मैं 30 नवंबर 1984 को पति सरदार बीएस ओबरॉय के साथ शादी में शामिल होने दिल्ली जा रही थी। सुबह जैसे ही गाजियाबाद पहुंचे तो भीड़ ने बस घेर लिया और हमारे व दूसरे सिख परिवारों को मारने दौड़ पड़ी। एक सीबीआइ अफसर ने भीड़ से हम सभी को बचाया, जहां से हम सुबह दस बजे आइएसबीटी पहुंच गए, मगर वहां करीब एक दर्जन सिख परिवारों पर भीड़ ने ईट-पत्थरों से हमला बोल दिया। मेरी आंखों के सामने ही तीन युवकों की निर्मम हत्या कर दी गई। इसमें एक शादी के सिलसिले में ही दिल्ली आया था। भीड़ ने हमारे जेवर और नगदी सब लूट लिए थे।
यह दास्तां है कि नैनीताल के मल्लीताल बड़ा बाजार निवासी जसबीर कौर की, जिनके जेहन में आज भी 84 के सिख दंगे आते हैं तो वह सिहर उठती हैं। सोमवार को दिल्ली हाई कोर्ट से कांग्रेस के पूर्व सांसद सज्जन कुमार को उम्रकैद होने संबंधी आदेश होने के बाद जागरण ने उनसे मुलाकात की तो वह गंभीर हो गई। बताया कि सिख दंगों में अपनी आंखों के सामने कत्लेआम देख पति उम्र भर डिप्रेशन में रहे। 34 साल बाद इस मामले में सज्जन कुमार को उम्र कैद हुई है। इंसाफ तो नहीं मिला लेकिन न्याय की किरण दिखाई दी है।
कहा कि जब दंगे के आरोपितों को राजनीतिक संरक्षण मिलेगा, तो न्याय कहां से मिलेगा। कौर ने पूर्व सांसद को उम्र कैद के साथ फांसी देने की मांग की। साथ ही कहा कि कांग्रेस नेता जगदीश टायटलर हो या अन्य नेता, सबको सजा होनी चाहिए। दंगे के आरोपों का सामना कर रहे कांग्रेस नेता कमलनाथ की मध्य प्रदेश में ताजपोशी पर भी उन्होंने हैरानी जताई।

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जिस कमरे में छिपे थे, बाहर से लगा दी आग
जसबीर कौर बताती हैं कि आइएसबीटी में जब टैक्सी वालों ने उन्हें बचने के लिए पीछे कमरे में भेजा तो भीड़ ने कमरे में आग लगा दी, जिससे धुएं से पूरा कमरा भर गया। इसके बाद बमुश्किल उन्हें बाहर निकाला गया तो बस में बैठाकर यमुना नानकसर आश्रम भेज दिया गया। भीड़ आश्रम में हमला न करे, इसके लिए आश्रम के चारों ओर तारबाड़ में करंट प्रवाहित था। आश्रम में प्रवेश के लिए सिर्फ एक ही रास्ता था। आश्रम में तबियत बिगड़ने पर पति बाजार दवा लेने गए थे, जहां सड़कों पर लाशें बिछी थीं। आश्रम में आठ दिन तक सेना के पहरे में रहे तब बमुश्किल जान बची। घर आने के लिए बस के टिकट को पैसे नहीं थे तो एक अज्ञात सख्त ने दो सौ रुपये दिए, तब जाकर 13 दिन बाद घर लौटे, यहां भी घर पर प्रदर्शनकारियोंने तोड़फोड़ कर दी थी। उन्होंने कहा कि आज तक नुकसान का मुआवजा तो दूर रहा, किसी ने हालचाल तक नहीं लिया।

नैनीताल भी पहुंची थी दंगों की आंच
मल्लीताल में अब मेडिकल स्टोर चला रहीं जसबीर बताती हैं कि 84 के दंगों की आंच नैनीताल भी पहुंची थी। मल्लीताल में दयाल रेडियोज के अलावा माल रोड में सिख परिवारों की दुकानों में तोड़फोड़ की गई। सामान झील में फेंक दिया गया था। तल्लीताल में एक सिख परिवार के बुकसेलर ने दंगाइयों के डर से दाढ़ी बाल कटवा लिए थे। नैनीताल में तब करीब एक दर्जन से अधिक सिख परिवार ही रहते थे।

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